पढ़-लिख कर छात्र कहे कि नौकरी करनी है तो यह संस्थान पर प्रश्न चिन्ह Ranchi News

Ranchi University Foundation Day रांची विश्वविद्यालय के 61वें स्थापना दिवस पर आइएफएस सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि आत्मनिर्भर बनाने के बजाय संस्थान युवा पीढ़ी को लाचार बना रहा है। कार्यक्रम को कुलपति डॉ. कामिनी कुमार पूर्व कुलपति डॉ. रमेश कुमार पांडेय आदि ने संबोधित किया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 12 Jul 2021 02:30 PM (IST) Updated:Mon, 12 Jul 2021 02:37 PM (IST)
पढ़-लिख कर छात्र कहे कि नौकरी करनी है तो यह संस्थान पर प्रश्न चिन्ह Ranchi News
Ranchi University Foundation Day रांची विश्‍वविद्यालय के स्‍थापना दिवस पर कार्यक्रम काे संबोधित करतीं मेयर आशा लकड़ा।

रांची, जासं। रांची विश्वविद्यालय ने सोमवार को अपना 61वां स्थापना दिवस मनाया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय परिसर स्थित सीनेट हॉल में मेरी रांची मेरी जिम्मेदारी विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इसका उद्घाटन रांची की मेयर डॉ. आशा लकड़ा ने किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आइएफएस सिद्धार्थ कुमार त्रिपाठी ने कहा कि शिक्षा का मतलब आत्मनिर्भर बनना है। अगर कोई छात्र पढ़-लिखकर यह कहे कि मुझे नौकरी करनी है तो यह उस संस्थान पर और पढ़ाने वाले शिक्षकों पर प्रश्न चिन्ह है कि उन्होंने कैसी पढ़ाई दी।

हमें दुनिया के विकसित देशों से रेस करनी है। पुनः विश्व गुरु का रुतबा प्राप्त करना है। इसके लिए युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर व निर्भीक बनाना होगा। दुर्भाग्य से पिछले 75 सालों से हमारा सिस्टम और शिक्षण संस्थान युवा पीढ़ी को ज्ञानवान-चरित्रवान बनाने की बजाय बैसाखी के सहारे चलने वाला इंसान बना रहा है। बैसाखी के सहारे चलने वाले रेस में नहीं दौड़ सकते।

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से विकास को लेकर ढेरों योजनाएं बनीं। आम सहभागिता नहीं होने के कारण स्थिति जस की तस है। जनता, जो वास्तविक मालिक है, वह पीछे और सत्ता और ब्यूरोक्रेट्स, जो नौकर हैं, वह आगे-आगे चल रहे हैं। ऐसी स्थिति में जन सामान्य खुद को ठगा महसूस कर रहा है। लोगों ने भी अब मान लिया है कि जो कुछ भी करना है, सरकार और ब्यूरोक्रेट्स को ही करना है।

अगर यही स्थिति रही तो हमारा पतन और होगा। रांची के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वनों का प्रदेश होने के बावजूद यहां की हरियाली दिन-प्रतिदिन गायब होती जा रही है। दूसरे राज्यों की राजधानी की अगर तुलना की जाए तो पिछले 15-16 वर्षों में राजधानी रांची में पेड़-पौधे लगभग गायब हो गए। यह मानव जीवन के लिए गंभीर स्थिति है।

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