गढ़वा के श्री बंशीधर मंदिर में 1280 किलो सोने से बनी है कृष्‍णजी की मूर्ति, तीन राज्‍यों के संगम स्‍थल पर है स्थित

Janmashtami 2021 Banshidhar Temple Garhwa Jharkhand News श्री बंशीधर मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की अछूत व अद्वितीय प्रतिमा है। इस मंदिर में वृंदावन की तर्ज पर श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। यहां प्रतिवर्ष वृंदावन से आए विद्वान पंडित भागवत कथा करते हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 30 Aug 2021 07:09 PM (IST) Updated:Tue, 31 Aug 2021 09:53 AM (IST)
गढ़वा के श्री बंशीधर मंदिर में 1280 किलो सोने से बनी है कृष्‍णजी की मूर्ति, तीन राज्‍यों के संगम स्‍थल पर है स्थित
Janmashtami 2021, Banshidhar Temple Garhwa, Jharkhand News यहां प्रतिवर्ष वृंदावन से आए विद्वान पंडित भागवत कथा करते हैं।

श्री बंशीधर नगर, [रजनीश कुमार मंगलम]। गढ़वा जिले के अनुमंडल मुख्यालय श्री बंशीधर नगर स्थित श्री बंशीधर मंदिर एक ऐतिहासिक धरोहर है। इस मंदिर में 32 मन यानी 1280 किलोग्राम शुद्ध सोने से निर्मित भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के साथ वाराणसी से मंगाया गया अष्टधातु का मां राधिका की प्रतिमा स्थापित है। झारखंड, छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश के संगम स्थल पर श्री बंशीधर मंदिर बांकी नदी के किनारे अवस्थित है। श्रीकृष्ण की यह अछूत प्रतिमा जमीन में करीब 5 फीट गड़े शेषनाग के फन पर निर्मित 24 पंखुड़‍ियों वाले विशाल कमल पुष्प पर विराजमान है।

श्रीकृष्ण की आदमकद प्रतिमा करीब साढ़े चार फीट की है। नगर उंटारी राजपरिवार के संरक्षण में यह मंदिर देश व विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। वहीं स्थानीय लोगों के लिए आस्था व विश्वास का केंद्र बना हुआ है। श्री बंशीधर मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव वृंदावन की तर्ज पर बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन कोविड-19 को लेकर पिछले वर्ष से मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का बड़ा आयोजन नहीं हो पा रहा है। इसके कारण श्री कृष्ण भक्तों में मायूसी भी है।

कोविड-19 के कारण मंदिर के पुजारियों व श्री बंशीधर सूर्य मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टियों द्वारा ही भव्य तरीके से कृष्ण जन्मोत्सव पिछले वर्ष से मनाया जा रहा है। आम श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित है। आम श्रद्धालु गेट के बाहर से ही भगवान श्रीकृष्ण व माता राधिका का दर्शन कर रहे हैं। यहां प्रतिवर्ष फाल्गुन महीने में एक माह तक आकर्षक एवं विशाल मेला लगता है।

यह है इस मंदिर का इतिहास

मंदिर के प्रस्तर लेख और पुजारी स्वर्गीय रिद्धेश्वर तिवारी के द्वारा मंदिर के गुंबद पर लिखित इतिहास के अनुसार संवत 1885 में श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त नगर गढ़ के महाराज स्वर्गीय भवानी सिंह की विधवा रानी शिवमणि देवी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थीं।

मध्य रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने रानी के स्वप्न में आकर दर्शन दिए तथा रानी के आग्रह पर नगर उंटारी लाने की अनुमति दी। रात में देखे स्वप्न के अनुसार रानी अपने लाव लश्कर के साथ करीब 20 किलोमीटर पश्चिम सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के दुद्धी थाना क्षेत्र के शिवपहरी नामक पहाड़ी पर पहुंची और स्वयं फावड़ा चलाकर खुदाई कार्य का शुभारंभ किया।

रात्रि में स्वप्न में आए भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई। खुदाई में प्राप्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को हाथी से नगर उंटारी लाया गया। नगर गढ़ के सिंह दरवाजे पर हाथी बैठ गया। लाख प्रयत्न के बावजूद हाथी नहीं उठा। रानी ने राजपुरोहितों से मशविरा कर वहीं पर प्रतिमा रखकर पूजन कार्य प्रारंभ कराया। प्रतिमा सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की थी। इसलिए वाराणसी से श्रीराधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा बनवा कर मंगाया गया और उसे भी मंदिर में श्रीकृष्ण के साथ स्थापित कराया गया।

मराठ शासकों ने बनवाई थी प्रतिमा

इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि यह प्रतिमा मराठा शासकों के द्वारा बनवाई गई होगी। उन्होंने वैष्णव धर्म का काफी प्रचार प्रसार किया था और मूर्तियां भी बनवाई थी। मुगलों के आक्रमण से बचाने के लिए मराठों ने इस प्रतिमा को शिवपहरी नामक पहाड़ी के अंदर छुपा दिया होगा। इस मंदिर में वर्ष 1930 के आसपास चोरी भी हुई थी। इसमें चोर भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी और छतरी चोरी कर ले गए थे। बाद में चोरी करने वाले चोर अंधे हो गए थे। उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। परंतु चोरी की हुई वस्तुएं बरामद नहीं हो पाई। बाद में राज परिवार ने दोबारा स्वर्ण बांसुरी और छतरी बनवा कर मंदिर में लगवाया।

60-70 के दशक में बिरला ग्रुप ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। आज भी श्री बंशीधर की प्रतिमा कला के दृष्टिकोण से अति सुंदर एवं अद्वितीय है। भगवान श्रीकृष्ण की इस प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आज तक इस पर किसी तरह का पोलिस नहीं किया गया है। बावजूद प्रतिमा की चमक धूमिल नहीं हुई है। कहीं भी पहले मंदिर बनता है, इसके बाद देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पर यहां पहले भगवान श्रीकृष्ण आए, इसके बाद मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के नाम पर झारखंड सरकार ने शहर का नाम श्री बंशीधर नगर कर दिया। यह यहां के लोगों के लिए गौरव की बात है।

श्रीकृष्ण सर्किट से जुड़ेगा श्री बंशीधर मंदिर

श्रीकृष्ण सर्किट से जुड़ने के बाद श्री बंशीधर मंदिर का धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान के साथ-साथ मंदिर के विकास को भी गति मिलेगी। पलामू सांसद विष्णु दयाल राम ने 18 नवंबर 2019 को लोकसभा में श्री बंशीधर मंदिर को श्रीकृष्ण सर्किट से जोड़ने की मांग पुरजोर तरीके से रखी थी। इस पर केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के अधीन स्वदेश दर्शन के सहायक निदेशक पावस प्रसून ने झारखंड पर्यटन मंत्रालय से श्री बंशीधर मंदिर के पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व से संबंधित रिपोर्ट की मांग की है। इस तरह श्री बंशीधर मंदिर को श्रीकृष्ण सर्किट से जोड़ने का कार्य प्रक्रियाधीन है।

दो बार हुआ श्री बंशीधर महोत्सव का आयोजन

श्री बंशीधर मंदिर को विकसित करने के उद्देश्य से राज्य सरकार की ओर से श्री बंशीधर महोत्सव का शुभारंभ किया गया था। पर यह आयोजन पहली बार वर्ष 2017 में तथा दूसरी बार 2018 में हुआ। इसके बाद पिछले 3 वर्षों से श्री बंशीधर महोत्सव का आयोजन राज्य सरकार की ओर से नहीं किया जा रहा है। इसके कारण श्रद्धालुओं में सरकार के प्रति क्षोभ व्याप्त है। सरकार की ओर से प्रतिवर्ष दो दिवसीय श्री बंशीधर महोत्सव का आयोजन किया जाना था। पर यह आयोजन मात्र दो बार ही हो सका है। पहली बार बंशीधर महोत्सव का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास व दूसरी बार तत्कालीन राज्यपाल के द्वारा किया गया था।

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