झारखंड के भोले-भाले आदिवासी दशकों से ईसाई मिशनरियों के लिए मतांतरण के आसान लक्ष्य रहे

गरीबों की मदद करने के एवज में धर्म बदलने की शर्त रखने वाले शायद यह नहीं समझते कि इससे बड़ा पाप कुछ नहीं हो सकता लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि मतांतरण की साजिश रचने वाले इसे ही अपना धर्म मानते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 16 Jul 2021 05:00 PM (IST) Updated:Fri, 16 Jul 2021 05:08 PM (IST)
झारखंड के भोले-भाले आदिवासी दशकों से ईसाई मिशनरियों के लिए मतांतरण के आसान लक्ष्य रहे
आदिवासियों के मतांतरण की प्रक्रिया को रोकना होगा। फाइल

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड के भोले-भाले आदिवासी दशकों से ईसाई मिशनरियों के लिए मतांतरण के आसान लक्ष्य रहे हैं। गरीबी, बदहाली में जी रहे इन लोगों को बरगला कर और प्रलोभन देकर इन्हें धर्म बदलने को प्रेरित या मजबूर किया जाता रहा है। हाल के दिनों में कुछ कड़े नियम-कानून भी बने, जिसमें मतांतरण को अवैध घोषित करते हुए इसमें संलिप्त लोगों के लिए सजा के प्रविधान बनाए गए, लेकिन गुपचुप तरीके से मतांतरण की गतिविधियां लगातार चल ही रही हैं। भारतीय चिंतन और दर्शन में धर्म जीवन जीने की व्यवस्था है। लाखों वर्षो से पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे संस्कारों को आगे बढ़ाने का स्वत: स्फूर्त उपक्रम है। ये नियम और संस्कार जीवन भर व्यक्ति के साथ चलते हैं। कोई भी व्यक्ति अपना धर्म बदलना नहीं चाहता, लेकिन लालच देकर इन्हें मजबूर किया जाता है।

गरीबों की मदद करने के एवज में धर्म बदलने की शर्त रखने वाले शायद यह नहीं समझते कि इससे बड़ा पाप कुछ नहीं हो सकता। एक दिन पहले ही साहिबगंज में 14 पहाड़िया जनजाति समुदाय के आदिवासियों ने ईसाई मत अपनाने के बाद सनातन मत में वापसी की। इन आदिवासियों ने बताया कि उन्हें लालच देकर और बड़े-बड़े सपने दिखाकर ईसाई बनाया गया था। खुद को जड़ों से उखड़ता हुआ महसूस करने के बाद ये सभी पुन: अपने मूल मत में लौट आए।

हाशिये पर रह रहे लोगों को बहकावे में आकर दूसरे मत में जाने से रोकने के लिए इनकी जरूरतों और भावनाओं का ख्याल रखना होगा, ताकि ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मतांतरण की चल रही साजिश के शिकार न बनें। सनातन परंपरा ने एक दौर वह भी देखा है जब समाज में निचले पायदान पर रह रहे लोग उपेक्षा से निराश होकर बौद्ध और अन्य मत अपना रहे थे। झारखंड के आदिवासियों को अपनी ओर मोड़ने के लिए बहुत पहले इस इलाके में ईसाई मिशनरियां सक्रिय हो गई थीं। अब तो कई अन्य मतों के लोग भी मतांतरण के अभियान में जुट गए हैं। मतांतरण की वजह से आदिवासी समाज दो खेमे में बंट चुका है, जिससे उनकी मूल पहचान नष्ट हो रही है। इस स्थिति को बदलने के लिए गंभीर प्रयास करने के जरूरत है।

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