स्मृति शेष : नहीं रहा नागपुरी साहित्य का सितारा

नागपुरी साहित्य संसार के सितारे डा. गिरिधारी राम गौंझू नहीं रहे। गुरुवार को उनका निधन हो गया। वे अपने घर में थे। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई तो स्वजन हरमू अस्पताल ले गए। वहां आक्सीजन नहीं थी। वहां से रिम्स ले गए जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।

By Sanjay Kumar SinhaEdited By: Publish:Fri, 16 Apr 2021 06:00 AM (IST) Updated:Fri, 16 Apr 2021 06:00 AM (IST)
स्मृति शेष : नहीं रहा नागपुरी साहित्य का सितारा
नागपुरी साहित्य के बड़े नाम गिरिधारी राम गौंझू का फाइल फोटो।

रांची (जासं): नागपुरी साहित्य संसार के सितारे डा. गिरिधारी राम गौंझू नहीं रहे। गुरुवार को उनका निधन हो गया। वे सहजानंद चौक स्थित अपने घर में थे। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई तो स्वजन हरमू अस्पताल ले गए। लेकिन वहां आक्सीजन की व्यवस्था नहीं थी। वहां से रिम्स ले गए जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। डा. गौंझू को किडनी की भी समस्या थी। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को होगा। उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे व एक बेटी हैं। उनके निधन पर रांची विवि के पूर्व वीसी डा. रमेश पांडेय, वीसी डा. कामिनी कुमार, डीएसडब्ल्यू डा. राजकुमार शर्मा, परीक्षा नियंत्रक डा. आशीष झा, एमपीईएच प्रो. अशोक ङ्क्षसह, डा. हरि उरांव,  एनएसएस हेड डा. ब्रजेश, प्राचार्य डा. मिथिलेश आदि ने शोक जताया है। 

सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में काफी सक्रिय रहते थे : डा. गिरिधारी राम गौंझू रांची विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष पद से 14 दिसंबर 2011 को सेवानिवृत्त हुए थे। डा. गिरिधारी की कई किताबें भी प्रकाशित हुईं हैं। वे सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में काफी सक्रिय रहते थे। टीआरआइ के निदेशक रणेंद्र ने कहा कि गिरिधारी राम का जाना बड़ी क्षति है। कहते हैं कि वे अपने आप में इनसाइक्लोपीडिया थे। झारखंड की लोक कला, नृत्य, गायन, वादन, भाषा और अन्य विधाओं के जानकार थे। झारखंड के वाद्य यंत्रों, नागपुरिया संस्कृति, नृत्य, गीतों पर किताब लिखकर स्थानीय विरासत, पहचान को सहेजने का काम किया था। रांची विवि के पूर्व ङ्क्षहदी विभागाध्यक्ष डा. जेबी पांडेय ने कहा कि वे नागपुरी विभाग के संस्थापक में से एक थे। 

अब तो बस यादें 

जन्म : 5 दिसम्बर 1949 को खूंटी के बेलवादाग गांव में हुआ था।   1975 में परमवीर अल्बर्ट एक्का मेमोरियल कॉलेज चैनपुर गुमला से अध्यापन कार्य शुरू किया। यहां वे 1978 तक रहे।  इसके बाद  गोस्सनर कॉलेज, रांची कॉलेज रांची और रांची विवि के पीजी जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में रहे। डा. गौंझू ने दर्जनों पुस्तकें लिखकर नागपुरी साहित्य को समृद्ध किया।  1988 में फादर पीटर नवरंगी व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर शोध कार्य किया था।  उन्हेें झारखंड रत्न सहित कई सम्मान मिला था। 

 

नागपुरी साहित्य को ऊंचाई दी : गोस्सनर कालेज के नागपुरी विभाग के सहायक प्राध्यापक डा. कोरनेलियुस  कहते हैं कि डा. गौंझू में झारखंड की भाषा, संस्कृति और साहित्य के प्रति अप्रतिम लगाव व जुड़ाव था। उन्होंने अपनी सृजनात्मक कलम की बदौलत नागपुरी साहित्य को एक नयी ऊंचाई प्रदान की। पद्मश्री रामदयाल मुंडा, श्रवण कुमार गोस्वामी और बीपी केसरी की अगली पीढ़ी के रूप में गिरिधारी राम गौंझू ने नागपुरी साहित्य जगत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज की थी। खुले दिल से झारखंडी साहित्य के विकास के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे। यही कारण है कि जो कोई भी उनके पास जाता वह उनकी मदद भाव से प्रभावित होकर उन्हीं के होकर रह जाते थे। उनके पास जो भी जाता वह कभी निराश होकर नहीं लौटता था। अचानक उनका चले जाना झारखंडी भाषा, साहित्य और संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है। डा. गौंझू के छात्र रहे प्रोफेसर उमेशानंद तिवारी ने कहा वे बहुत सहज व सरल थे। कहा छात्र जीवन में एक दिन मैं उनसे मिलने उनके घर गया था तो देखा कि वे हल चला रहे थे। 

दर्जनों पुस्तकें लिखीं : डा. गिरिधारी राम गौंझू 72 वर्ष की उम्र में भी साहित्य साधना में रत थे। वे साहित्य से अंतिम समय तक जुड़े रहे। यही कारण है कि कोरोना महामारी के इस भयंकर वातावरण भी वे उन तमाम कार्यक्रमों में पहुंच जाते जहां साहित्य की बातें होती। यह उनके साहित्य प्रेम का ही परिचायक था। अखरा ङ्क्षनदाय गेलक, नागपुरी सीखें, हीरानागपुर कर हीरा, महराजा मदरा मुण्डा, मरांग गोमके जयपाल ङ्क्षसह आदि दर्जनों पुस्तकों के माध्यम से वे साहित्य प्रेमियों के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे। 

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