गोद में उठाकर मरीजों को ले जाने की मजबूरी

रिम्स के इमरजेंसी में भर्ती एक 75 वर्षीया मरीज को उसके बेटे ने गोद में उठाकर ले जाया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 15 Oct 2019 03:03 AM (IST) Updated:Tue, 15 Oct 2019 06:14 AM (IST)
गोद में उठाकर मरीजों को ले जाने की मजबूरी
गोद में उठाकर मरीजों को ले जाने की मजबूरी

जागरण संवाददाता, रांची : रिम्स के इमरजेंसी में भर्ती एक 75 वर्षीया मरीज को उसके बेटे ने गोद में उठाकर 150 मीटर दूर दूसरे विभाग में ले जाकर इलाज कराया। यह एक बेटे की मां के प्रति प्रेम को तो दर्शाता ही है, लेकिन यह रिम्स के मूलभूत सुविधाओं के कमी की भी पोल खोल रहा है। दरअसल, उस मरीज को डॉक्टरों ने डेंटल विभाग में इलाज के लिए ले जाने को कहा। परिजन ने काफी देर तक ट्रॉली का इंतजार किया। उसने कई बार इमरजेंसी के बाहर ट्रॉली मैन से ट्रॉली के लिए गुहार लगाई। लेकिन ट्रॉली खाली नहीं है कहकर उसे लौटा दिया। डेंटल विभाग इमरजेंसी से 150 मीटर दूर है। जब ट्रॉली नहीं मिला तो उसने अपनी मां को गोद में उठाया और डेंटल विभाग के लिए निकल पड़ा। जब उसे ट्रॉली नहीं मिला तो उसके आंखों में आंसू तक आ गए। रिम्स में इस तरह की लापरवाही और मानवीय संवेदना को चोट पहुंचाने वाली घटना नई नहीं है। कई बार मरीज व परिजन को इस वजह से काफी परेशानी उठानी पड़ती है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में रिम्स, मरीजों को ट्रॉली तक नसीब नही

रिम्स में बेशक अच्छे-अच्छे विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम है। अत्याधुनिक मशीन व चप्पे-चप्पे में फैले रिम्स के कर्मचारी है। लेकिन जो मूलभूत सुविधाएं अस्पताल के बाहर होनी चाहिए उसी की कमी दिन-रात लगी हुई है। रिम्स में एक तो जरूरत के हिसाब से ट्रॉली की कमी है। बावजूद अधिकांश ट्रॉली ओपीडी कॉम्पलेक्स जाने के रास्ते में ताला लगाकर बंद रहती है। गिने चुने ट्रॉली ही इमरजेंसी गेट के बाहर रहते है। कई बार एंबुलेंस में सीरियस मरीज आता है तो ट्रॉली के इंतजार में घंटो एंबुलेंस में पड़े रहते है। इसके बाद भी ताला खोलकर ट्रॉली लाने के बजाय कर्मी मरीज के परिजन से बकझक करने लगते है।

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सीटी स्कैन खराब, रुकी कैंसर मरीजों की रेडियोथेरेपी

जागरण संवाददाता, रांची : रिम्स प्रबंधन की लापरवाही के कारण डेढ़ दर्जन कैंसर के मरीजों को रेडिएशन नहीं मिल रहा है। ओंकोलॉजी विभाग (कैंसर विभाग)का सीटी स्कैन खराब होने से यह परेशानी हो रही है। पिछले डेढ़ माह से सीटी स्कैन मशीन काम नहीं कर रही है। इस कारण मरीज रिम्स में आकर वापस लौट जा रहे हैं। इसके बावजूद खराब मशीन को दुरुस्त नहीं कराया जा रहा है, जबकि सिर्फ रिम्स में ही लीनियर एक्सलेरेटर की व्यवस्था है। निजी अस्पतालों में इसकी सेवा लेने के लिए मोटी राशि खर्च करनी पड़ती है। रिम्स में लीनियर एक्सलेरेटर यानी रेडिएशन के लिए किसी भी तरह का शुल्क नहीं देना पड़ता है।

उपचार की प्लानिंग के लिए जरूरत पड़ती है सीटी स्कैन की

कैंसर के मरीजों के इलाज की प्लानिंग के लिए सीटी स्कैन का सहारा लिया जाता है। इसमें रेडिएशन किस प्वाइंट पर और कितना देना है, इसके लिए इस्तेमाल किया जाता है। बिना इसके रेडिएशन देना मरीज के हित में सही नहीं होगा। इसलिए रिम्स के चिकित्सक चाहकर भी रेडिएशन नहीं दे पा रहे हैं।

इन मरीजों को पड़ती है सीटी स्कैन की आवश्यकता

कैंसर के इलाज के दौरान इसकी आवश्यकता पड़ती है। इसमें लंग्स कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, मुंह व गले का कैंसर, पेट का कैंसर और अन्य कैंसर में बिना सीटी स्कैन के रेडिएशन देने में परेशानी होती है। 'कुछ दिनों से सीटी स्कैन खराब है। कैंसर के मरीजों के इलाज की प्लानिंग के लिए इसकी आवश्यकता पड़ती है। इसके बिना मरीज को रेडिएशन देने में परेशानी होती है। मशीन को दुरुस्त कराने की प्रक्रिया चल रही है।'

डॉ.अनूप कुमार

एचओडी, ओंकोलॉजी विभाग। 'इस संबंध में सूचना मिली है। लेकिन, अद्यतन जानकारी ओंकोलॉजी विभाग द्वारा नहीं दी गई है। मशीन को बनने का निर्देश दिया गया था। इस संबंध में विभाग बातचीत करूंगा।'

डॉ.डीके सिंह, निदेशक, रिम्स एईआरबी ने रिम्स के लाइसेंस को रोका

शक्ति सिंह, रांची

रिम्स प्रबंधन और कैंसर जांच उपकरण मुहैया करनेवाली कंपनी की लापरवाही के कारण रांची में बेहतर तकनीक के साथ कैंसर जांच का काम नहीं हो पा रहा है। यह सिर्फ लापरवाही का मामला है या कुछ और अब जांच के बाद ही कुछ पता चल सकेगा। बहरहाल एटोमिक एनर्जी रिसर्च रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) ने रिम्स के लाइसेंस के आवेदन को होल्ड पर रख दिया है। रेडियोथेरेपी विभाग में वी-मैट प्रोग्रामर (रेडिएशन उपकरण) से जुड़ीं कमियां और कैथलैब में लेड फ्लैब्स की व्यवस्था नहीं होने पर एईआरबी ने अपनी आपत्ति जताई है। इन कमियों को दूर करने के बाद ही रिम्स में आ रही एक और नई लीनियर एक्सलेटर मशीन के संचालन की अनुमति दी जाएगी।

स्पष्ट है कि करोड़ों रुपये के कैंसर रेडिएशन उपकरण के संचालन का मामला पूरी तरह खटाई में चला जाएगा। ऑडिट ऑब्जेक्शन का जवाब नहीं दिया गया है। नतीजा है कि पांच साल पहले कैंसर चिकित्सा की पहल हुई थी, वह कायदे से जमीन पर नहीं उतर रही है। अगर लाइसेंस समय पर नहीं मिला,तो इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ेगा, क्योंकि दूृसरे लीनियर एक्सलेरेटर की सुविधा शुरू होने से मरीजों को सहूलियत होगी। कार्डियोलॉजी के कैथ लैब की व्यवस्था पर भी सवाल

एईआरबी ने कार्डियोलॉजी विभाग के कैथलैब पर भी सवाल उठाया है। कैथलैब में ओटी टेबल में लेड फ्लैब्स लगाने को कहा है, ताकि मरीजों पर प्रत्यक्ष तौर पर रेडिएशन का असर न पड़े। लेकिन,अब तक इस समस्या का निदान नहीं निकाला जा सका है। कई महीने बीत जाने के बाद भी व्यवस्था जस की तस है।

कंपनी के रोक रखे हैं सात करोड़ रुपये

पहली एक्सलेरेटर मशीन को लगाए हुए पांच वर्ष हो गए हैं। लेकिन, इन पांच वर्षो में रिम्स द्वारा कंपनी को सात करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया है। लीनियर एक्सलेरेटर और वी मैट प्रोग्रामर की कीमत करीब 20 करोड़ रुपये थे। इलेक्टा कंपनी ने इसकी सुविधा उपलब्ध कराई गई थी।

वी-मैट प्रोग्रामर से बढ़ जाती है रेडिएशन की जांच की गुणवत्ता

वी-मैट प्रोग्रामर इंस्टॉल होने से रेडिएशन जांच की गुणवत्ता और बेहतर हो जाती है। शरीर के विशेष भाग में रेडिएशन देने के लिए इस प्रोग्रामर की महत्ता बढ़ जाती है। सीटी स्कैन की मदद से प्लानिंग में मदद मिलती है।

'एईआरबी ने रेडिएशन को लेकर रिम्स के लाइसेंस को होल्ड पर रखा है। इस संबंध में कंपनी और एईआरबी के साथ पत्राचार किया गया है, ताकि एईआरबी द्वारा जिन बिंदुओं पर आपत्ति जताई गई है, उसका समाधान तत्काल निकाला जा सके।'

डॉ.डीके सिंह

निदेशक,रिम्स

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