Garhwa Animal Husbandry Department: पशुपालन विभाग में चिकित्सक व ससाधनों का टोटा, दंश झेल रहे पशुपालक
Garhwa Animal Husbandry Department जिले में पशुपालन विभाग(Animal Husbandry Department) खास्ताहाल है। विभाग में पशु चिकित्सकों के सृजित पदों में से अधिकतर पद रिक्त हैं और प्रभार में चल रहे हैं। वहीं संसाधनों की भी कमी है। इसका सीधा असर पशुपालकों पर पड़ रहा है।
गढ़वा(संवाद सहयोगी)। Garhwa Animal Husbandry Department: जिले में पशुपालन विभाग(Animal Husbandry Department) खास्ताहाल है। विभाग में पशु चिकित्सकों के सृजित पदों में से अधिकतर पद रिक्त हैं और प्रभार में चल रहे हैं। वहीं संसाधनों की भी कमी है। इसका सीधा असर पशुपालकों पर पड़ रहा है। अधिकतर बीमार पशुओं का इलाज नीम-हकीमों से कराने की विवशता है। इससे बीमार पशुओं के अक्सर मौत होने के मामले सामने आते हैं।
प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी व भ्रमणशील पशु चिकित्सक के कई पद रिक्त:
जिले में पशुओं की संख्या करीब सात लाख है। जबकि इनके इलाज के लिए पर्याप्त संख्या में चिकित्सक नहीं हैं। पशुओं के इलाज के लिए विभिन्न प्रखंडों में 17 प्रथम वर्गीय चिकित्सालय व जिला मुख्यालय में एक राज्यकृत पशु औषधालय है। वहीं प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी के आठ पद हैं। मेराल व श्रीबंशीधर नगर में ही प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी कार्यरत हैं। मझिआंव, रंका, भंडरिया, भवनाथपुर, धुरकी व गढ़वा में प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी के पद प्रभार में चल रहा है। जबकि 17 प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय में से आठ में ही भ्रमणशील पशुचिकित्सक कार्यरत हैं। वहीं अवर प्रमंडल पशुपालन पदाधिकारी का पद भी प्रभार में है। साथ ही जिला मुख्यालय में पॉली क्लिनिक में चिकित्सक का पद भी रिक्त है।
बताते चलें कि कई भ्रमणशील पशु चिकित्सकों(Itinerant Veterinarians) के पास प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय(Veterinary Hospital) तथा प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी(Animal Husbandry Officer) का भी प्रभार है। इस कारण ऐसे भ्रमणशील पशु चिकित्सक प्रशासनिक कार्यों में ही व्यस्त रहते हैं और प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय में समय नहीं दे पाते हैं। ऐसे में बीमार पशुओं का इलाज कराने के लिए पशुपालकों को नीम हकीमों के पास जाना पड़ता है। वहां आर्थिक दोहन तो होता ही है। अधकचरे जानकारी वाले पशु चिकित्सकों से इलाज कराने के कारण अक्सर पशुओं की मौत भी हो जाती है।
सरकारी स्तर से नहीं कराया जा रहा टीकाकरण:
पशुओं की कई बीमारियों का सरकारी स्तर पर टीकाकरण नहीं कराया जा रहा है। इस कारण बरसात के दिनों में बैक्टीरियल व वायरल इंफेक्शन के कारण पशुओं की मौत हो जाती है। गलाघोंटू बीमारी के लिए विभाग द्वारा तीन वर्षों से टीकाकरण नहीं कराया जा रहा है। बताया जा रहा है कि वैक्सीन की सरकारी स्तर से आपूर्ति नहीं की जा रही है। वहीं खुरपका व मुंहपका यानी खुरहा व चपका नामक बीमारी का टीकाकरण की अभी तैयारी चल रही है। जबकि इन बीमारियों से पशु आक्रांत हो रहे हैं।
गलाघोंटू बीमारी का वैक्सीन की आपूर्ति सरकारी स्तर से नहीं हो रही है: पदाधिकारी
गढ़वा जिला पशुपालन पदाधिकारी डा धनिकलाल मंडल ने कहा कि गलाघोंटू बीमारी का वैक्सीन की आपूर्ति सरकारी स्तर से नहीं हो रही है। खुरपका व मुंहपका बीमारी का टीकाकरण अगस्त माह में शुरू होगा। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। उपलब्ध सीमित संसाधनों में ही बेहतर सेवा देने के लिए प्रयासरत हैं।