यहां दिखते हैं भगवान श्रीराम के चरण, स्वर्ण मृग से भी जुड़े हैं प्रसंग Bokaro News
Jharkhand Special News लोक मान्यता के अनुसार कसमार प्रखंड के मृगीखोह एवं ग्राम लखन टुंगरी (छोटा पहाड़) पर स्वण मृग की तलाश में श्रीराम यहां भी आए थे।
बोकारो, [बीके पांडेय]। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का बोकारो के कसमार से भी नाता रहा है। वैसे तो इसके ऐतिहासिक व हिन्दू धर्मग्रंथों में विवरण नहीं हैं। पर बोकारो के कसमार व आसपास के लोग मानते हैं कि बोकारो जिले के कसमार प्रखंड में भगवान राम का आगमन हुआ था। लोक मान्यता के अनुसार कसमार प्रखंड के मृगीखोह एवं राम लखन टुंगरी (छोटा पहाड़) पर भगवान श्रीराम का कथित पद चिन्ह है।
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कसमार प्रखंड के मंजूरा पंचायत स्थित राम-लखन टुंगरी पर मकर संक्रांति के अवसर पर टुसू मेला लगता है। रामनवमी व दुर्गापूजा में आसपास के लोग विशेष पूजा करते हैं। बताया जाता है कि भगवान श्रीराम यहां तब आए थे, जब स्वर्ण हिरण की तलाश में दोनों भाई भटक रहे थे। पत्थर पर मानवी पदों के निशान हैं और एक कूप भी है।
यहां के अलावा पास के डुमूरकुदर गांव में हिसीम-केदला पहाड़ी श्रंखला में मृगखोह नामक जगह है। मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम का आगमन यहां हुआ था। तब भगवान श्रीराम 14 साल के वनवास पर थे। देवी सीता की जिद व इच्छा को पूरी करने के लिए स्वर्ण मृग का पीछा करते हुए भगवान यहां पहुंचे थे। कहा जाता है कि यहां स्वर्ण मृग को एक खोह में प्रवेश करते देखकर श्रीराम ने तीर चलाया था।
वह तीर खोह के जिस हिस्से से टकराया था, वहां से दूध की धार निकलने लगी थी। पहाड़ी पर दो जगहों पर पदचिह्न हैं। एक पद चिह्न पर मंदिर का निर्माण भी काफी समय पहले हो चुका है। खास बात है कि यहां भगवान को केवल मिश्री का भोग लगता है। लोग मन्नत मांगते हैं तो वह पूरी होती है।
मृगीखोह में भगवान के दो पदचिन्ह
हिसीम-केदला पहाड़ी श्रंखला में विद्यमान मृगीखोह में दो स्थानों पर भगवान श्रीराम के पद चिन्ह हैं। एक झरना के पास तथा दूसरा पहाड़ की चोटी पर। झरना के पास स्थित पदचिन्ह मंदिर बना हुआ है जबकि पहाड़ की चोटी पर स्थित पदचिन्ह में मंदिर निर्माणाधीन है। यह रमणीय स्थल है। जहां मृग पर प्रभु श्रीराम ने बाण चलाया था। वहां गड्ढे का निशान है और पहले दुधिया रंग का पानी निकलता था।
इन दिनों में यहां पानी है पर वह वैसे रंग का नहीं है जिसकी चर्चा यहां के पुराने लोग करते हैं। स्थानीय लोग अपनी मान्यता के पीछे यह भी तर्क देते हैं कि हिसीम-केदला पहाड़ी एक श्रृंखला है जो कहीं न कहीं झारखंड से बिहार के रास्ते उत्तर प्रदेश के विंध्याचल पर्वत श्रेणी से जुड़ी हुई है। यही पहाड़ी आगे पश्विम बंगाल में अयोध्या पहाड़ सहित अन्य पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है।
मिलने वाली जड़ी से ठीक होते हैं बीमार लोग
रामलखन टुंगरी व आसपास के झाड़ियों में मिलने वाला एक विशेष प्रकार का पौधे जिसे लोग संजीवनी बुटी या सोनपापड़ी का पौधा कहते हैं। ऐसा मानना कि इसे खाने से पेट संबंधी व्याधी दूर हो जाती है। यहां के झरना से निकलने वाला पानी भी व्याधि नाशक है।