Doctors Day 2021: निगेटिव होने के पांचवें दिन ही किया पहला ब्लैक फंगस मरीज का ऑपरेशन

कोरोना काल में डाक्टरों ने अपनी जान दाव में रख मरीजों का इलाज किया और आगे भी कर रहे हैं। कोरोना की पहली लहर से लेकर दूसरी लहर तक कई ऐसे उदाहरण मिले जिसमें देखा गया कि डाक्टर पूरी शिद्दत के साथ मरीजों के इलाज में जुटे रहें।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Thu, 01 Jul 2021 01:15 PM (IST) Updated:Thu, 01 Jul 2021 01:17 PM (IST)
Doctors Day 2021: निगेटिव होने के पांचवें दिन ही किया पहला ब्लैक फंगस मरीज का ऑपरेशन
Doctors Day 2021: निगेटिव होने के पांचवें दिन ही किया पहला ब्लैक फंगस मरीज का ऑपरेशन। जागरण

रांची [अनुज तिवारी] । कोरोना काल में डाक्टरों ने अपनी जान दाव में रख मरीजों का इलाज किया और आगे भी कर रहे हैं। कोरोना की पहली लहर से लेकर दूसरी लहर तक कई ऐसे उदाहरण मिले जिसमें देखा गया कि डाक्टर पूरी शिद्दत के साथ मरीजों के इलाज में जुटे रहें। इसी कड़ी में एक ऐसे डाक्टर का नाम सामने आया जो कोविड पॉजिटिव होने के बाद भी ब्लैक फंगस जैसे मरीजों के बारे में ऑनलाइन जानकारी लेते रहें और जैसे ही निगेटिव हुए उसके बाद उन्होंने पहला ब्लैक फंगस से संक्रमित मरीज का सफल ऑपरेशन कर उसे एक नई जिंदगी भी दी।

ईएनटी सर्जन डा अभिषेक कुमार रामाधीन ने उस चुनौतीपूर्ण समय में मरीजों के इलाज का बीड़ा उठाया जब ब्लैक फंगस जैसी बीमारी पूरे राज्य में बढ़ती जा रही थी। उन्होंने निगेटिव होने के बाद अब तक राज्य भर में सबसे अधिक 28 ब्लैक फंगस के मरीजों के आंखो का ऑपरेशन किया है।

कोरोना के गंभीर बीमारी से थे ग्रस्त

डा रामाधीन कोरोना के गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे। उनका सीटी स्कोर 20 तक पहुंच गया था, जो काफी गंभीर स्थिति बताता है। फेफड़े में संक्रमण काफी अधिक था। अस्पताल में भर्ती रहने के बाद वे 29 अप्रैल को डिस्चार्ज हुए। डाक्टरों ने उन्हें कम से कम एक माह तक आराम करने की सलाह दी थी। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पांच मई से ब्लैक फंगस के मरीजों को देखना शुरू कर दिया और मेडिका अस्पताल में उन्होंने ब्लैक फंगस का पहले मरीज के आंख का ऑपरेशन किया।

डा रामाधीन बताते हैं कि जब वो कोरोना निगेटिव हुए थे उस समय मई माह की शुरुआत हो चुकी थी और कोरोना वायरस ने अपना विस्तार करना शुरू कर दिया था। ब्लैक फंगस जैसे मामले बढ़ने लगे थे और लोगों में इसे लेकर गजब बैचेनी और डर दिख रहा थ। इस स्थिति को देखते हुए उन्होंने इस महामारी के बीच मरीजों का इलाज करना चुना और डाक्टर के जो फर्ज होते हैं उसी के अनुसार इलाज किया। जिसका परिणाम यह रहा है कि ऐसे मरीजों को बचाया जा सका। हालांकि इस बीच कुछ असफलता भी जरूर हाथ लगी, जिससे कुछ ना कुछ सीखने का मौका मिलता रहा।

खुद थी सांस की समस्या, पर मरीजों की धड़कन ठीक करने में जुट गए

रिम्स के कार्डियोलॉजिस्ट डा प्रशांत कुमार ने कोरोना काल में खुद संक्रमित होने का डर छोड़ मरीजों का इलाज करते रहें। लगातार काेविड डयूटी में रहने के बावजूद उन्होंने हमेशा मरीजों के दिल की बीमारी को गंभीरता से देखा और इलाज किया। डयूटी करते वक्त डा प्रशांत कुमार अप्रैल माह में संक्रमित हो गए और उन्हें भर्ती कराना पड़ा। हालांकि उन्होंने पांच दिनों में अस्पताल से छुट्टी ली और मरीजों के उपचार में ऑनलाइन जुट गए। इस बीच वे पॉजिटिव ही थे लेकिन मरीजों का इलाज करने का जज्बा उन्हें एक नई ऊर्जा देती गई।

डा प्रशांत बताते हैं कि निगेटिव होने के बाद उन्होंने इंंतजार कर रहे सभी मरीजों का इलाज करना शुरू किया और उन्हें उनकी पीड़ा से राहत दिलायी। उन्होंने अभी तक करीब 100 से अधिक एंजियोप्लास्टी और एंजियोग्राफी की। साथ ही पेसमेकर भी लगाने काम जारी रखा। आज कार्डियोलॉजी विभाग के मरीज इन्हें भगवान से कम नहीं मानते हैं और इनके इलाज से मरीजों को लाभ भी मिल रहा है।

जब कोई नहीं कर पाया इलाज तो डा शीतल मलुआ ने बचायी जान

रिम्स के सर्जन डा शीतल मलुआ ने कई सर्जरी की है। कई लोगों की जाने बचायी है। इसी तरह कई और भी सर्जन हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की है। लेकिन एक शिक्षिका ने डा शीतल मलुआ को भगवान का दर्जा दिया है। उन्होंने बताया कि जब वो 2018 में पेट दर्द को लेकर कई डाक्टरों को दिखाया, निजी अस्पताल में भर्ती भी हुई लेकिन उनकी पीड़ा कम नहीं हो सकी।

स्थिति बिगड़ती जा रही थी और धीरे-धीरे पानी पीना भी मुश्किल हो गया था। इस बीच उसने डा शीतल मलुआ से दिखाया और उसने पहली ही बार में उसके दर्द का कारण बता दिया। उन्होंने बताया कि उनकी छोटी और बड़ी आंत आपस में उलझ गई थी, जिस कारण उन्हें दर्द हो रहा है। इसके कुछ माह बाद उनका ऑपरेशन हुआ और आज वे बिल्कुल स्वस्थ्य है।

बच्चों को तीसरी लहर से बचाना ही सबसे बड़ा कर्तव्य होगा

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा श्याम सिडाना बताते हैं कि डाक्टर्स डे पर सबसे बड़ा कर्तव्य होगा कि कैसे बच्चों को आने वाले तीसरी लहर से बचाया जाए। उन्होंने बताया कि ग्रामीण इलाकों के डाक्टरों को बीमारी पहचानने और इसके इलाज को लेकर उन्हें बताया जा रहा है। वे खुद वैसे इलाकों में जाकर बच्चों के इलाज में सावधानी बरतने जैसी सलाह डाक्टरों को दे भी रहे हैं।

वे बताते हैं कि पहले व दूसरी लहर में जिस तरह से बीमारी बढ़ी उसके बाद अभिभावक सबसे अधिक अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहें। और अब जब तीसरी लहर में सीधे बच्चों को जोड़ा जा रहा है तो ऐसे में अभिभावकों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। ऐसे अभिभावक जब आ रहे हैं उन्हें हर संभावित सुरक्षा के बारे में बताया जा रहा है। साथ ही अधिक चिंता ना करने की भी सलाह दे रहे हैं।

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