राजकीय सम्मान के साथ पूर्व विधायक नियेल तिर्की को दी गई अंतिम विदाई

पूर्व विधायक नियेल तिर्की के पार्थिव शरीर का राजकीय सम्मान के साथ खूंटीटोली कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार किया गया। डीसी सुशांत गौरव एसपी डॉ. शम्स तब्रेज एसडीओ महेंद्र कुमार सहित कई लोगो ने तिरंगे में लिपटे पूर्व विधायक नियेल के पार्थिव शरीर को अंतिम सलामी दी।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 12:47 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 12:47 PM (IST)
राजकीय सम्मान के साथ पूर्व विधायक नियेल तिर्की को दी गई अंतिम विदाई
राजकीय सम्मान के साथ पूर्व विधायक नियेल तिर्की को दी गई अंतिम विदाई। जागरण

सिमडेगा, जासं । पूर्व विधायक नियेल तिर्की के पार्थिव शरीर का राजकीय सम्मान के साथ खूंटीटोली कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार किया गया। डीसी सुशांत गौरव, एसपी डॉ. शम्स तब्रेज, एसडीओ महेंद्र कुमार सहित कई लोगों ने तिरंगे में लिपटे पूर्व विधायक नियेल के पार्थिव शरीर को अंतिम सलामी दी। वहीं जिला पुलिस बल के जवानों ने शस्त्र झुकाकर सलामी दी। इसके बाद जीईएल चर्च की पंरपरा के अनुसार विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार किया गया।

विदित हो कि  पूर्व विधायक नियेल तिर्की ने सिमडेगा विधान सभा सीट पर तीन टर्म अर्थात 15 वर्षों तक विधायक के रूप में अपनी सेवा दी।  उन्होंने   कंडक्टर से लेकर मिनिस्टर तक का सफर सफलतापूर्वक पूर्ण किया । वे सर्वप्रथम 1995 में भाजपा के निर्मल कुमार बेसरा को हराकर पहली बार संयुक्त बिहार विधान  सभा में पहुंचे।इसी के बाद वे बिहार सरकार में कल्याण मंत्री भी बने।बाद में झारखंड आंदोलन  अंतर्गत अलग राज्य की मांग करते हुए अन्य मंत्री के साथ-साथ इस्तीफा दे दिया।

आखिरकर 2000 में झारखंड राज्य बना। इसके बाद वे 2000 में पुन: भाजपा प्रत्याशी चतुर बड़ाईक को भी हराकर पुन: विधायक बने। जबकि 2005 में वे एक बार भाजपा प्रत्याशी निर्मल कुमार बेसरा को  चुनावी मैदान में पराजित कर विधायक के रूप में निर्वाचित हुए। विदित हो कि 1995 में नियेल तिर्की ने झामुमो से चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी व जानकारी के मुताबिक 1998 में कांग्रेस  पार्टी ज्वाईन कर ली थी। नियेल तिर्की दो बार लोक सभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। 2009 में उन्होंने सीटिंग एमपी सुशीला केरकेट्टा का टिकट कटवाकर चुनाव लड़ा था। हालांकि उन्हें हार मिली थी। वहीं 2014 में खूंटी लोक सभा का सीट कालीचरण मुंडा को दिए जाने के बाद वे पार्टी से इतर जाकर आजसू के टिकट पर चुनाव में उतरे थे। हालांकि इस चुनाव में भी उन्हें हार का सामना   करना पड़ा था।

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