Jharkhand Forest: झारखंड में वन है खुशहाली का आधार, इसके संरक्षण व संबर्धन की जरूरत

Jharkhand Forest वन हैं तो जल है और जल है तो कल है। कोरोना काल की विपदा में हमने वनों के महत्व को और शिद्दत से महसूस किया। हम खुशनसीब हैं कि प्राकृतिक और पूर्वजों के कारण राज्य का वन क्षेत्र राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।

By Kanchan SinghEdited By: Publish:Fri, 26 Nov 2021 04:52 PM (IST) Updated:Fri, 26 Nov 2021 04:52 PM (IST)
Jharkhand Forest: झारखंड में वन है खुशहाली का आधार, इसके संरक्षण व संबर्धन की जरूरत
वनों को सहेज कर रखना और इसके क्षेत्रफल में वृद्धि करना बड़ी चुनौती है।

रांची, राब्यू। वनों की उपयोगिता और उनके महत्व को बताने की आवश्यकता नहीं है। हम सभी जानते हैं कि वन हैं, तो जल है और जल है तो कल है। कोरोना काल की विपदा में हमने वनों के महत्व को और शिद्दत से महसूस किया। झारखंड के वनों से सोखी गई ऑक्सीजन, देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों के मुश्किल वक्त में काम आई। हम खुशनसीब हैं कि प्राकृतिक और पूर्वजों के कारण राज्य का वन क्षेत्र राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।

लेकिन इसे सहेज कर रखना और इसके क्षेत्रफल में वृद्धि करना बड़ी चुनौती है। राज्य गठन के बाद से अब तक लगभग 944 वर्ग किमी वन क्षेत्र में वृद्धि तो कागजी तौर पर हुई है लेकिन लगातार कटाई, खनन से हमारे सघन वन क्षेत्र में गिरावट भी आई है। राज्य सरकार का अगले 25 वर्षों का विजन प्लान न सिर्फ वनों को संरक्षित करने बल्कि सघन वन क्षेत्र को बढ़ाने पर भी होना चाहिए।

वन एवं पर्यावरण विभाग ने झारखंड में क्रमबद्ध तरीके से वनों क्षेत्र को बढ़ावा देने में जुटा है। अगले कुछ वर्षों में पांच प्रतिशत वनावरण में वृद्धि का लक्ष्य तय किया गया है। इसके अलावा सिल्वीकल्चर ऑपरेशन नामक योजना के माध्यम से अवकृष्ट वनों के सघनीकरण का लक्ष्य रखा गया है। वनों के बाहर भी शहरी वानिकी योजना के तहत पौधे लगाए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री जन वन योजना के माध्यम से आम लोगों को भी पौधारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। नदी तटरोपण की योजना पर भी काम हो रहा है। इन तमाम प्रयासों से यदि राज्य में पांच प्रतिशत वन क्षेत्र बढ़ता है तो झारखंड का वन क्षेत्र बढ़कर 35 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा, जो कि एक बड़ी उपलब्धि होगी। राज्य सरकार इस दिशा में प्रयासरत भी है लेकिन एक बड़ी चुनौती विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण की भी है।

भरने होंगे खाली पद, तभी होगा संरक्षण : झारखंड में वनों का संरक्षण एक बड़ी चुनौती है। वन एवं पर्यावरण विभाग में पचास फीसद पद रिक्त हैं। भारतीय वन सेवा के करीब 33 पद रिक्त हैं, वहीं, राज्य वन सेवा के 50 प्रतिशत। वन क्षेत्र पदाधिकारियों के 383 स्वीकृत बल के सापेक्ष कार्यरत बल महज 128 है। 77 प्रतिशत वनपाल एवं 48 प्रतिशत वन रक्षियों की कमी है। हालांकि राज्य सरकार ने रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया तेज की है।

जहां सबसे अधिक घने जंगल, सबसे ज्यादा गरीबी वहीं

झारखंड की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि जहां सबसे अधिक घने वन हैं, वहीं सबसे ज्यादा गरीबी भी है। वन क्षेत्र और इसके करीब रहने वाले जनजातीय समुदाय मुश्किल से पेट भर पाता है। राज्य की वन उपज से लगभग 15 प्रतिशत आबादी का भरण-पोषण होता है। राज्य के जंगलों में पाए जाने वाले केंदु पत्ता, तैलीय बीज, जंगली साग, गोंद, घास एवं जलावन का संग्रहण ही इनकी आय का जरिया है। बाजार न होने से इन्हें अमूल्य वन संपदा का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

आने वाले सालों में दिखेगा कोशिशों का असर

लघु वन पदार्थों के संग्रहण तथा इसका मूल्यवर्धन कर बाजार की उचित व्यवस्था करने से स्थानीय ग्रामीणों के जीविकोपार्जन में सुधार लाया जा सकता है। राज्य सरकार इस दिशा में प्रयासरत है। 24 वन प्रमंडलों में 62 प्रसंस्करण इकाईयों का कार्य करीब पूरा हो चुका है। साल दर साल इन प्रसंस्करण इकाईयों को स्थापित करने की योजना है। इनमें लाह प्रसंस्करण, चिरौंजी प्रसंस्करण, तैलीय बीज प्रसंस्करण, औषधीय पौधों के संग्रहण एवं सुखाने और भंडारण पर जोर दिया जा रहा है। जिसका परिणाम आने वाले दशकों में देखने को मिलेगा।

लघु वन पदार्थो की प्रोसेसिंग एवं बिक्री तंत्र को करना होगा दुरुस्त

झारखंड राज्य प्राकृतिक वन संपदा से परिपूर्ण है। केंदु पत्ता की तरह कई ऐसे लघु वन पदार्थ हैं, जो मौसमी हैं। इसका समुचित संग्रहण, प्रोसेङ्क्षसग एवं बिक्री तंत्र न होने के कारण इसका उपयोग वनवासियों के आर्थिक उत्थान में नहीं हो पा रहा है। प्रत्येक वर्ष मौसमी फल, फूल, औषधियां बगैर उपयोग के व्यर्थ हो जा रही हैं। भविष्य की दिशा निर्धारित करने के लिए यह आवश्यक है कि प्राकृतिक वन पदार्थों का गैर विनाशी संग्रहण, प्रोसेसिंग एवं बाजार से समन्वय स्थापित करने की समुचित व्यवस्था की जाए।

इससे इन वन पदार्थों का समुचित एवं पर्याप्त मूल्य रोजगार के अतिरिक्त साधन के रूप में वनवासियों को प्राप्त हो सके। इस कार्य के लिए जैव विविधता अधिनियम के तहत गठित जैव विविधता समितियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। जैव विविधता अधिनियम के प्रविधानों के तहत जैव संसाधन के वाणिज्यक उपयोग की दिशा में स्थानीय लोगों को लाभ वितरण की व्यवस्था लागू की जाए। यह तभी संभव है जब सभी संस्थाओं एवं राज्य सरकार में पारस्परिक समन्वय प्रभावी रूप से स्थापित हो एवं लक्ष्य आधारित सामयिक समीक्षा तंत्र भी सुचारू रूप से काम करे।

-डॉ. लाल रत्नाकर ङ्क्षसह, पूर्व अध्यक्ष, झारखंड जैव विविधता बोर्ड एवं पूर्व मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक।

वनों का घनत्व बढ़ाने और लोगों को रोजगार से जोडऩे पर जोर

वन विभाग का सारा जोर जंगलों के घनत्व को बढ़ाने और वनों पर निर्भर लोगों के लिए आय के साधन सृजित करने पर है। मुख्यमंत्री के दिशा निर्देश पर इस दिशा में दीर्घकालिक योजना के तहत कार्य किया जा रहा है। सिल्वीकल्चर ऑपरेशन के तहत दबे हुए जंगलों की गुणवत्ता सुधारने के लिए वानिकी कार्य किए जा रहे हैं। झाड़ीनुमा पौधों को हटाया जा रहा है, ताकि वृक्षों की उत्पादन क्षमता बढ़े और इन पर निर्भर ग्रामीणों के लिए रोजगार के साधन सृजित हो सकें। वनों के भीतर जल संरक्षण को लेकर भी कई योजनाएं शुरू की गई हैं। कंटूर ट्रेंच के माध्यम से पानी को रोकने की कोशिश की जा रही है लाह का उत्पादन बढ़ाने और इससे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराने की कोशिशें भी तेज की गईं हैं।

संयुक्त वन प्रबंधन समिति के माध्यम से वनों पर निर्भर परिवारों को दस-दस वृक्ष पर लाह की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है। तीन वर्षों की इस योजना में ट्रेङ्क्षनग से लेकर उत्पादन तक की प्रक्रिया को शामिल किया गया है। वनों के बाहर नदियों के किनारे पौधरोपण की योजना पर लगातार काम किया जा रहा है। साहिबगंज में लोगों को मधु के उत्पादन से जोडऩे का प्रयास तेज किया गया है। इसके अलावा वनों के भीतर ऐसे पौधों को लगाने पर जोर दिया जा रहा है जिससे लोगों की आमदनी बढ़ सके। वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से प्रोसेङ्क्षसग प्लांट को भी संचालित किया जा रहा है।

एनके सिंह

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास)।

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