Jharkhand Corona Update: शहरों से आगे गांवों में भी बढ़ रहा दूसरी लहर का कहर
कोरोना की दूसरी लहर ने गांवों की बुरी तरह अपनी चपेट में ले लिया है। हर गांव में बड़ी संख्या में लोग खांसी सर्दी जुकाम बदन दर्द से पीड़ित हैं। वह इसे सामान्य मानकर ही आसपास के डॉक्टरों से दवा ले रहे हैं।
रांची, प्रदीप शुक्ला। राज्य में एक नई मुसीबत की आहट सुनाई दे रही है। यह मुसीबत उन तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं द्वारा वैक्सीन को लेकर शुरुआत में दिए गए बयानों से पैदा हुए भ्रम से उपजी है, जिसके निदान के लिए अब गठबंधन सरकार को दो-चार होना पड़ रहा है। कुछ गांवों में कोरोना जांच और वैक्सीन के लिए जा रही स्वास्थ्य विभाग की टीमों को खदेड़ा जा रहा है। उन पर हमले हो रहे हैं। कई जगह तो पंचायतों ने बाकायदा बैठक कर ऐलान कर दिया है कि उनकी पंचायत में कोरोना रोकथाम से संबंधित कोई भी गतिविधि नहीं करने दी जाएगी। इस नई समस्या से स्वास्थ्यर्किमयों से लेकर जिला प्रशासन तक के हाथ-पांव फूले हुए हैं। हालांकि ऐसी समस्या अभी कम जगह पर ही सामने आई है, लेकिन यह बड़ी चिंता का विषय है। अब जब कोरोना गांवों में कहर बरपा रहा है तो ऐसी अफवाह जान-माल के लिए बड़ा संकट बन सकती है।
दिमाग पर थोड़ा सा ही जोर डालेंगे तो ऐसे तमाम बयान याद आ जाएंगे, जिनमें भारतीय वैक्सीन की गुणवत्ता को लेकर खूब हो-हल्ला मचाया गया था। विपक्षी दलों के कई बयानबीर नेताओं ने बाकायदे इन्हें खारिज कर दिया था। टीवी चैनलों की बहसों में अनगिनत पार्टियों के कई नेता ऐसी ही ओछी बयानबाजी कर रहे थे। यहां तक गठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस के कुछ बड़े नेता भी गाहे-बगाहे यह कह रहे थे कि सबसे पहले प्रधानमंत्री को खुद यह वैक्सीन लगवानी चाहिए, ताकि इन भारतीय वैक्सीन पर जनता का भरोसा कायम हो सके। बेशक अब ऐसे ही तमाम नेता सुबह से शाम तक इन्हीं वैक्सीनों की कमी को लेकर केंद्र सरकार को घेर रहे हैं। उधर गैर-जिम्मेदाराना बयानों से ग्रामीण इलाकों में यह भ्रम पैदा हो गया है कि वैक्सीन लगवाने से वे बीमार हो जाएंगे तथा भविष्य में कई अन्य तरह की परेशानियां भी खड़ी हो सकती हैं। कुछ अराजक लोग ऐसी अफवाह अभी भी लगातार फैला रहे हैं, जिसके दुष्परिणाम विरोध के रूप में दिख रहे हैं।
कोरोना की दूसरी लहर ने गांवों की बुरी तरह अपनी चपेट में ले लिया है। हर गांव में बड़ी संख्या में लोग खांसी, सर्दी, जुकाम, बदन दर्द से पीड़ित हैं। वह इसे सामान्य मानकर ही आसपास के डॉक्टरों से दवा ले रहे हैं। बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी हो रही हैं। वह यह मानने को तैयार नहीं हो रहे हैं कि उन्हें कोरोना हुआ होगा। मुसीबत यही है। राज्य सरकार इससे चिंतित भी है। पिछले तीन दिनों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी विधायकों, सांसदों से वर्चुअल बैठक के जरिये संवाद किया है। सबकी चिंता गांवों को लेकर है। सभी जानते हैं कि शहरी स्वास्थ्य ढांचा पहले से ही हांफ रहा है। ऐसे में गांवों में कोरोना ने तबाही मचाना शुरू कर दिया तो इस पर नियंत्रण दुरूह होगा। वहां स्वास्थ्य ढांचा पहले से ही ध्वस्त है। डॉक्टर, नर्स से लेकर हेल्थ वर्कर तक का अभाव है। सतर्कता बरतते हुए राज्य सरकार ने ग्रामीणों के स्वास्थ्य जांच के लिए हजारों आंगनबाड़ी सेविकाओं को लगाया है। उनकी जिम्मेदारी है कि घर-घर जाकर बुखार, खांसी-जुकाम सहित अन्य बामारियों से पीड़ित लोगों के आंकड़े एकत्र करें, ताकि सही स्थिति का पता चल सके और सरकार बेहतर ढंग से कार्ययोजना बना कोरोना पर नियंत्रण पा सके।
अब जब सभी को मालूम है कि कोरोना से बचाव का एकमात्र कारगर तरीका जल्द से जल्द सभी को टीका लगवाना है। ऐसे में गांवों में फैली यह अफवाह आने वाले समय में नई मुसीबत खड़ी कर सकती है। कुछ गांवों में तो ग्रामीणों ने बैठक कर सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि गांव में कोरोना से संबंधित किसी प्रकार का सर्वे नहीं करने दिया जाएगा और न ही वैक्सीन लगवाएंगे। इस बीच स्वास्थ्य विभाग के अफसर गांवों में पहुंच रहे हैं और ग्रामीणों को समझा रहे हैं। राज्य सरकार भी जागरूकता के तमाम कार्यक्रम चला रही है, ताकि फिजूल अफवाहों को रोका जा सके। इस परिस्थिति में शासन-प्रशासन के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों पर अब बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। उन्हें गांव-गांव घूमकर ग्रामीणों में भरोसा पैदा करना चाहिए। पक्ष-विपक्ष सभी को एकजुट होकर इससे लड़ना होगा। सभी को समझना होगा कि यह समय दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करने का है। कुछ बयानवीर अगंभीर नेताओं की सुलगाई इस आग को तत्काल न बुझाया गया तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। पोलियो ड्राप के खिलाफ एक समुदाय विशेष में फैलाए गए भ्रम के दुष्परिणाम से हम सभी बखूबी वाकिफ ही हैं।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]