आपस में उलझे साहबों के किस्से मजे लेकर सुन रहे किरानी, पढ़ें सियासत की खरी-खरी
Jharkhand Political Update. साहबों का खौफ ही ऐसा होता है बड़ों-बड़ों को हिला देता है। ताप ज्यादा चढ़ जाए तो अपनी जमात वालों को भी नाप देता है।
रांची, [आनंद मिश्र]। वर्जीनिया वुल्फ से सब डरते हैं। शरद जोशी जी ने कभी लिखा था, तब से अब तक हाकिमों की महफिल में इस कहावत की काट नहीं देखी गई। साहबों का खौफ ही ऐसा होता है, बड़ों-बड़ों को हिला देता है। ताप ज्यादा चढ़ जाए तो अपनी जमात वालों को भी नाप देता है। हाजिरी को लेकर रोस्टर का पालन न होने पर, दे दी बड़े साहब ने बूस्टर डोज। डोज हाई प्रोफाइल थी, खाना-खजाना संभालने वाले दोनों हाकिम हिल गए अंदर तक और तत्काल प्रभाव से अपने-अपने कमरों में हो लिए क्वारंटाइन। सांस में सांस आई तो बैक डेट का पुराना आजमाया हुआ फार्मूला निकाला, लेकिन सुना है वह भी धर लिया गया है, जारी हो गया है शोकॉज। शो अभी जारी है, कुछ कडिय़ां और जुड़ेंगी। मामला साहबों से जुड़ा है, आपस में उलझे हैं और इधर किरानी मजे लेकर सुना रहे किस्से।
नहीं उठ रहा फोन
कमल टोली में हलचल तेज है। समय चौखट पर माथा टेकने का है, चरण वंदना का भी है ताकि कुछ हाथ लग जाए लेकिन कोरोना का रोना है। कमबख्त इसे भी अभी ही आना था, कुछ दिन रुक लेता। चाह कर भी हरमू रोड की परिक्रमा नहीं हो पा रही है। चर्चा जोरों पर है कि लिस्ट कभी भी जारी हो सकती है। मन मसोसकर रह जाते हैं। संगी-साथियों से बतिया मन हल्का कर रहे हैं। उधर से भी यही सुनने को मिल रहा है, जो तेरा हाल है वो मेरा हाल है, सो भइया ताल से ताल मिला। दीपक की लौ में धर्मधारी जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण के गुणा-भाग में कुछ इस कदर तल्लीन हैं कि फोन तक नहीं उठा रहे। अगर उठाते भी हैं तो नसीहत का पाठ पढ़ा देते हैं। इस डुएल डिप्लोमेसी ने कमल टोले में कइयों की नींद उड़ा रखी है इन दिनों।
इनको भी लिफ्ट करा दो
सरकार की 12 की कैबिनेट भले ना पूरी पूरी हुई हो, लेकिन शोहरत का 12वां पायदान हासिल कर बड़े-बड़ों को मात दे दी है। वैसे तो बताने वाले कुंडली के बारहवें भाव को नुकसान से जोड़कर देखते हैं लेकिन यहां उलट है। पॉपुलरिटी ऐसे फर्राटा भर रही है कि विरोधी आंखें तरेर रहे हैं। ज्योतिष ही नहीं, अंकगणित के उलट फेर से सहयोगियों के मुंह भी सूखे जाते हैं। इसी सूची में युवराज ठीक उलट 21वें पायदान पर बताए जाते हैं। हाथ वाले खेमे में कुछ निराशा है। न निगलते बन रहा है ना उगलते। बधाई तक देते कलेजा मुंह को आए जाता है। उधर, कमल टोली वाले भी मौज ले रहे हैं, कबूतर छोड़ा गया है, तंज भरा संदेश लेकर। हुजूर एयर लिफ्ट जैसे उपाए करेंगे तो छाएंगे ही। इधर, हाथ वाले भी कहने लगे हैं, हमको भी तू लिफ्ट करा दे।
फ्लॉप हुआ फार्मूला
मय के दीवानों की तलब मयखाने खुलने के साथ ही दम तोड़ गई। दिल्ली और कर्नाटक से मुकाबले की बात करते रहे और जब अवसर मिला तो कहीं न टिके। जज्बा सिर्फ जुबानी जमा खर्च तक ही था। मीडिया की भी तैयारी धरी की धरी रह गई। एक अच्छा फुटेज तक न ढूंढे न मिला। राजस्व की चिंता मेंं दुबली हो रही सरकार भी बगले झांक रही है। तीन सौ करोड़ हर महीने की आमद की आस रखी थी, लेकिन जो नजारा दिख रहा है उससे तीस करोड़ भी जुट जाएं तो बहुत। साहब का इलेक्शन वाला मैनेजमेंट यहां न चला। सारा प्लान ही चौपट होता दिख रहा है। अरे इकोनॉमिक वारियर्स जज्बा तो तब दिखाएं, जब जेब में टका हो। अब तो यह गजल गुनगुना कर ही काम चल रहा है। हुई महंगी बहुत शराब कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो।