आओं रोपें अच्छे पौधे:: अब जरूरत है वन को दोबारा स्थापित करने का

कृषि वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम एवं किसानों के निरंतर प्रयास से भरपुर प्रयास हो रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 01:54 AM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 01:54 AM (IST)
आओं रोपें अच्छे पौधे:: अब जरूरत है वन को दोबारा स्थापित करने का
आओं रोपें अच्छे पौधे:: अब जरूरत है वन को दोबारा स्थापित करने का

जागरण संवाददाता, रांची : कृषि वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम एवं किसानों के निरंतर प्रयास से भारत वर्ष में हरित क्रांति का सपना साकार हुआ। मगर हरित क्रांति के इस ज्वार में एक ओर तो वनों का विनाश हुआ। वहीं दूसरी ओर कृषि उत्पादन क्षमता में अपार वृद्धि हेतु रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशी दवाओं का प्रयोग भी विभिन्न रूप में किया गया। इससे बड़े स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण एवं मृदाक्षरण की समस्याएं पैदा हो गई। जनसंख्या में अधिकाधिक वृद्धि, बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण एवं अन्य बहुआयामी कारणों से वनों का विनाश गंभीर स्तर तक हो गया। ये बातें बिरसा कृषि विवि के वनवर्धन और कृषि वानिकी के अध्यक्ष डॉ. एमएस मलिक ने कही। उन्होंने कहा कि वन के घनत्व में कमी के कारण ही जल की कमी होने लगी है, इससे कृषि उत्पादन प्रभावित होने लगा है। ऐसे में अब जरूरत है तो वन को दोबारा स्थापित करने का।

कृषिवानिकी भूमि और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का सामूहिक रूप है, जिसमें अनाज, चारा आदि के लिए फसलें उगाई जाती है। इसके साथ ही वृक्षों, झाड़ियों तथा फलदार वृक्षों को लगाकर वनोत्पाद के द्वारा किसानों का आर्थिक विकास किया जाता है। इससे मृदा एवं जल संरक्षण भी होने लगती है। जो टिकाऊ कृषि के लिए जरूरी है। कृषिवानिकी में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तथा कृषि का अनुसार वृक्षों को लगाया जाता है। कृषि वानिकी के दो मुख्य उद्देश्य है। पहला उद्देश्य है कि कृषि वानिकी में लगाए गए वृक्षों द्वारा न केवल वन उत्पाद का लाभ समाज को प्राप्त कराना बल्कि हरियाली वाले क्षेत्रफल में बढ़ोतरी के फलस्वरूप बिगड़े हुए पर्यावरण परिवेश में सुधार करना। वहीं दूसरा उद्देश्य है कि किसान के लिए जलावन, चारा, तैलिए बीज, प्राकृतिक रंग, गोंद , कंद, रेशा, औषधि, इमारती लकड़ी, बल्लियां कुटीर उद्योग हेतु कच्चे माल आदि की पैदावार से बहुत हद तक किसानों का आर्थिक विकास किया जा सकता है।

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वानिकी को बढ़ावा देने के लिए सरकार का रवैया उदासीन

राज्य में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने को लेकर सरकारों का रवैया कुछ उदासीन रहा। झारखंड की अधिसंख्य भूमि में एक फसलीय खेती होती रही है। राज्य की जीडीपी में कृषि का योगदान महज 14-15 फीसद ही है। ऐसे में वानिकी और कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए कार्य करने की जरूरत है। झारखंड की भूमि बागवानी के लिए उपयुक्त है। कृषि वानिकी को बढ़ावा देकर वर्तमान में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता को प्रति हेक्टेयर दो टन से बढ़कर आठ टन तक ले जाया जा सकता है। ऐसा हुआ तो जीडीपी के आकड़े स्वत: बदल जाएंगे। राज्य सरकार की हालिया शुरू की गई बिरसा हरित ग्राम योजना को लेकर जो खाका बुना गया है। वह एक अच्छी पहल है। मनरेगा के साथ इस योजना को जोड़कर फलदार वृक्ष बड़े पैमाने पर लगाए जाएंगे। इससे भूमि और पानी की उत्पादकता बढ़ेगी। वर्षभर रोजगार मुहैया होंगे और इसकी लागत का रिटर्न भी अच्छा मिलेगा। मगर इस योजना में बड़ी परेशानी है कि कृषकों में कृषि वानिकी के अनुभव की कमी है। इसके लिए हमें ट्रेनिग प्रोग्राम चलाने की जरूरत पड़ेगी।

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