Jharkhand: जिसके नाम से कभी थर्राता था इलाका, अब वो मुंडारी गीतों से दे रहा प्रेम का संदेश

जिसके नाम से कभी पूरा इलाका थर्राता जिसका नाम कभी आतंक का प्रयाय था। आज वो शख्स अपने मुंडारी गीतों से लोगों को प्रेम का संदेश दे रहा है। यह कहानी है नक्सलवाद से जुड़े पीएलएफआइ के पूर्व एरिया कमांडर चरकु पाहन की। जो कभी गोली की भाषा बोलते थे।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Wed, 21 Apr 2021 02:16 PM (IST) Updated:Wed, 21 Apr 2021 02:16 PM (IST)
Jharkhand: जिसके नाम से कभी थर्राता था इलाका, अब वो मुंडारी गीतों से दे रहा प्रेम का संदेश
Jharkhand: जिसके नाम से थर्राता था इलाका, अब वो मुंडारी गीतों से दे रहा प्रेम का संदेश। जागरण

खूंटी [दिलीप कुमार] । जिसके नाम से कभी पूरा इलाका थर्राता था, जिसका नाम कभी आतंक का प्रयाय था। आज वो शख्स अपने मुंडारी गीतों से लोगों को प्रेम का संदेश दे रहा है। यह कहानी है, नक्सलवाद से जुड़े पीएलएफआइ के पूर्व एरिया कमांडर चरकु पाहन की। जो कभी गोली की भाषा बोलते थे। आज मुख्य धारा में लौटकर अपनी भाषा संस्कृति के विकास के लिए काम कर रहे हैं। खूंटी जिले के हेसाहातु गांव के रहने वाले चरकु पाहन बताते हैं कि उन्हें अपनी भाषा-संस्कृति से गहरा लगाव था। मुख्यधारा में लौटने के बाद आजीविका के लिए उन्होंने पारंपरिक व आधुनिक खेती में किस्मत आजमायी। लेकिन मुनाफा नहीं हुआ। इसके बाद ठेकेदारी शुरू की। इसके साथ ही मुंडारी गीतों के एल्बम में अभिनय के साथ-साथ आवाज भी देने लगे। उनका कहना है कि मुख्यघारा में रहकर ही विकास की कहानी गढ़ी जा सकती है।

लोगों ने दी अफीम की खेती का सुझाव

ऐसी परिस्थिति में कई लोगों ने उन्हें अफीम की खेती करने का सुझाव दिया। लेकिन चरकु ने बताया कि जब गलत रास्ते को त्याग कर सही रास्ते पर चल पड़े हैं, तो गलत काम नहीं करना है। उनका कहना है कि गांव के लोग पढ़-लिखकर शहरों में जा रहे हैं और शहरों में जाते ही अपनी भाषा संस्कृति से भी दूर हो रहे हैं। पढ़े-लिखे लोगों को अपनी मातृभाषा में बात करने में झिझक महसूस होती है। वे अपने बच्चों के साथ भी हिंदी या अन्य भाषा में बात करना पसंद कर रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में मुंडारी भाषा व उसकी संस्कृति विलुप्त हो जाएगी। इसलिए उन्होंने भाषा और संस्कृति पर काम करने की ठानी और आज मुंडारी भाषा के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए काम कर रहे हैं।

अभिनय करने के साथ गीतों को दी अपनी आवाज

चरकु पाहन अपनी मातृभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अल्बम भी बना रहे हैं। फिलहाल चरकु की दो अल्बम शांति लुतुम रिलीज और जनम जनम करम जनम रिलीज हो चुकी है। दोनों अल्बम मुंडारी भाषा में हैं। दोनों अल्बम को प्रकृति से जुड़े पर्व सरहुल को ध्यान में रखकर बनाया गया है। यूट़यूब पर रिलीज होने वाले अल्बम में चरकु ने अभिनय तो किया ही है, गीतों को अपनी आवाज भी दी है। अल्बम के गीत उसके दोस्त रवि मुंडा ने लिखा है जबकि सागर मुंडा के अलावे अन्य दोस्तों ने गीतों को संगीत से सजाया है। यूट्यूब पर मुंडा आखाडा डीआरएस चैनल पर अल्बम रिलीज किए जारहे हैं। चैनल का एक सप्ताह में करीब सौ सब्सक्राइबर हैं। चैनल को ढाई हजार से अधिक लोगों ने देखा है।

2007 से 12 तक रहा संगठन के साथ

चरकु पाहन ने बताया कि पीएलएफआइ नक्सली संगठन के सदस्यों के गांव आने के दौरान उनसे मिलता था। धीरे-धीरे घनिष्ठता बढ़ता गई और वह 2007 में संगठन से जुड़ गए। बाद में उसे इसका पछतावा हुआ और 2012 में आत्मसमर्पन कर मुख्यधारा में लौट आए। मुख्यधारा में लौटने के बाद चरकु दो वर्ष तक जेल में रहे। अब उसके खिलाफ एक भी मामला लंबित नहीं है।

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