सभी को अपने कर्मों के अनुसार भोगना पड़ता है सुख-दुख : मुनिश्री विशल्य सागर

संसार में सभी प्राणी सुख चाहते हैं और दुख से डरते हैं फिर भी अपने अपने कर्माे के अनुसार दुख भोगना पड़ता है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 06:30 PM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 06:30 PM (IST)
सभी को अपने कर्मों के अनुसार भोगना पड़ता है सुख-दुख : मुनिश्री विशल्य सागर
सभी को अपने कर्मों के अनुसार भोगना पड़ता है सुख-दुख : मुनिश्री विशल्य सागर

जासं, रांची : संसार में सभी प्राणी सुख चाहते हैं और दु:ख से डरते हैं फिर भी अपने अपने कर्मों के अनुसार प्रत्येक प्राणी को सुख-दुख भोगना पड़ता है। जब विपत्ति आती है संकट आते हैं तो सभी प्रभु का स्मरण करते हैं कितु सुख के दिनों में सब भूलकर विषयों भोगों में ही निमग्न रहते हैं। यदि हम अपना जीवन भगवान का स्मरण करते हुए बिताएं तो शायद दु:ख का सामना ना करना पड़े। महामृत्युंजय विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ के पहले दिन सैकडौं की संख्या में दिगंबर जैन भवन में उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच मुनि श्री विशल्य जी महाराज ने ये बातें कहीं ।

इस अवसर पर घट यात्रा निकाली गई। आगे-आगे अष्ट कुमारियां एवं पीछे महिलाएं केशरिया वस्त्र पहने सिर पर कलश लेकर चल रहीं थीं। इंद्रगण श्री जी की प्रतिमा सिर पर विराजमान करके घट यात्रा के साथ चल रहे थे। घट यात्रा में मुनिश्री 108 विशल्य सागर जी साथ चल रहे थे। घटयात्रा वासुपूज्य जिनालय से शुरू होकर आयोजन स्थल दिगंबर जैन भवन हरमू रोड पर आकर समाप्त हुई। आयोजन स्थल पर श्री जी की प्रतिमा को विराजमान किया गया। इसके बाद वेदी शुद्धीकरण , देवगुरु से विधान को प्रारंभ करने की आज्ञा ली गई । ध्वजारोहण श्रीमती विमला देवी संजीव जी पंकज जी अंकित जी गंगवाल परिवार द्वारा किया गया। मंगल कलश की स्थापना की गई। भगवान जिनेंद्र देव सामूहिक अभिषेक के पश्चात शांति धारा करने का सौभाग्य महामृत्युंजय विधान के पात्र सौधर्म, यज्ञ नायक ,मंगल कलश स्थापनाकर्ता झंडारोहण कर्ता के अलावा श्रीमान अशोक कुमार जी सेठी, त्रिलोक जी गंगवाल, नंद लाल जी छाबड़ा, मानिकचंद मोतीलाल काला परिवार को मिला। सायंकाल गुरुवर विशल्य सागर जी की भक्ति एवं शास्त्र प्रवचन ग्वालियर से पधारे पंडित पंडित सत्यकांत जी द्वारा किया गया। डांडिया प्रतियोगिता का आयोजन जैन महिला जागृति द्वारा किया गया, इसमें समाज की महिलाओं पुरुषों एवं बच्चों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। डांडिया के पश्चात भरतपुर से पधारे कलाकारों द्वारा धनंजय कवि की भक्ति का फल नामक लघु नाटिका का मंचन किया गया।

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