बीएयू के सहयोग से किसानों ने अधिकतम लाभ देने वाले मकई की खेती की

बिरसा कृषि विवि द्वारा अधिकतम लाभ देने वाले मकई की सफल खेती की गई है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 02:06 AM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 02:06 AM (IST)
बीएयू के सहयोग से किसानों ने अधिकतम लाभ देने वाले मकई की खेती की
बीएयू के सहयोग से किसानों ने अधिकतम लाभ देने वाले मकई की खेती की

जागरण संवाददाता, रांची : बिरसा कृषि विवि द्वारा अधिकतम लाभ देने वाले मकई की सफल खेती की गई है। इसके लिए चान्हो प्रखंड के चार गांव कंजगी, बेयासी, चुटीयो और कुल्लू में 60 जनजातीय किसानों का चुनाव कर खेती के लिए उनको बीज दिया गया था। साथ ही उन्हें समय-समय पर खाद और फसल संरक्षण के लिए कीटनाशक उपलब्ध कराया गया। विवि के द्वारा किसानों को यह मदद आइसीएआर की मक्का संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की जनजातीय उप योजना (टीएसपी) के तहत दी गई। इसमें उन्हें सुवान कंपोजिट-1 ए, सुवान कंपोजिट- 2, बिरसा मक्का-3 तथा हाइब्रिड बीएयू एमएच- 5 प्रभेदों के बीज दिए गए। खेती में इन प्रभेदों की उपज 55 से 65 क्विटल प्रति हेक्टेयर हुई। वहीं फसल 90 से 105 दिनों में पककर तैयार हो गया। 25 हजार की लागत पर 75 हजार की कमाई

मकई की फसल के अवलोकन के लिए कृषि वैज्ञानिकों काएक दल ने इन गांवों का दौरा किया। मकई की इन प्रभेदों पर पिछले 15 वर्षों से शोध कर रहे डॉ. मणिगोपा चक्रवर्ती ने बताया कि विकसित नए प्रभेदों की एक हेक्टेयर में खेती में केवल 25 हजार खर्च आ रहा है। वहीं किसान को फसल बेचने पर एक लाख तक मिलेंगे। यानि प्रति हेक्टेयर 75 हजार रुपये तक का फायदा होता है। बेहतर लाभ के लिए फसल उत्पादन के साथ पशुपालन भी

खेतों के भ्रमण के दौरान बीएयू के निदेशक अनुसंधान डॉ. ए. वदूद निदेशक, बीज एवं प्रक्षेत्र डॉ. ऋषिपाल सिंह, एग्रोनोमी के प्रोफेसर आरआर उपासनी तथा कुलसचिव डॉ. नरेन्द्र कुदादा ने इन गांवों के किसानों से बातचीत की। डॉ. ए. वदूद ने किसानों को फसल संरक्षण तथा बेहतर उपज एवं आय प्राप्त करने के तरीके बताए। उन्होंने बेहतर लाभ के लिए फसल और बागवानी के साथ-साथ पशु पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन करने की सलाह दी।

chat bot
आपका साथी