उग्रवादी प्रभावित गांव में इलाज के अभाव में 4 ने तोड़ा दम, सर्दी-खांसी-बुखार से कई हैं पीड़ित Chatra News
Chatra COVID Update Jharkhand News पथेल गांव में उग्रवाद से ज्यादा वैश्विक महामारी के डर से बेचैनी बढ़ी। जिन चार लोगों की कोरोना से मौत हुई उनका भी इलाज संभव नहीं हो पाया था। जागरुकता की कमी के कारण लोग बीमारियों को हल्के में ले रहे हैं।
पथेल (चतरा), [जुलकर नैन]। Chatra COVID Update, Jharkhand News चतरा जिले के कान्हाचट्टी प्रखंड मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर बियाबान जंगल में बसा यह इलाका है पथेल। यहां जिंदगी की जद्दोजहद पर उग्रवादी दहशत का साया मंडराता रहता है। यह दीगर बात है कि लोग इन परिस्थितियों में जीने के अभ्यस्त हो चुके हैं। मगर इन दिनों इनकी नींद वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण की आशंका ने उड़ा रखी है। क्योंकि एक पखवारे के भीतर चार हंसती खेलती जिंदगियां कोरोना की भेंट चढ़ चुकी है। उस घटना के बाद से हर जुबान पर एक ही प्रार्थना है- हे भगवान, कोरोना से तुम ही बचाना!
ग्रामीणों के मुताबिक कोरोना संक्रमण का अर्थ सीधा मौत से साक्षात्कार होना है। ऐसा, इलाके में इलाज की आधारभूत व्यवस्था नहीं होने के कारण है। जिन चार लोगों की कोरोना से मौत हुई है, उनका भी इलाज संभव नहीं हो पाया था। सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर स्वीकृत बल की तुलना में 80 फीसदी स्वास्थ्यकर्मी कम हैं। जबकि यहां लोग पूरी तरह सरकार के स्वास्थ्य केंद्र पर ही निर्भर हैं। क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा इतनी कमजोर है कि मरीजों को 20 किलोमीटर दूर पैदल चलकर कान्हाचट्टी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता है।
वहां डाॅक्टरों की कमी के कारण अक्सर मरीजों को जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल या हजारीबाग प्रमंडलीय अस्पताल अथवा राजधानी रांची रेफर कर दिया जाता है। ऐसी हालत में मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। यही हाल बेंगो कला पंचायत के अन्य गांवों का भी है। यहां पिछले पखवाडे़ में सुकर मांझी (48), मुन्ना भुइयां की पत्नी मनवा देवी (35), गुड्ड यादव (34) और कारू सिंह भोगता ( 55) की मौत कोरोना से हो चुकी है। अभी भी गांव में सर्दी-खांसी, बदन दर्द और बुखार से कई पीड़ित हैं। उन्हें कोरोना का संक्रमण हुआ है अथवा नहीं, यह तो जांच से ही पता चलेगा।
जिन लोगों की मौतें हुई है, उनमें भी प्रारंभ में ऐसे ही लक्षण थे। हालांकि मुन्ना भुइयां की पत्नी की मौत प्रसव के दौरान इलाज के अभाव में हुई। गांव में प्रसव कराने की कोई विशेष सुविधा नहीं है। सुकर मांझी और गुड्ड यादव को सांस लेने में दिक्कत हुई। फिर इलाज के अभाव में दम घुट गया। विडंबना यह कि जहां ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा को मजबूत किए जाने का प्रयास हो रहा है, वहीं दूसरी ओर अधिकतर ग्रामीण अस्पतालों को भवन, डाॅक्टर, नर्स एवं कंपाउंडर तक नसीब नहीं है। कई दूसरे पद भी रिक्त हैं। हल्की-फुल्की चिकित्सा के लिए झोलाछाप डाॅक्टर पर निर्भर रहना पड़ता है।
गांव की आबादी करीब 3000 की है। कान्हाचट्टी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के तहत आता है। इस केंद्र में डाॅक्टर, पारा मेडिकल, लैब टेक्नीशियन सहित कई पद रिक्त हैं। शुक्र है कि यहां कोरोना का ज्यादा खतरनाक रूप नहीं दिखा है। जिन्हें खांसी-सर्दी, बदन दर्द और बुखार है, वे जागरुकता की कमी के कारण हल्के में ले रहे हैं। वह इसे सीजनल बीमारी मानते हैं। पता चला कि ऐसे लक्षण दूसरे गांवों में भी पाए जा रहे हैं। मगर न तो उनकी जांच और न इलाज। सब भगवान भरोसे। कुछ इम्युननिटी मजबूत होने के कारण ठीक भी हो रहे हैं। गांव के चंद्रदेव शर्मा बताते हैं कि यहां लोग बीमार पड़ने पर 20 किलोमीटर की दूरी तय कर इलाज कराने स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं।
वहां से भी डाॅक्टर के अभाव में जिला अस्पताल या फिर प्रमंडलीय अस्पताल हजारीबाग रेफर कर दिया जाता है। कई बार मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। सीताराम सिंह भोगता कहते हैं कि गांव में स्वास्थ्य सुविधा की पोल खुलती नजर आ रही है। गांव में अधिकतर लोग सर्दी-खांसी व बुखार से पीड़ित हैं। उन्हें इलाज व दवा उपलब्ध नहीं हो पा रही है। विजय यादव ने बताया कि गांव के मरीजों को डोली-खटोली के माध्यम से स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है। हमारा तो भगवान ही मालिक है।