केंद्रीय कृषि विवि के वैज्ञानिक बोले- मधुमक्खी पालन का सर्वोत्तम समय सितंबर-अक्टूबर

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर एडवांस्ड एग्रीकल्चरल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (कास्ट) द्वारा समेकित कृषि प्रणाली का एक घटक मधुमक्खीपालन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ऑनलाइन मोड में प्रारंभ हुआ। बिहार के वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार ने कहा मधुमक्खीपालन प्रारंभ करने का सर्वोत्तम समय सितंबर-अक्टूबर और फरवरी-मार्च।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 04:15 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 04:15 PM (IST)
केंद्रीय कृषि विवि के वैज्ञानिक बोले- मधुमक्खी पालन का सर्वोत्तम समय सितंबर-अक्टूबर
मधुमक्खी पालन का सर्वोत्तम समय सितंबर-अक्टूबर। जागरण

रांची, जासं । बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर एडवांस्ड एग्रीकल्चरल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (कास्ट) द्वारा 'समेकित कृषि प्रणाली का एक घटक : मधुमक्खीपालन' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ऑनलाइन मोड में प्रारंभ हुआ। डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार के वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार ने 'मधुमक्खी इकाई की स्थापना और परागण में इसका महत्व' विषय पर कहा कि मधुमक्खीपालन प्रारंभ करने का सर्वोत्तम समय सितंबर-अक्टूबर और फरवरी-मार्च है, जिस समय खेतों और जंगलों में प्रचुरता में हरियाली रहती है।

उन्होंने मधुमक्खियों द्वारा प्याज, गाजर, सरसों, लीची और फूलगोभी फसल के परागन के महत्व पर विशेष प्रकाश डाला। नाहेप-कास्ट के प्रधान अन्वेषक डॉ एमएस मलिक ने स्वागत एवं विषय प्रवेश करते हुए कहा कि फसलों में 70-80% पर परागण मधुमक्खी ही करती है और शहद, रॉयल जेली और मधुमक्खी विष जैसे उत्पाद उपलब्ध कराती है जिसकी औषधि और सौंदर्यप्रसाधन उद्योग में काफी मांग है। इसे फलों के बाग में या फसलों के प्रक्षेत्र में बिना किसी अतिरिक्त भूमि और श्रम के बहुत कम लागत पर पाला जा सकता है जिससे किसानों को काफी अतिरिक्त लाभ प्राप्त हो जाता है। यूं तो देश में चार प्रकार की मधुमक्खी पाई जाती है किंतु बॉक्स में केवल भारतीय और इटालियन मधुमक्खी ही पाली जा सकती है।

झारखंड में मधुमक्खीपालन की प्रचुर संभावना

ड. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर ड. रामाश्रित सिंह ने कहा कि झारखंड और छत्तीसगढ़ में करंज और वनतुलसी के क्षेत्र में मधुमक्खीपालन की प्रचुर संभावना है और औषधीय गुणों के कारण इनका बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता है । किंतु किसानों में जागरूकता की कमी और सुविधासंपन्न प्रशिक्षण केंद्र उपलब्ध नहीं रहने के कारण किसान मधुमक्खी पालन की आधुनिक तकनीकों और प्रसंस्करण विधियों से अवगत नहीं हो पाते और  आय के इस महत्वपूर्ण स्रोत का लाभ नहीं उठा पाते।

बीएयू के कीट विज्ञान विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ मिलन कुमार चक्रवर्ती ने 'मधुमक्खी के प्राकृतिक शत्रुओं और रोगों तथा उनके प्रबंधन' पर अपने विचार रखे। शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दविंदर सिंह ने प्रशिक्षणार्थियों को मधुमक्खी पालन में रिकॉर्ड कीपिंग की विधियों और महत्ता से अवगत कराया। ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों से 50 वैज्ञानिकों, उद्यमियों, स्नातकोत्तर छात्र-छात्राओं और किसानों ने भाग लिया।

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