मौसम परिवर्तन और कुपोषण की चुनौतियों से निबटने के लिए शोध प्रयासों को नई दिशा देगा बीएयू

राज्य के योजनाकारों प्रशासकों वैज्ञानिकों कृषि उद्योगों और कृषि क्षेत्र में काम करनेवाले गैर सरकारी संगठनों के उपयोग के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में अपने द्वारा अब तक विकसित और अनुशंसित उन्नत तकनीकों से संबंधित पुस्तक प्रकाशित करेगा।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 09:21 AM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 09:21 AM (IST)
मौसम परिवर्तन और कुपोषण की चुनौतियों से निबटने के लिए शोध प्रयासों को नई दिशा देगा बीएयू
मौसम परिवर्तन और कुपोषण की चुनौतियों से निबटने के लिए शोध प्रयासों को नई दिशा देगा बीएयू। जागरण

रांची, जासं। राज्य के योजनाकारों, प्रशासकों, वैज्ञानिकों, कृषि उद्योगों और कृषि क्षेत्र में काम करनेवाले गैर सरकारी संगठनों के उपयोग के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में अपने द्वारा अब तक विकसित और अनुशंसित उन्नत तकनीकों से संबंधित पुस्तक प्रकाशित करेगा। 'कंपेंडियम ऑफ टेक्नोलॉजीज' नाम से प्रकाश्य इस डॉक्यूमेंट में फसल प्रभेदों, कृषि यंत्रों, फसल प्रबंधन एवं पौधा संरक्षण तकनीकों, पशु-पक्षी नस्लों, पशु स्वास्थ्य प्रबंधन, मत्स्यपालन, एवं वन वर्धन तकनीकों से संबंधित जानकारी संग्रहित रहेगी।

इसके साथ ही बीएयू लगातार बदलते मौसम की चुनौतियों से निपटने के लिए जलवायु लचीली कृषि तकनीक विकसित करने तथा कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए चावल, मक्का, मड़ुआ आदि फसलों में प्रोटीन तथा जिंक, आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु बायोफोर्टीफाइड प्रभेदों के विकास पर शोध प्रयास केंद्रित किया जाएगा।

विवि के कुलपति डा ओंकार नाथ सिंह ने ये बातें खरीफ अनुसंधान परिषद की दोदिवसीय बैठक में कही। कुलपति ने छात्र-छात्राओं के स्नातकोत्तर अनुसंधान कार्यों को आगे बढ़ाने की कार्य योजना बनाने के लिए डीन, स्नातकोत्तर शिक्षा संकाय की अध्यक्षता में वरिष्ठ पदाधिकारियों की एक समिति बनाने की घोषणा की।

संचार तकनीकों के प्रभावी प्रयोग पर होगा शोध

डा ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि कृषि क्षेत्र में उभरते संचार तकनीकों के प्रभावी प्रयोग के लिए भी शोध कार्यक्रम बनाया जाएगा। राज्य के विभिन्न कृषि मौसम क्षेत्रों और जिलों में कृषि और पशु उत्पादकता में भारी अन्तर के कारणों को चिन्हित करने और उनके निराकरण के उपाय सुझाने के लिए एक पालिसी डाक्यूमेंट विकसित किया जाएगा। औषधीय पौधों की गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री तैयार करने तथा उनके मूल्य संवर्धन एवं विपणन के दिशा में शोध प्रयास किया जाएगा। नई जरूरतों तथा किसानों की शिकायतों अपेक्षाओं, प्राथमिकताओं के अनुरूप सुस्पष्ट उद्देश्यों के साथ शोध कार्यक्रमों को दिशा दी जाए।

देशी नस्लों के गाय की क्षमता बढ़ाने होगा अध्ययन

गाय की देशी नस्लों की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाने और उसके गुणों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। बैठक में विशेषज्ञों की राय थी कि विदेशी नस्लों की गाय के 5-10 किलो दूध के मुकाबले देशी गाय का एक किलो दूध भी ज्यादा गुणकारी हो सकता है। इसे शोध आधार प्रदान करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही फैसला किया कि प्रति वर्ष बड़ी संख्या में झारसूक (टी एंड डी) नस्ल सूअर बच्चे तैयार करने और और सेकंड लाइन ब्रीडर के रूप में सूअर प्रजनन केंद्र चला रहे पशुपालकों को उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। बीएयू के मार्गदर्शन में अभी झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम के लगभग 350 पशुपालक सूअर प्रजनन का कार्य कर रहे हैं।

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