दस खराब फिल्मों से बेहतर है एक अच्छी फिल्म : अंकुर चक्रवर्ती
फिल्मकार अंकुर ने कहा कि दस खराब फिल्मों से बेहतर है कि एक अच्छी फिल्म बनाएं।
रांची, जागरण संवाददाता। राजधानी रांची में जनसंचार विभागों के खुलने के बाद छात्रों में फिल्मों के प्रति खास रुचि देखने को मिल रही है। शहर के युवा शार्ट टाइम फिल्में बना कर अपने लिए करियर तलाश रहे हैं। ऐसे में उनके सामने फिल्मों में करियर को ले कर कई सवाल खड़े होते हैं। उन प्रश्नों के उत्तर देने के लिए दैनिक जागरण के कार्यक्रम में स्वतंत्र फिल्मकार अंकुर चक्रवर्ती उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि दस खराब फिल्मों से बेहतर है कि एक अच्छी फिल्म बनाएं।
अंकुर की फिल्में अमेरिका, ईजिप्ट और एलेक्जेंड्रीया के फिल्म फेस्टिवल में चयनित हुई हैं। इसके अलावा देश के कई फिल्म फेस्टिवल में उन्हें बेस्ट फिल्म और इन्नोवेटिव स्क्रीनप्ले का खिताब मिला है। कार्यक्रम में संत जेवियर्स कॉलेज, गोस्सनर कॉलेज, केंद्रीय विवि और रांची विवि के प्रशिक्षु फिल्मकारों को उनके सवालों के उत्तर मिले।
गरिमा टोपनो के सवाल नए फिल्मकारों के लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है? का जवाब देते हुए अंकुर ने कहा कि मुकाम हासिल करने के लिए सबसे बड़ी समस्या आपका बजट है। अपने पॉकेट से पैसे लगाकर फिल्म बनाना कुछ समय के बाद आसान नहीं होगा। ऐसे में कैमरा और कंटेंट के अलावा ध्यान बजट पर चला जाता है और फिल्म के साथ इंसाफ नहीं हो पाता है। ये परेशानियां रांची में ज्यादा है क्योंकि यहां आपकी फिल्मों के लिए प्राड्यूसर खोज पाना मुश्किल है।
आदित्य त्रिपाठी ने पूछा कि किस प्रकार की फिल्मों से शुरुआत होनी चाहिए? अंकुर ने इसके जवाब में कहा कि आप अपनी फिल्म के लिए एक सही विषय का चयन करें। ध्यान दें कि आपकी कहानी विश्वास करने योग्य हों। कंटेंट को छोटा रखें और उतना ही दिखाएं जितना आपसे संभव हो। आस-पास के चीजों से फिल्म का प्लॉट चुने, कुछ बड़ा करने की चाह में अक्सर लोग गलतियां कर बैठते हैं।
फिल्मों के लिए यूट्यूब कितना सही प्लेटफार्म है? ऋतिक के सवाल के जवाब में कहा कि आपको कभी सही फीडबैक नहीं दे सकता है। आप अपनी फिल्मों को यूट्यूब पर डालें, लेकिन लाइक्स और व्यूज से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हो सकता है। अगर खुद को परखना है तो फिल्मों को फिल्म फेस्टिवल में भेजें। वहां से मिल रहे फीड बैक से सीखने को मिलेगा।
रांची में फिल्म बनाना कितना मुश्किल है? आशुतोष के सवाल पर अंकुुुर ने कहा कि रांची में फिल्मों के लिए वातावरण बन रहा है। यहां फिल्में बेशक बनाएं लेकिन यहीं तक सीमित नहीं रहें। मुंबई और कोलकाता की फिल्मों को देख कर खुद को परखने की कोशिश करें। ऐसा करने के लिए उन शहरों में जा कर उनके फेस्टिवल में अपनी फिल्में भेजना जरूरी है। कई बार बेहतर दर्शक के लिए भी ऐसा करना जरूरी होता है।