Jharkhand Election 2019: खेती-सिंचाई में नहीं मेल, अन्‍नदाताओं को आशीर्वाद योजना की आस; इस बार वोट झारखंड के लिए

Jharkhand Assembly Election 2019 अब तक मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना से 16.14 लाख किसानों व प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से राज्य के 14.39 लाख किसानों को लाभ मिला।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Wed, 20 Nov 2019 12:13 PM (IST) Updated:Wed, 20 Nov 2019 12:13 PM (IST)
Jharkhand Election 2019: खेती-सिंचाई में नहीं मेल, अन्‍नदाताओं को आशीर्वाद योजना की आस; इस बार वोट झारखंड के लिए
Jharkhand Election 2019: खेती-सिंचाई में नहीं मेल, अन्‍नदाताओं को आशीर्वाद योजना की आस; इस बार वोट झारखंड के लिए

रांची, राज्य ब्यूरो। खरीफ के बाद अब रबी की बुआई की सीजन चल रहा है, ज्यादातर खेत सूखे हैं। सिंचाई के अभाव में झारखंड में रबी फसल के प्रति किसानों का लगाव भी कुछ कम ही होता है। राज्य में नवंबर-दिसंबर में यह स्थिति हमेशा ही देखी जाती रही है। लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग भी है। खेत भले ही परती पड़े हों लेकिन किसानों की जेब पूरी तरह से खाली नहीं है। उन्हें कर्ज भी नहीं लेना पड़ा है। वजह प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) और मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना को माना जा रहा है। केंद्र व राज्य सरकार की इस योजना से किसानों की बड़ी आबादी को जोड़ा गया है। सरकार के आंकड़ों की मानें तो लगभग 30 लाख अन्नदाताओं के खाते में इन दोनों योजनाओं के माध्यम से राशि मुहैया कराई गई है।

किसानों के एकाउंट में राशि पहुंचना अच्छा कदम है लेकिन जिनके खाते खाली हैं वे सिस्टम को कोस रहे हैं। एक सच यह भी है कि कृषि क्षेत्र के विकास के लिए महज इतना ही पर्याप्त नहीं है। इस सेक्टर की मजबूती को दरकार है आधारभूत संरचना की। राज्य गठन के बाद से अब तक सिंचाई के पर्याप्त संसाधन किसानों को मुहैया नहीं हो सके हैं। खरीफ फसल की बुआई लगभग 25 लाख हेक्टेयर पर होती है लेकिन रबी में यह आंकड़ा घटकर 10 लाख हेक्टेयर के नीचे पहुंच जाता है।

वजह सिंचाई के संसाधनों का अभाव ही है। हालांकि, सरकारी दावों को मानें तो सिंचाई की स्थिति सुधर रही है। खेतों तक पानी पहुंचने का प्रतिशत बढ़ा है। पांच वर्ष पूर्व जहां महज 16 फीसद खेतों तक पानी पहुंचा था, अब यह बढ़कर 37 फीसद पहुंच गया है। पिछले चार वर्षों में (2015-16 से 2018-19) 5899 करोड़ रुपये की राशि व्यय की गई है। लेकिन परिणाम अपेक्षानुकूल नहीं आ रहे हैं। वृहद सिंचाई योजनाएं पैसा पानी की तरह पी रहीं हैं। हां, अपेक्षाकृत छोटी योजनाओं को जरुर मुकाम मिला है।

मिट्टी के डॉक्टर का नया प्रयोग

झारखंड में पहली बार बड़े पैमाने पर महिलाओं को मिट्टी के डॉक्टर के रूप में तैयार किया जा रहा है। प्रत्येक पंचायत में ऐसे दो-दो मिट्टी के डाक्टर तैयार किए जाने के साथ ही पंचायत स्तर पर मिट्टी जांच के लिए प्रयोगशाला तैयार की जा रही है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अंतर्गत अब तक 17 लाख किसानों के बीच स्वायल हेल्थ कार्ड वितरित किया गया है। 3164 मिनी स्वायल लैब की स्थापना की दिशा में भी कदम बढ़ाए गए हैं।

उठाए गए हैं कुछ सार्थक कदम लेकिन परिणाम आने में लगेगा वक्त

फसल बीमा योजना के तहत किसानों का बीमा कराया जा रहा है। सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए पिछले दो वर्षों से किसानों के प्रीमियम का भुगतान राज्य सरकार के स्तर से किया जा रहा है। किसानों के बीच मोबाइल फोन का वितरण किया जा रहा है। ताकि किसानों को कृषि की नई तकनीकी, मौसम पूर्वानुमान व बाजार इत्यादि की जानकारी हो सके। अब तक 6976 किसानों के बीच फोन का वितरण किया गया है। हालांकि, राज्य में किसानों की मौजूदा संख्या को देखें तो यह आंकड़ा काफी कम नजर आता है। अब तक 260 कृषि सिंगल विंडो की स्थापना कृषि विभाग के स्तर से की गई है। ताकि किसानों को एक ही जगह से कृषि, पशुपालन और सहकारिता से जुड़ी तमाम योजनाओं की जानकारी एक ही जगह से प्राप्त हो सके। राज्य में किसानों के लिए अलग कृषि फीडर की स्थापना की जा रही है। किसानों को उन्नत खेती के गुर सिखाने के लिए इजरायल भेजा गया। अब तक 95 किसानों को इजरायल भेजा गया, जिनमें 24 महिलाएं शामिल हैं। मास्टर ट्रेनर के रूप में तैयार ये किसान राज्य के अन्य किसानों को उन्नत खेती के गुर सिखा रहे हैं।

सुखाड़ की मार

झारखंड में बारिश बूते ही खेती होती है। यही कारण है कि राज्य को हर दूसरे वर्ष सुखाड़ का सामना करना पड़ता है। गत वर्ष 129 प्रखंड सुखाड़ की चपेट में आए थे। इस बार मानसून के विलंब के कारण स्थिति अच्छी नहीं रही। जून व जुलाई में कमजोर मानसून के कारण भारत सरकार ने राज्य के दस जिलों में प्रारंभिक तौर पर सुखाड़ घोषित किया था। ये जिले बोकारो, चतरा, देवघर, गढ़वा, गिरिडीह, गोड्डा, हजारीबाग, जामताड़ा, कोडरमा और पाकुड़ हैं। आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से इस बाबत विस्तृत प्रतिवेदन भी केंद्र सरकार को भेजा गया है। राज्य सरकार ने रांची, दुमका और लातेहार को भी सुखाडग़्रस्त जिलों में जोडऩे का आग्र्रह किया है। अब चुनाव के बाद ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।

एक्सपर्ट व्यू : समस्या नहीं, समाधान की दिशा में सोचना होगा

झारखंड में कृषि के क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं। समस्याएं भी हैं लेकिन जरुरत समाधान को लेकर सार्थक चर्चा और प्रयासों की है। कृषि क्षेत्र में काफी कुछ हुआ भी है। राज्य में 2006-07 में करीब 20 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती थी, अब यह बढ़कर 30 लाख हेक्टेयर के करीब पहुंच गया है। एरिया एक्सपेंशन की संभावनाएं अभी भी बनीं हुई हैं। इसे 40 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा झारखंड में करीब 18 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है, अन्य भूमि पूरे साल खाली पड़ी रहती है।

इस राइस फैलो एरिया में सरसों और चना की खेती की अच्छी संभावनाएं हैं। झारखंड में कृषि क्षेत्र का रकबा बढ़ाने से ही उत्पादकता में भी सुधार होगा। राज्य में प्रति वर्ष 70-75 लाख टन फूड ग्रेन की आवश्यकता है। लेकिन पैदावार अभी भी 50-52 लाख टन के आसपास रुकी हुई है। करीब 20 लाख टन का फूड डेफीशिट है। इसकी पूर्ति बाहर से होती है। अब सारी कवायद इस फूड डेफीशिट को कम करने की दिशा में होनी चाहिए। झारखंड की क्रांपिंग इंटेनसिटी भी राष्ट्रीय औसत की तुलना में कम है। राज्य की क्रापिंग इंटेनसिटी 112 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत 140 है। इसे बढ़ाना ही होगा।

इसे डबल क्रापिंग सिस्टम में ले जाने की जरुरत है। चना व सरसों बेहतर विकल्प हो सकते हैं। इसके अलावा झारखंड में जैविक खेती की काफी संभावनाएं हैं। हमारे यहां 96 किलोग्राम एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश) प्रति हेक्टेयर की औसत खपत होती है जबकि राष्ट्रीय औसत 136 का है। रबी के कृषि रकबे को भी बढ़ाना होगा, इस दिशा में प्रयास भी चल रहे हैं।

डॉ. आरएस कुरील, कुलपति, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय

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