झारखंड से कृषि उत्पादों के निर्यात की अपार संभावनाएं

देश के बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने में कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास अभिकरण अग्रणी भूमिका है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 06:00 AM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 06:00 AM (IST)
झारखंड से कृषि उत्पादों के निर्यात की अपार संभावनाएं
झारखंड से कृषि उत्पादों के निर्यात की अपार संभावनाएं

जासं, रांची: देश के बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने में कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास अभिकरण(एपीडी) की अग्रणी भूमिका रही है। झारखंड एवं पड़ोस के राज्यों से कृषि उत्पादों के निर्यात की अपार संभावनाएं है। कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने से किसानों की आय बढ़ेगी। राज्य से सब्जी, फल, मधु एवं तसर आदि उत्पादों को चिह्नित कर निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकता है। इस दिशा में कृषि विश्वविद्यालय तकनीकी एवं मानव संसाधन सहयोग देने को तैयार है। कृषि उत्पाद निर्यात की दिशा में राज्य सरकार के विभागों, कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि हितकारकों के सहयोग से सही योजना एवं प्रबंधन की पारदर्शी रणनीति का विकास करना होगा। किसानों को कृषि उत्पादों के निर्यात विषय पर जागरूक करने की। राज्य में एपीडा के माध्यम से फार्मर्स प्रोड्यूसर कमिटी (एफपीसी) एवं फार्मर्स प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) के विस्तारीकरण की योजना है। ये बातें एपीडा एवं बीएयू के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कृषि उत्पादों के निर्यात पर किसानों का क्षमता विकास कार्यक्रम में कुलपति डा ओंकार नाथ सिंह ने कहा।

रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी भवेशानंद ने कहा कि हमारे किसान सदियों से देश के देवदूत है। किसानों की उन्नति एवं आत्मनिर्भरता से ही राज्य एवं देश के विकास दिशा मिलेगी। इसके लिए कृषि, पशुपालन एवं विपणन पर समावेशी प्रयासों की आवश्यकता है। कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ विपणन पर भी ध्यान देना होगा। देश के किसानों के हित में विपणन आधारित कृषि समय की महत्वपूर्ण मांग है। एमएसपी की जगह कृषि उत्पादों की फार्मर्स रिटर्न प्राइस को पारदर्शिता के साथ निर्धारित कर किसानों को आत्मनिर्भर किया जा सकेगा।

डीन एग्रीकल्चर डा एमएस यादव ने कहा कि किसानों द्वारा काफी अधिक कृषि पैदावार की जाती है। लेकिन पैदावार को बेचने में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उन्हें कृषि उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। कृषि उत्पादों के उचित मूल्य के लिए किसानों को जागरूक करने एवं उत्साहवर्धन की जरूरत है। निर्यात से जुड़े कृषि उत्पादों की गुणवत्ता एवं मापदंड की जानकारी के व्यापक प्रचार से ही किसानों को जागरूक करना होगा।

एपीडा के पूर्वी क्षेत्र प्रभारी संदीप साहा ने कहा कि भारत सरकार ने राज्य स्तर पर कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एपिडा को नामित किया है। इसे राज्यों द्वारा नामित नोडल एजेंसी एवं किसान उत्पादक संगठनों की भागीदारी से आगे बढाया जा रहा है। किसानों को कृषि उत्पादों का उचित मूल्य मिले, कृषि लागत का मूल्यांकन एवं कृषि निर्यात को बढ़ावा के उद्देश्य से आज के दिन पूरे देश में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। राज्य के रांची एवं हजारीबाग जिले में करीब 80 किसान उत्पादक संगठन इस ओर प्रयासरत है। बीएयू राज्य में मसाले की खेती संबंधी अनुसंधान को देगा बढ़ावा

जासं, रांची: झारखंड की जलवायु और मिट्टी हल्दी, धनिया, अदरक, मिर्च, मेथी आदि मसालों की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए यह अच्छा स्त्रोत होगा, इसलिए इस क्षेत्र में मसाला अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाएगा। आइसीएआर की अखिल भारतीय समन्वित मसाला अनुसंधान परियोजना, कोझिकोड की आनलाइन बैठक संपन्न हुई। त्रिदिवसीय बैठक में यह बात कही गयी। बैठक में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के परियोजना प्रभारी विज्ञानी डा. अरुण कुमार तिवारी ने भाग लिया और मसाला अनुसंधान संबंधी बीएयू का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। बैठक में उन्होंने बताया कि बिरसा कृषि विवि राज्य में मसालों की खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़े स्तर पर शोध कार्य कर रहा है।

डा. अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि देश के विभिन्न भागों में 12 बिल्कुल हल्का पीला (सफेद) हल्दी के जर्मप्लाज्म, जिसके औषधीय गुण बहुत हैं, पर अनुसंधान चल रहा है। इसी प्रकार अधिक पीला (लाल) 11 किस्मों पर भी अध्ययन चल रहा है। ये किस्में खाद्य पदार्थों में रंग का काम करती हैं और इनमें औषधीय गुण भी मौजूद हैं। फसल उत्पादन और भंडारण के चरणों में हल्दी और अदरक में रोग एवं कीड़े नहीं लगें, इसपर भी अनुसंधान चल रहे हैं। झारखंड आदिवासी बहुल राज्य होने के कारण बीएयू को मसाला संबंधी ट्राईबल सब प्लान परियोजना भी स्वीकृत की गई है। झारखंड की मिट्टी अम्लीय है और बागवानी के कई कार्यक्रम चल रहे हैं। ऐसे में फलों के पेड़ की छाया में हल्दी एवं अदरक की खेती किसानों की आमदनी बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है।

बैठक में आईसीएआर की ओर से उप महानिदेशक (बागवानी) डा. एके सिंह, सहायक महानिदेशक डा. विक्रमादित्य पांडेय, पूर्व उप महानिदेशक डा. एनके कृष्ण कुमार तथा परियोजना समन्वयक डा. जे रेमा सहित देशभर से 44 विज्ञानियों ने भाग लिया। यह समन्वित परियोजना देश के लगभग 40 कृषि विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान केंद्रों में चल रही है।

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