बीएयू ने पशुपालकों को किया सावधान, पशुओं की जानलेवा बीमारी का एकमात्र टीकाकरण ही विकल्प

वर्षा ऋतु में पशुओं में जानलेवा बीमारी गलाघोटू या डकहा एवं लंगडिया बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 06:03 PM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 06:03 PM (IST)
बीएयू ने पशुपालकों को किया सावधान, पशुओं की जानलेवा बीमारी का एकमात्र टीकाकरण ही विकल्प
बीएयू ने पशुपालकों को किया सावधान, पशुओं की जानलेवा बीमारी का एकमात्र टीकाकरण ही विकल्प

जासं, रांची: वर्षा ऋतु में पशुओं में जानलेवा बीमारी गलाघोटू या डकहा एवं लंगडिया बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है। गलाघोटू में पशुओं में गला में सूजन के साथ - साथ बुखार की वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है। पशु खाना-पीना बंद कर देते हैं। दो-तीन दिनों के बाद दम घुटने से पशुओं की मौत हो जाती है। इसी प्रकार लंगड़िया में पशुओं के मांस वाले स्थान जैसे जांघ में मवाद भर जाता है। मांस में सड़न होने लगती है और जो जहर बनकर पूरे शरीर में फैल जाता है। चिकित्सा के अभाव में काफी पशुओं की मौत देखी जाती है। इसके साथ ही एचएस (गलघोंटू), लंगरा बुखार, खुरपका मुहपका, निमोनिया, एन्थ्रेक्स, ब्लैक क्वार्टर (डकहा) आदि बीमारी की भी आशंका होती है। इन बीमारियों का टीकाकरण ही एकमात्र विकल्प है। ऐसे में पशुपालकों को मई से जून माह तक में ही पशुओं का टीका करा लेना चाहिए। खासकर कोरोनाकाल में पशुओं के टीकाकरण को विशेष प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। बीएयू के डीन वेटनरी डा. सुशील प्रसाद बताते हैं कि बारिश के मौसम में पशुशाला में पशुओं के रख-रखाव का भी विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। छत से पानी नहीं टपकना चाहिए, उमस से बचाव के लिए खिड़कियां खुली रखनी चाहिए, गोबर और मलमूत्र के निकासी का बेहतर व्यवस्था हो, गंदगी और नमी से बचाव, दो दिनों में एक बार फिनाइल से सफाई और गंदे पानी एवं गंदे मिट्टी से बचाव पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

उन्होंने बताया कि पशुओं के दाने एवं चारा को नमी रहित स्थान में रखना चाहिए। पशुओं को चरने के लिए बाहर नहीं भेजना चाहिए क्योंकि गीली घास से नुकसानदायक कीड़े पेट में जाकर रोग का कारण बनते हैं। इस मौसम में अनियमित रूप से आहार लेना, जुगाली बंद कर देना, सुस्त और उदास दिखना, कान लटक जाना, नाक का उपरी भाग शुष्क होना, चंचलता में कमी, आंख सिकुड़ना, पानी बहना व पलकें खुली रखना, शरीर का तापमान, सांस व नाड़ी क्रिया का असामान्य होना, दुर्गंधयुक्त गोबर एवं बदरंग सांस आदि बीमार पशुओं के प्रमुख लक्षण हैं।

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