झारखंड के तमाड़ में मिले दस हजार साल पुराने मेगालिथ्स

झारखंड के बुंडु-तमाड़ में मिले कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल। बुंडु के भकुआडीह रोड पर दड़दरिया घाट के पास मिले अभिलेखीय साक्ष्य। देवड़ी मंदिर से लगभग छह किमी दूरी पर स्थित विशनडीहा गांव में हजारों की संख्या में मेगालिथ्स बिखरे पड़े मिले। अभी इनकी गणना नहीं हो सकी है।

By M EkhlaqueEdited By: Publish:Tue, 01 Dec 2020 06:00 PM (IST) Updated:Tue, 01 Dec 2020 06:00 PM (IST)
झारखंड के तमाड़ में मिले दस हजार साल पुराने मेगालिथ्स
झारखंड में पाया गया आठ हजार साल पुराने मेगालिथ्स।

संजय कृष्ण, रांची : बुंडू में मुंडाओं का सबसे बड़ा शवागार मिला है। डाल्टन ने करीब 1870 के आस-पास यहां का दौरा किया था। इस पर रिपोर्ट तैयार की थी, इसके बाद इसके संरक्षण का काम आज तक नहीं हुआ। समझ सकते हैं, हम अपनी धरोहरों को लेकर कितने सजग हैं? यह पूरा क्षेत्र ही पुरातात्विक दृष्टि से बेहद खास है। अभी-अभी झारखंड के पुराविद् डा. हरेंद्र प्रसाद सिन्हा ने अपनी टीम के इस इस क्षेत्र का दौरा किया, जिन्हें कई  प्राचीन अभिलेख मिले है। 

 तमाड़ के प्रसिद्ध देवड़ी मंदिर से लगभग छह किमी दूरी पर स्थित विशनडीहा गांव में हजारों की संख्या में मेगालिथ्स बिखरे पड़े मिले। अभी इनकी गणना नहीं हो सकी है, लेकिन इस क्षेत्र में आसपास के गांवों को मिलाकर लगभग 12-13 हजार मेगालिथ्स होने की सूचना है। डा. सिन्हा ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान तीन तरह के  मेगालिथ्स की पहचान हो सकी है-डोलमेनायड सिस्ट, मेनहिर और कैपस्टोन हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि यहां के मेगालिथ्स पर कप मार्क एवं अन्य जीव जंतुओं, विशेषकर सर्प, जिन्हें उत्कीर्ण किया गया है। डा. सिन्हा कहते हैं, बिल्कुल ऐसी ही आकृतियां और कप माक्र्स स्कॉटलैंड आदि देशों में पाई गई हैं, जिनकी तिथि लगभग 8000 ईपू मानी जाती है। भारत में भी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश आदि के मेगालिथों पर इस प्रकार के डिजाइंस दिखते हैं। 

मिला प्राचीन अभिलेख

 तमाड़ व बुंडू के आस-पास आठवीं-दसवीं शताब्दी के कई प्राचीन मंदिर और मूॢतयां मिलती रही हैं, लेकिन अभिलेख पहली बार मिले हैं। डा. सिन्हा कहते हैं कि कुछ स्थानीय लोगों ने यह जानकारी पुरातत्व के छात्र मो इमरान को दी थी। बुंडु के भकुआडीह रोड पर दड़दरिया घाट के पास बड़ा तालाब के बगल में एक पत्थर पर कुछ चीजें लिखी हुई हैं जिसे अभी पढ़ा नहीं जा सका है, लेकिन देखने से वह पुरानी लगती हैं। इसके बाद डा. हरेंद्र सिन्हा ने पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण किया, जिसमें ढेर सारी पुरातात्विक सामग्री मिलीं। इनके अध्ययन से झारखंड के इतिहास पर नई रोशनी पड़ सकती है। 

 डा. सिन्हा ने बताया कि बड़ा तालाब के पास जो अभिलेख मिला है, वह एक चौकोर पत्थर पर उत्कीर्ण है। नौ पंक्तियों का यह अभिलेख लगभग 23 बाई इंच 22 बाई इंच आकार के 9 इंच मोटे प्रस्तर खंड पर एक आयताकार बार्डर के अंदर लिखा हुआ है। लिपि को देखने से अंदाजा लगता है कि यह लगभग दो तीन सौ साल पुरानी देवनागरी लिपि हो सकती है। डा. सिन्हा बताते हैं, बोड़ेया, रांची के राधाकृष्ण मंदिर में भी ऐसी ही लिपि में ऐसे ही प्रस्तर खंड पर लिखा हुआ एक अन्य अभिलेख देखा गया है। लिखी हुई पंक्तियों में 1833 की तिथि का आभास होता है पर अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह शक  संवत या विक्रम। 

 दड़दरिया घाट के समीप ही एक पुराना शिव मंदिर भी है, जिससे संबंधित यह अभिलेख हो सकता है जिसमें इस मंदिर के निर्माण एवं इसके निर्माता के विषय में कुछ जानकारियां हों। इसे पढऩे का प्रयास जारी है। इस अभिलेख की जानकारी यहां के स्थानीय निवासी इशरत हुसैन और दिलीप साहू ने दी। दिलीप साहू  के अनुसार इस क्षेत्र में ऐसे कई अभिलेख उपलब्ध थे, लेकिन घरों के निर्माण के क्रम में वे सब नष्ट हो गए। हालांकि अब भी जो बचा है, उसे बचाने की जरूरत है। मेगालिथ्स के बारे में डा. सिन्हा कहते हैं कि तमाड़ का यह पुरातात्विक स्थल पूरी दुनिया में मेगालिथ्स की समस्या सुलझाने के दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

chat bot
आपका साथी