डॉ केके सिन्हा रेडक्रॉस सोसाइटी में मरीजों का करते थे निश्शुल्क इलाज

झारखंड के प्रख्यात न्यूरो फिजिशियन डॉ केके सिन्हा के निधन से चिकित्सा जगत में शोक की लहर है। वे रेडक्रॉस में निश््शुलक इलाज करते थे।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 27 Apr 2019 05:58 AM (IST) Updated:Sat, 27 Apr 2019 06:48 AM (IST)
डॉ केके सिन्हा रेडक्रॉस सोसाइटी में मरीजों का करते थे निश्शुल्क इलाज
डॉ केके सिन्हा रेडक्रॉस सोसाइटी में मरीजों का करते थे निश्शुल्क इलाज

संजय कुमार, रांची :

झारखंड के प्रख्यात न्यूरो फिजिशियन डॉ केके सिन्हा के निधन से चिकित्सा जगत में शोक की लहर है। वर्षो तक आरएमसीएच के डॉक्टर्स कॉलोनी में डॉ केके सिन्हा के साथ रहे एवं उनके गांव मनेर से 10 किमी दूर चेसी निवासी डॉ.अजय कुमार सिंह जो आरपीएस हॉस्पीटल के निदेशक भी हैं, उनके निधन से मर्माहत हैं। उनके बारे में संस्मरण बताते हुए कहते हैं, पटना जिला के आसपास गांव के रहने के कारण उनके परिवार से काफी लगाव था। मेरे पिताजी भी डॉक्टर थे। रिम्स के मेडिकल कॉलोनी में हमलोग वर्षो तक साथ रहे। विदेश से लौटने के बाद 1961 में पटना में ज्वाइन किए। 1962 में आरएमसीएच में जो वर्तमान में रिम्स है, में ट्यूटर इन मेडिसिन ज्वाइन किए थे। 1968-69 से बड़ागाई में अपना घर बनाकर रहने लगे थे। 1976 में प्रोफेसर में प्रमोशन होने की संभावना थी। परंतु बिहार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री बिंदेश्वरी दुबे के व्यवहार से नाराज होकर उस वर्ष त्यागपत्र दे दिया। वे 1980 से लेकर 1998 तक मोरहाबादी मैदान स्थित रेडक्रॉस सोसाइटी में प्रत्येक रविवार को मरीजों को देखने जाते थे। वहां निश्शुल्क देखते थे। गरीब मरीजों को तो रविवार का इंतजार रहता था। जब लगने लगा कि यहां नंबर लगाने में कुछ लोग गड़बड़ कर रहे हैं, तब देखना बंद कर दिया। अजय सिंह ने कहा कि पिछले छह माह से लोगों को देखना बंद कर दिए थे। परिवार में एक लड़का, तीन लड़की, एक पोता एवं एक पोती है। आने वाली पीढ़ी में उनके परिवार में कोई डॉक्टर नहीं है। बेटा हेमंत सिन्हा का व्यवसाय है। तीन बेटी सुधा, चित्रा एवं मिताली है। एक बेटी रांची में रहती है और दो बाहर। पोती यूएसए में कार्यरत है। पोता कुशाग्र पढ़ रहा है। पत्नी के कहने पर विदेश से लौटे थे

डॉ अजय सिंह ने कहा, वे फरवरी 1958 में इंग्लैंड चले गए थे। वहां उन्हें जूनियर हाउस ऑफिसर की नौकरी मिल गई। एक साल बाद वे एमआरसीपी की परीक्षा पास कर गए। वहां जिस हॉस्पीटल में नौकरी मिली वहां न्यूरोलॉजी एवं न्यूरोसर्जरी का एक ही पद था। वे न्यूरोसर्जरी करने लगे। चार वर्ष वहां रहे। इस बीच पत्नी घर में हंगामा करने लगी कि जिंदगी भर विदेश में ही रहेंगे क्या। फिर वे वापस भारत आ गए। जब दिए त्यागपत्र तब वेतन था 1600 रुपये

अजय सिंह आरएमसीएच से डॉ केके सिन्हा के त्यागपत्र के बारे में संस्मरण सुनाते हुए कहते हैं कि हमलोग बैठे थे तो एक बार अपने त्यागपत्र के बारे में केके सिन्हा कहने लगे, 1976 के आसपास मेरा प्रैक्टिस ठीक से चल रहा था। उस समय मेरे क्लिनिक का खर्च 2000 रुपये और मेरा वेतन 1600 रुपये था। लगा कि मैं अपने काम के साथ न्याय नहीं कर पा रहा हूं। प्रमोशन भी देने को स्वास्थ्य मंत्री तैयार नहीं थे। इस कारण त्यागपत्र देना ही जरूरी समझा।

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