समर्थ आवासीय बालक विद्यालय में बच्चे बन रहे समर्थ
हिदपीढ़ी में चल रहे समर्थ आवासीय बालक विद्यालय में बेसहारा या अनाथ हो चुके बच्चों को समर्थ बनाया जा रहा है।
कुमार गौरव, रांची : हिदपीढ़ी में चल रहे समर्थ आवासीय बालक विद्यालय में बेसहारा या अनाथ हो चुके बच्चे को समर्थ बनाया जा रहा है। 100 बेड की क्षमता वाले इस विद्यालय में फिलहाल 29 वैसे बच्चे अपना भविष्य संवार रहे हैं जो पारिवारिक या किसी न किसी रूप से कमजोर थे। आमतौर पर यहां वैसे बच्चे जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं नशा करते हैं या गलत रास्ते पर चले हों। इनकी न सिर्फ काउंसिलिग होती है बल्कि पठन-पाठन से जुड़ी सारी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही हैं। समग्र शिक्षा अभियान के तहत राज्य के पांच जिलों धनबाद, बोकारो, रांची, हजारीबाग और पूर्वी सिंहभूम में अनाथ एवं एकल अभिभावक वाले 100 बच्चों के लिए समर्थ आवासीय विद्यालय खोला गया है। बच्चों व विद्यालय के रखरखाव मद में प्रति विद्यालय 15 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
हिदपीढ़ी स्थित आवासीय बालक विद्यालय के शिक्षक दिलीप कुमार बताते हैं कि 2011 में समग्र शिक्षा अभियान के तहत इस स्कूल की स्थापना की गई थी। उद्देश्य यह था कि अनाथ व बेसहारा बच्चे यहां पढ़ सकें। उनके व्यक्तित्व का विकास हो सके। शैक्षिक विकास के लिए भी यह जरूरी था। इस उद्देश्य में काफी सफलता मिली है। वो बताते हैं कि पिछल 10 वर्षों में यहां करीब 350 बच्चे आवासीय विद्यालय में पढ़ाई कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं।
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गांव में होती थी परेशानी:
इटकी के चिनारो पुरियो गांव में विद्यालय की दूरी अधिक रहने के कारण पढ़ाई करने में काफी परेशानी होती थी। पिता मजदूरी कर घर चलाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थी। समर्थ आवासीय बालक विद्यालय में सारी सुविधाएं मिल रही हैं। आठवीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा हूं और आगे चलकर शिक्षक बनना चाहता हूं।
: रमनकीत कच्छप, छात्र
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पांच किमी था स्कूल:
गुमला जिले के समदरी विशनपुर गांव से विद्यालय जाने के लिए पांच-छह किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। गांव का माहौल ऐसा नहीं है कि सही तरीके से पढ़ाई हो सके। गलत माहौल के कारण भटकाव की नौबत आ गई थी। इस विद्यालय में सबकुछ ससमय मिल रहा है। पढ़ाई की सामग्री के साथ साथ मुफ्त भोजन व कपड़े भी मिल रहे हैं। अब तो बेहतर तरीके से पढ़ाई कर डॉक्टर बनना है।
: करमपाल भगत, छात्र
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अच्छा खिलाड़ी बनकर राज्य का करूंगा नाम रौशन
गुमला जिले के समदरी विशनपुर गांव में पढ़ाई का अच्छा माहौल नहीं है। पिता हिमाचल प्रदेश में मजदूरी करते हैं। घर की स्थिति अच्छी नहीं है। अच्छी पढ़ाई के साथ साथ फुटबॉल का अच्छा प्लेयर बनकर राज्य का नाम रौशन करना चाहता हूं।
: रितिक मुंडा, छात्र
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नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नहीं हैं पढ़ाई की सुविधा
लोहरदगा के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी नक्सली प्रभाव है। जिस कारण पढ़ाई की सुविधाएं भी नहीं हैं। पढ़ना चाहता हूं और आगे शिक्षक बनना चाहता हूं। गांव में विद्यालय काफी दूर है और आने जाने के लिए घर में पैसे नहीं होने के कारण यहां आकर पढ़ाई कर रहा हूं।
: गोविद, छात्र
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बड़ा होकर करूंगा देश सेवा :
इटकी के चिनारो पुरियो गांव में न तो पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था है और न ही घर की माली स्थिति ऐसी है कि सही तरीके से पढ़ाई हो सके। समर्थ विद्यालय में आकर लग रहा है कि अब हमारे सपने भी पूरे हो सकते हैं। मैट्रिक व आगे की पढ़ाई कर आर्मी में जाना चाहता हूं। ताकि देशसेवा कर सकूं।
: रोहित लकड़ा, छात्र