झारखंड हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, तलाक मामले में फैमिली कोर्ट एक्ट सभी धर्मों पर होगा लागू
Jharkhand Hindi News Ranchi Samachar फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उरांव जनजाति का अपना कस्टमरी लॉ है। इस मामले का समाधान इसी कस्टमरी लॉ के अनुसार किया जाना चाहिए। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट ने तलाक से संबंधित एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि फैमिली कोर्ट एक सेक्युलर कोर्ट है। फैमिली कोर्ट एक्ट का सेक्शन (सात) सबके लिए समान रूप से लागू होता है। यह एक्ट सेक्युलर कानून है जो कि हर धर्म के लोगों पर लागू होता है। इस कारण फैमिली कोर्ट धर्म, संप्रदाय, जाति और प्रचलित सामाजिक नियमों (कस्टमरी लॉ) के आधार पर सुनवाई करने से इन्कार नहीं कर सकता।
इस निर्देश के साथ हाई कोर्ट के जस्टिस जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की अदालत ने रांची फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें उरांव जनजाति के एक युवक के तलाक की अर्जी खारिज कर दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उरांव जनजाति का अपना कस्टमरी लॉ है। इस मामले का समाधान इसी कस्टमरी लॉ के अनुसार किया जाना चाहिए। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस पर सुनवाई पूरी करने के बाद झारखंड हाई कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
हाई कोर्ट ने आदेश में कहा है कि फैमिली कोर्ट का यह फैसला बिल्कुल गलत है, क्योंकि फैमिली कोर्ट एक्ट के तहत किसी भी जाति, धर्म समुदाय का कोई भी मामला हो, वह सुनवाई किए जाने योग्य है और वह निचली अदालत के अधिकार क्षेत्र में आता है। फैमिली कोर्ट एक्ट के अनुसार इस मामले की सुनवाई की जानी चाहिए और यह सुनवाई योग्य भी है। इसे समुदाय के अनुसार वापस किया जाना सही नहीं है। हाई कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए दोबारा फैमिली कोर्ट के पास भेज दिया।
यह है पूरा मामला
उरांव जनजाति के युवक और युवती की शादी पारंपरिक तरीके से 2015 में हुई थी। शादी के कुछ ही दिनों के बाद युवक की ओर से यह कहते हुए तलाक के लिए आवेदन दिया गया कि युवती का संबंध किसी और के साथ है। ऐसे में एक साथ रहना मुश्किल है। निचली अदालत ने यह कहते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी थी कि उरांव जनजाति के लिए सामाजिक विधान है और सामाजिक विधान के होते हुए फैमिली कोर्ट एक्ट के तहत उनके मामले की सुनवाई नहीं की जा सकती।