झारखंड में ओबीसी जातियों का आरक्षण बढ़ाने को लेकर बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी

ओबीसी संगठनों ने आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने की मांग को लेकर सरकार के साथ-साथ राजभवन का दरवाजा खटखटाना आरंभ कर दिया है। आने वाले दिनों में ऐसे समूह और मुखर होकर सामने आ सकते हैं। ओबीसी जातियों को चिन्हित करने का मसला भी इसकी एक कड़ी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 06 Aug 2021 09:31 AM (IST) Updated:Fri, 06 Aug 2021 09:39 AM (IST)
झारखंड में ओबीसी जातियों का आरक्षण बढ़ाने को लेकर बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी
राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन सौंपते पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा के लोग। जागरण

रांची, प्रदीप शुक्ला। राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों का आरक्षण बढ़ाने को लेकर राजनीतिक सरगर्मी एकाएक बढ़ गई है। खुद को ओबीसी जातियों का मसीहा साबित करने में हर दल दूसरे से बाजी मारने की जुगत में जुट गया है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के सभी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद तो इसे जोर-शोर से उठा ही रहे हैं, भाजपा और सहयोगी आजसू भी इस संवेदनशील मसले पर खुद को पिछड़ने नहीं देना चाह रहे। कांग्रेस, आजसू सहित अन्य कुछ दलों ने जातिगत मतगणना के लिए भी दबाव बनाना शुरू कर दिया है।

जातियों का अंकगणित राजनीतिक दलों को हमेशा लुभाता रहा है। हालांकि इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि समय-समय पर विभिन्न जातीय समूहों के हक की आवाज उठाने के पीछे का एक बड़ा उद्देश्य बड़े वोट बैंक को रिझाना भी होता है। झारखंड में ओबीसी का आरक्षण 14 प्रतिशत है, जो बिहार समेत अन्य पड़ोसी राज्यों की तुलना में कम है। इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग बहुत पुरानी है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भी इस मांग को उभार कर सभी राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को लुभाने का भरसक प्रयास किया था। लिहाजा अब यह मांग जोर पकड़ रही है कि सरकार इस वादे को पूरा करने की दिशा में प्रक्रिया को आगे बढ़ाए। दिलचस्प बात यह है कि सत्तारूढ़ गठबंधन के अहम सहयोगी दल कांग्रेस ने ही इस मुद्दे को हवा दी है, जिसे देखते हुए अन्य राजनीतिक दलों ने भी सुर में सुर मिलाना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस ने बाकायदा इसे लेकर मुहिम आरंभ करने की घोषणा की है। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी और पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह के निर्देश पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. रामेश्वर उरांव ने यह मांग उठाई है। भाजपा ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए कटाक्ष किया है कि सरकार में शामिल दल को मांग उठाने की बजाय इसे पूरा करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। भाजपा भी सरकार पर ओबीसी जातियों का आरक्षण बढ़ाने के लिए दबाव बना रही है।

फिलहाल राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी का आरक्षण मिलाकर 50 प्रतिशत है। इसमें अनुसूचित जनजाति को 26 प्रतिशत और अनुसूचित जाति को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। इसके अलावा आíथक रूप से कमजोर सवर्णो के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण है। सरकार को इसका अंदाजा है कि यदि ओबीसी का कोटा बढ़ाते हैं तो यह कानूनी पेच में फंस सकता है, लेकिन मुसीबत यह है कि चुनाव में बढ़-चढ़ कर वादा किया गया था और ऐसी स्थिति में इससे पूरी तरह मुकरा भी नहीं जा सकता। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा भी इस पक्ष में है कि आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया जाए।

ओबीसी संगठनों ने आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने की मांग को लेकर सरकार के साथ-साथ राजभवन का दरवाजा खटखटाना आरंभ कर दिया है। आने वाले दिनों में ऐसे समूह और मुखर होकर सामने आ सकते हैं। ओबीसी जातियों को चिन्हित करने का मसला भी इसकी एक कड़ी है। केंद्र सरकार ने अब इसका जिम्मा राज्यों पर डालने का निर्णय किया है। इससे भी राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बढ़ेगी। पहले केंद्र के पाले में गेंद डालकर राज्य सरकारें बच जाती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा। गठबंधन सरकार को यह बखूबी पता है कि ओबीसी समुदाय को रिझाने की कवायद में इस मुद्दे को सुलझाने में जरा से भी चूक हो गई तो इसका बड़ा राजनीतिक खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। इसकी पूरी संभावना है कि विधानसभा के मानसून सत्र में भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठेगा।

सीबीआइ को जज हत्याकांड की जांच का जिम्मा : धनबाद के जज उत्तम आनंद हत्याकांड की जांच सीबीआइ के सुपुर्द कर दी गई है। इसके पीछे सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस घटना का स्वत: संज्ञान लेना बड़ी वजह माना जा रहा है। हालांकि राज्य सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में विशेष जांच दल का गठन कर दिया था। विशेष जांच दल ने इस हत्याकांड से जुड़े संदिग्ध लोगों और साक्ष्यों की पड़ताल भी की। पुलिस की कई टीमें इस जांच में जुटी रही, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष पर पहुंचती नहीं दिखीं। इस बीच उच्च न्यायालय लगातार इसकी निगरानी और पूछताछ कर रही थी।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]

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