Jharkhand: CM हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, झारखंड को जीएसटी कंपनसेशन दिलाने में करें मदद

GST Compensation News चालू वित्तीय वर्ष में अबतक 2500 करोड़ के घाटे की ओर ध्‍यान दिलाया। भुगतान करने की बजाय कर्ज लेने की सलाह पर आपत्ति जताई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Fri, 04 Sep 2020 09:50 PM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2020 09:53 PM (IST)
Jharkhand: CM हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, झारखंड को जीएसटी कंपनसेशन दिलाने में करें मदद
Jharkhand: CM हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, झारखंड को जीएसटी कंपनसेशन दिलाने में करें मदद

रांची, राज्य ब्यूरो। राज्य व केंद्र सरकार के बीच जीएसटी कंपनसेशन को लेकर आने वाले दिनों में तकरार बढ़ सकती है। शुक्रवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपनी आपत्तियों से अवगत कराया है। उन्होंने केंद्र सरकार के रवैये को संघीय ढांचे के विरुद्ध बताते हुए कहा है कि इससे अविश्वास का माहौल बनेगा।

मुख्यमंत्री ने उल्लेख किया है कि यह पत्र उन्हें उस परिस्थिति में लिखना पड़ रहा है, जब केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) कंपनसेशन की राशि देने से मना कर दिया है। इससे चालू वित्तीय वर्ष में अबतक राज्य को लगभग 2500 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।

हाल ही में हुए जीएसटी काउंसिल की बैठक का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री ने करोड़ों रुपये कर्ज लेने का विकल्प बताया है, जबकि तीन साल पहले इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी कि ऐसी भी स्थिति आएगी। यह कार्रवाई संघीय ढांचे के विरुद्ध है और इससे राज्यों को जीएसटी में भारी घाटा उठाना पड़ेगा। इसका असर केंद्र और राज्य के बीच में चले आ रहे संबंधों पर भी पड़ेगा।

हेमंत सोरेन ने लिखा है-

1 जुलाई 2017 की मध्यरात्रि को जीएसटी की घोषणा के वक्त मैं आपका भाषण बहुत ध्यान से सुन रहा था, क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए आपने इसका पुरजोर विरोध किया था। उस रात्रि आपने अपने संबोधन में कहा था कि जीएसटी सहकारी संघीय ढांचे का एक बेहतरीन उदाहरण होगा, जो राष्ट्र की उन्नति में सहायक होगा। मैं आपकी भावना की प्रशंसा करता हूं, लेकिन क्या इस प्रकार के व्यवहार से यह विश्वास पैदा होगा? राज्यों को भी आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा संवैधानिक दायित्वों की पूर्ति आवश्यक है।

ऐसा नहीं होना राज्य के हितों के विरुद्ध होगा। जीएसटी से अपने संसाधन और कर की नीति पर भी असर पड़ रहा है, जबकि केंद्र को जीएसटी कंपनसेशन के मद में हो रहे घाटे की भरपाई करनी चाहिए। झारखंड बड़े औद्योगिक इकाइयों और उत्पादक कंपनियों पर निर्भर है, लेकिन इसकी खपत काफी कम है और जीएसटी के कारण घाटा उठाना पड़ रहा है। झारखंड खनिज के क्षेत्र में लगभग 5000 करोड़ रुपये के कंपनसेशन फंड का भी योगदान करता है, जबकि राज्य को इस मद में महज 150 करोड़ रुपये हर माह मिलता है।

आज यह कहा जा रहा है कि हम राजकीय कर्मचारियों के वेतन के लिए कर्ज लें। यह राज्य के लोगों पर अतिरिक्त बोझ होगा। कोरोना संकट के समय पूरा देश एक साथ खड़ा है। जान है, तो जहान है। सारी आर्थिक गतिविधियां भी मंद हैं। अर्थव्यवस्था को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस परिस्थिति में हमें किसानों, असंगठित क्षेत्र, प्रवासी मजदूरों और बेरोजगार युवकों के लिए ज्यादा से ज्यादा फंड की आवश्यकता होगी। विभिन्न प्रांतों में कार्य रहे सात लाख प्रवासी मजदूर वापस लौटे हैं।

इस कठिन समय में हमें जीएसटी कंपनसेशन मिलने की उम्मीद थी। हमें यह भी आशा थी कि जीएसटी कंपनसेशन पांच सालों का मिलेगा। अब हमें हर बात के लिए दिल्ली की ओर देखना पड़ता है, जबकि जीएसटी लागू करने के पूर्व हमें अपने संसाधनों के आधार पर कर निर्धारण का अधिकार था। हमारा वोटिंग अधिकार जीएसटी काउंसिल में बहुत कम है।

इन परिस्थितियों के मद्देनजर यह प्रतीत हो रहा है कि वर्तमान परिदृश्य संघीय ढांचे के खिलाफ है। आपसे आग्रह है कि इस परिस्थिति में हस्तक्षेप करें और संबंधित मंत्रालय को जीएसटी कंपनसेशन की राशि जारी करने का निर्देश दें। इससे संघीय ढांचा के प्रति हमारा विश्वास मजबूत होगा।

'हमने राज्य की व्यथा बताई है। राज्य को चलाने के लिए संसाधनों की आवश्यकता है। सभी राज्यों ने इसी विश्वास के तहत उनके वादे पर भरोसा किया था। हमने रीढ़ की हड्डी उनको निकालकर दे दी। केंद्र का यह दायित्व बनता है कि राज्य का ध्यान रखें। जिस तरीके से चीजें बढ़ रही हैं, उससे राज्य सरकारों को दिक्कतें आएंगी।' -हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री, झारखंड।

chat bot
आपका साथी