किसी नेता की बात कोई सुनने को तैयार नहीं था

एसएस मेमोरियल कॉलेज के प्राध्यापक डा. समर सिंह ने संस्मरण सुनाते हुए कि कोई लोग नेता की बात मानने को तैयार नहीं था

By JagranEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 02:14 AM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 05:06 AM (IST)
किसी नेता की बात कोई सुनने को तैयार नहीं था
किसी नेता की बात कोई सुनने को तैयार नहीं था

जागरण संवाददाता, रांची : एसएस मेमोरियल कॉलेज के प्राध्यापक डा. समर सिंह ने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मैं अपने दो सौ साथियों के साथ अयोध्या कार सेवा में शामिल होने गया था। उस समय संयुक्त बिहार था। झारखंड क्षेत्र दक्षिण बिहार के अंतर्गत पड़ता था। रांची एवं आसपास के जिले के लोग धनबाद से किसान एक्सप्रेस पकड़कर तीन दिसंबर 1992 को अयोध्या पहुंचे। उस समय पूरी अयोध्या राममय बनी हुई थी। अयोध्या का हर घर स्वयंसेवकों के लिए खुला था। जिसे जहां जगह मिली रुक गए। घोषणा हुई छह दिसंबर को सरयू में स्नान करने के बाद नदी की मिट्टी से पूजा होगी। पूजा के बाद उसके बाद सभी वापस अपने-अपने घर लौट जाएंगे। छह दिसंबर 11 बजे की बात है। सरयू नदी तट से अयोध्या तक लाखों की भीड़। सरयू में स्नान करके सभी कारसेवकों को कार सेवा में शामिल होना था। आधे से ज्यादा लोग कार सेवा स्थल पहुंच गए थे। वहीं, हजारों लोग अब भी सरयू में स्नान कर ही रहे थे। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल की तैनाती। जगह-जगह बैरिकेडिग। रामजन्म भूमि से ठीक पहले एक ओर बने ऊंचे मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, अशोक सिहल आदि माइक से लगातार व्यवस्था बनाए रखने और पूजन के बाद वापस लौट जाने की अपील कर रहे थे। कार सेवा स्थल पर पूजा की तैयारी चल रही थी। कार सेवकों में यह गुस्सा था कि इस बार भी प्रतीकात्मक पूजा के बाद लौट जाना होगा। लोगों में स्वत: गुस्सा था। सब कुछ ठीक चल रहा था। इसी बीच जय श्री राम.. के नारा लगाते कार सेवकों का हुजूम बैरिकेडिंग तोड़ते हुए आगे बढ़ने लगे। प्रतीकात्मक कार्यसेवा पर लोग झुंझला रहे थे। कारसेवकों के मन में यही था कि दूर दूर से बुलाया जाता है और वापस भेज दिया जाता है। देखते-देखते भीड़ अनियंत्रित हो गई। साथ आये साथी तितर-बितर हो गए। कौन कहां खो गया पता नहीं। कार सेवक झपट्टा मारते हुए बाबरी विवादित ढांचे पर चढ़ गए। जिसे जो मिला उसी से प्रहार करने लगा। इधर, आडवाणी जी लगातार अनियंत्रित भीड़ को रोकने की कोशिश कर रहे थे। माइक से आडवाणी जी चिल्ला रहे थे कि ढांचा नहीं तोड़ना है। उपस्थिति दर्ज हो गई आप लोग घर जाइये, लेकिन कौन उनका सुनने वाला था। देखते-देखते 12.40 में पहला ढांचा ढह गया। हजारों पुलिस बल बेबस। लाखों की भीड़ के सामने प्रशासन पस्त। जैसे ही सरयू तक इसकी सूचना सरयू तक पहुंची बिना नहाये धोये मंदिर की ओर भागे। इधर, नेता चिल्लाते रहे उधर शाम पांच बजते-बजते तीनों ढांचा ढह गया। याद स्वरूप कोई ईंटे तो कोई मिट्टी ही ले गया। रातभर में चबूतरा समतल हो गया। तबतक सूचना मिली कि केंद्र सरकार ने उत्तरप्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया है। सरकार को बर्खास्त करने के बाद अयोध्या में कानून व्यवस्था का संचालन करने वाला कोई नहीं था। अधिकारी तो वहां थे लेकिन बस चुपचाप सबकुछ होता देख रहे थे। रात भर उल्लास का वातावरण रहा। दूसरे दिन पूजा के बाद लोग अपने-अपने घर निकले। अब नया समस्या उत्पन्न हो गया। अलग-अलग राज्यों में लौटते कार सेवकों की धरपकड़ शुरू हो गई थी। बचते-बजाते आठ दिसंबर को रांची पहुंचे।

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