छोटी-छोटी बात पर भी 'लाल' हो जा रहे बालगोपाल, बच्‍चों में बढ़ी हिंसा की प्रवृत्ति

Child Anger कोरोना वायरस संक्रमण काल में झारखंड के दस जिलों में किए गए मनोवैज्ञानिक अध्ययन में चौंकाने वाली जानकारी मिली है। तीन से 14 वर्ष आयु वर्ग का सैंपल सर्वे हुआ है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अध्ययन होगा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 01 Feb 2021 12:18 PM (IST) Updated:Mon, 01 Feb 2021 05:58 PM (IST)
छोटी-छोटी बात पर भी 'लाल' हो जा रहे बालगोपाल, बच्‍चों में बढ़ी हिंसा की प्रवृत्ति
लॉकडाउन के कारण बच्‍चों ने दोस्‍तों के साथ खेलना बंद कर दिया।

रांची, [ब्रजेश मिश्र]। कोविड-19 वैश्विक महामारी का राज्य में प्रसार रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन का अधिसंख्य बच्चों के मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा है। तीन से चौदह वर्ष आयु वर्ग के 66 फीसद बच्चों में हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ी है। झारखंड के दस जिलों में अपराध मनोविज्ञान पर किए गए अध्ययन में हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं। निष्कर्ष में दावा किया गया है कि गत दस माह की अवधि के दौरान बच्चों की गतिविधियों को लगातार नियंत्रित करना उनके मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला रहा है।

अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हिंसक प्रवृत्ति की तरफ बढ़ रहे बच्चों में से 22 फीसद में दूसरों के मुकाबले कहीं अधिक गुस्से की तीव्रता देखी गई। अपराध मनोविज्ञान के तहत किए गए लघु शोध में झारखंड के दस जिलों के तकरीबन 3500 बच्चों का सैंपल लिया गया था। अध्ययन के निष्कर्ष ने मनोविज्ञानियों को चिंता में डाल दिया है। लिहाजा, तथ्य की सच्चाई के और ज्यादा करीब पहुंचने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के शीर्ष मनोविज्ञानियों की टीम से संपर्क किया गया है।

इसके लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सैंपल का कलेक्शन कर अध्ययन करना होगा। रांची में रहने वाले मनोविज्ञानी तथा रामचंद्र चंद्रवंशी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डाॅ. जेपी मिश्रा के नेतृत्व में मनोवैज्ञानिक शोधकर्ताओं की टीम ने इस पर काम किया है। बताया गया कि अध्ययन के निष्कर्ष पर और विस्तृत अध्ययन की जरूरत महसूस की जा रही है। निष्कर्ष के तौर पर कहा गया है कि लॉकडाउन की अवधि में बच्चों की जीवनचर्या बाधित हुई। दोस्तों से मिलना, बाहर खेलना बंद हो गया। इसके कारण पैदा हुए तनाव और अवसाद के कारण हालात इस तरफ बढ़ चले हैं।

लड़कियों के मुकाबले लड़कों में बढ़ी प्रवृत्ति

डाॅ. जीसी मिश्रा की टीम के शोध में यह भी तथ्य सामने आए हैं कि इस अवधि के दौरान लड़कियों के मुकाबले लड़कों में हिंसा की प्रवृत्ति ज्यादा बढ़ी है। लड़कों में यह आंकड़ा 36 फीसद रहा है। वहीं, 30 फीसद लड़कियों में यह प्रवृत्ति देखी गई। अत्यधिक हिंसक प्रवृत्ति वाले बच्चों में भी यह आंकड़ा 14 और 8 फीसद रहा है। बताया जा रहा है कि बच्चों की उम्र जैसे-जैसे ऊपर बढ़ी, हिंसक व्यवहार में वृद्धि देखी गई। मनोविज्ञानियों ने दावा किया कि लड़कों में परिपक्वता की आयु 16 वर्ष तथा लड़कियों में 14 वर्ष के लगभग होती है। इस उम्र की तरफ बढ़ने के साथ ही दोनों के व्यवहार में बदलाव महसूस होने लगता है।

कुछ ऐसे किया गया अध्ययन

अध्ययन के लिए निर्धारित आयु वर्ग के बच्चों का अलग-अलग समूह बनाया गया। इसमें अलग-अलग तरीके से हिंसक प्रवृत्ति का अध्ययन किया गया।

कुछ इस तरह के मामले आए सामने

समूह 'अ' : तीन वर्ष से छह वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को रखा गया। इसमें सामने कुछ खिलौने, गेंद और कागज रखे गए। पहले इन्हें खिलौनों के साथ खेलने दिया गया। एक सीमित अवधि के बाद बच्चों के पास से खिलौने हटाए गए। इसके बाद वे रोने-चिल्लाने लगे। कुछ देर में वे गेंद से खेलने लगे। तय अवधि में गेंद हटा ली गई। गुस्से में आए बच्चों ने कागजों के साथ खेलने की बजाए उन्हें मुंह और हाथ से फाडऩा शुरू कर दिया। समूह 'ब' : इसी तरह दूसरा समूह छह से 10 वर्ष के बच्चों का रहा।

कहीं मोबाइल, कहीं गुड़‍िया, कहीं बैट-बॉल को प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया गया। खेलने का सामान हटाने के बाद हिंसक प्रवृत्ति देखी गई। समूह 'स' : तीसरा समूह 10 से 14 वर्ष के बच्चों का रहा। इस समूह में भी मोबाइल, गुड़ि‍या, बैट-बॉल का प्रयोग किया गया। इनमें भी खेलने का सामान हटाने के बाद हिंसक प्रवृत्ति देखी गई। समूह 'ब' और समूह 'स' : हिंसक प्रवृत्ति की श्रेणी में चिह्नित बच्चों के बीच एक बार फिर अध्ययन किया गया। इसमें 22 फीसद बच्चों में यह प्रवृत्ति अधिक देखी गई।

इन जिलों में हुआ अध्ययन

जमशेदपुर, धनबाद, रांची, बोकारो, चाईबासा, हजारीबाग, पलामू, खूंटी, सरायकेला-खरसावां और चतरा।

अध्ययन के निष्कर्ष हैरान करने वाले हैं। इस पर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के अध्ययन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। जिन क्षेत्रों में कोविड महामारी को लेकर अब तक नियमों में विशेष छूट नहीं दी गई है, ऐसे क्षेत्रों के सैंपल कलेक्शन से निष्कर्ष और अधिक वास्तविकता के करीब होंगे। अध्ययन के लिए विशेषज्ञों से संपर्क किया जा रहा है। -डाॅ. जेपी मिश्रा, मनोविज्ञानी व शिक्षाविद।

एक्सपर्ट

मनोवैज्ञानिक अध्ययन के निष्कर्ष परेशान करने वाले हैं। अब तक इसकी आशंका व्यक्त की जा रही थी। अब अध्ययन में भी यह बात आने लगी है। निश्चित रूप से इस पर जितना अधिक काम होगा, उतना बेहतर परिणाम सामने आएगा। -विनोद महतो, अधीक्षक, रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकियाट्री एंड एलायड साइंसेज, रांची।

यह सही है कि बच्चों के व्यवहार में भारी परिवर्तन आया है। बच्चे उदास रह रहे हैं। खाने-पीने में मन नहीं लग रहा है। बातचीत की प्रवृत्ति भी कम हुई है। कई अभिभावक ऐसे मामले लेकर आ रहे हैं। -डाॅ. अभिषेक मुंडू, बाल रोग विशेषज्ञ, रांची।

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