Hindi Journalism Day: झारखंड में ईसाई मिशनरियों ने की थी पत्रकारिता की शुरुआत, जानें

Hindi Journalism Day Jharkhand News झारखंड-बिहार से पहली पत्रिका निकली जो रांची से प्रकाशित हुई। उसका नाम घर-बन्धु है। इसका प्रकाशन वर्ष 1872 में शुरू हुआ। संयुक्त बिहार में घर बन्धु पहली हिंदी की पत्रिका कही जा सकती है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Sun, 30 May 2021 04:54 PM (IST) Updated:Sun, 30 May 2021 05:04 PM (IST)
Hindi Journalism Day: झारखंड में ईसाई मिशनरियों ने की थी पत्रकारिता की शुरुआत, जानें
Hindi Journalism Day, Jharkhand News संयुक्त बिहार में घर बन्धु पहली हिंदी की पत्रिका कही जा सकती है।

रांची, [संजय कृष्ण]। झारखंड में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत ईसाई मिशनरियों ने की थी। तब उनका उद्देश्य अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। उन्होंने इसके लिए पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू किया था, पर इन पत्रिकाओं में केवल बाइबल के संदेश ही नहीं होते थे, बल्कि स्थानीय खबरों, सूचनाओं के अलावा देश-विदेश के समाचार भी होते थे। इन पत्रिकाओं को देखने से यह पता चलता है कि ये पत्रिकाएं उस दौर में किस तरह समाचार और सूचनाओं से खुद को अपडेट रखती थीं। खैर, झारखंड-बिहार से पहली पत्रिका निकली जो रांची से प्रकाशित हुई, उसका नाम था घर-बन्धु। इसका प्रकाशन वर्ष 1872 में शुरू हुआ।

यह पत्रिका आज भी अनवरत निकल रही है। राष्ट्रीय स्तर पर भी किसी हिंदी पत्रिका की इतनी आयु नहीं होगी। गौर करने की बात है कि वर्ष 1872 में ही रांची में लिथो प्रेस की स्थापना हुई। दो नवंबर, 1845 को ही यहां जर्मन मिशनरियों का आगमन हुआ। धीरे-धीरे ईसाईयों की संख्या बढ़ती गई और कुछ वर्षों में उन्होंने यहां हिंदी और स्थानीय भाषा सीखकर पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर दिया। एक दिसंबर, 1872 को इसका पहला अंक आया था। पहले यह पत्रिका पाक्षिक थी। बाद में यह मासिक कर दी गई। अब यह मासिक ही निकल रही है।

पहले इस पत्रिका की टैग लाइन थी- चुटिया नागपुर की एवं जेलिकल मंडलियों के लिए। अब गोस्सनर चर्च की मासिक हिंदी पारिवारिक पत्रिका हो गई है। वर्ष 1882 से अंक उपलब्ध है। पहले कोलकाता और बाद में पटना से, इसके बाद बिहार बन्धु का प्रकाशन शुरू हुआ। यह पत्रिका अब बंद हो चुकी है। इस तरह संयुक्त बिहार में घर बन्धु हिंदी की पहली पत्रिका कही जा सकती है। निष्कलंका भी मिशनरी की पत्रिका है, जो 1920 से निकल रही है। इसके बाद छोटानागपुर दूत, आदिवासी, चांदनी आदि पत्रिकाएं निकलीं और बंद हुईं।

ईसाई मिशनरियों का उद्देश्य धर्म प्रचार था और इसके लिए पत्रिकाओं के माध्यम से वे अपनी बात दूसरों तक पहुंचा रहे थे। इसी के बीच 1889 में रांची में आर्य समाज की स्थापना हुई तो इसने भी अपना पत्र आर्यावर्त निकालना शुरू किया। यह साप्ताहिक था। इसमें भी धार्मिक समाचारों, कार्यक्रमों के अलावा रांची की स्थानीय खबरें और देश-विदेश के समाचार छपते थे। ईसाई मिशनरियों के प्रचार पर इस पत्रिका ने बौद्धिक प्रहार भी किया, लेकिन यह अल्पजीवी रहा। 1905 में यह बंद हो गया।

इसके पुराने अंक भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। अपर बाजार से वर्ष 1924 में छोटानागपुर पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। यह मासिक पत्रिका थी। पं. मामराज शर्मा इसके संपादक थे और शुक्रा उरांव मैनेजर। यह पत्रिका भी अल्पायु साबित हुई। वर्ष 1926 में इसका प्रकाशन बंद हो गया। छोटानागपुर पत्रिका के बाद वर्ष 1938 में गुमला से 'झारखंड' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। तब गुमला रांची में ही था। इसके संपादक ईश्वरी प्रसाद सिंह थे। इसकी छपाई पटना से होती थी। इसी के आसपास 'आदिवासी' नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला गया। उस समय आदिवासी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया था।

आदिवासियों को अपनी बात कहने के लिए एक पत्रिका की जरूरत महसूस हो रही थी। आजादी के बाद 1948 के फरवरी से रांची से साप्ताहिक 'आदिवासी' पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। इसके संपादक थे राधाकृष्ण। यह बिहार सरकार की पत्रिका थी, लेकिन विभिन्न अवसरों पर इसके मोटे-मोटे विशेषांक निकलते थे, जिसमें काफी पठनीय सामग्री रहती थी। यह कई बार बंद हुई। अब फिर झारखंड सरकार की ओर से प्रकाशित हो रही है। 1963 में रांची टाइम्स का प्रकाशन हुआ।

1971 में झारखंड टाइम्स निकला। इसके संस्थापक एनई होरो थे। इस तरह रांची से कई पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। अंग्रेजी के भी कई पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन रांची के पठार से होता रहा। अंग्रेजी पत्रिका सेंटिनेंटल का नाम उल्लेखनीय है। इस तरह कह सकते हैं कि हिंदी पत्रिकाओं की शुरुआत ईसाई मिशनरियों ने की थी। उन्‍होंने कई उल्लेखनीय काम भी किए। आदिवासी लोक गाथा, लोकगीत और उनकी संस्कृति और परंपरा का भी गहन अध्ययन कर दुनिया के सामने रखा।

chat bot
आपका साथी