लाॅकडाउन में स्‍कूलों की मनमानी- फीस तो बढ़ाया ही, विलंब शुल्‍क भी दोगुना किया

Jharkhand School News Hindi Samachar रांची में प्राइवेट स्‍कूल विलंब से जमा करने पर फाइन 500 रुपये ले रहे हैं। मेडिकल खेलकूद व लाइब्रेरी के भी पैसे ले रहे हैं। लॉकडाउन में आर्थिक बोझ बढ़ने से अभिभावक परेशान हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Tue, 08 Jun 2021 01:35 PM (IST) Updated:Tue, 08 Jun 2021 02:06 PM (IST)
लाॅकडाउन में स्‍कूलों की मनमानी- फीस तो बढ़ाया ही, विलंब शुल्‍क भी दोगुना किया
Jharkhand School News, Hindi Samachar रांची में प्राइवेट स्‍कूल विलंब से जमा करने पर फाइन 500 रुपये ले रहे हैं।

रांची, जासं। कोरोनाकाल में आम लोग आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। किसी की नौकरी चली गई तो किसी का व्यापार बंद है। इस पर स्कूलों की मनमानी अभिभावकों पर भारी पड़ रही है। स्कूलों ने हर साल की तरह शिक्षण शुल्क तो बढ़ाया ही, लेकिन हद तो यह हो गई कि समय पर शुल्क जमा नहीं करने पर विलंब शुल्क 500 रुपये कर दिया, वह भी हर माह।

संत जेवियर स्कूल में पहले विलंब शुल्क 100 रुपये था जिसे बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है। कई स्कूलाें ने विलंब शुल्क पहले की तुलना में दोगुना कर दिया है। बीते वर्ष कोरोना काल में शिक्षा मंत्री के निर्देश के बाद स्कूलों ने एक रुपये भी विलंब शुल्क नहीं लिया था। लेकिन इस बार मनमानी चरम पर है। स्कूलों ने विलंब शुल्क इसलिए बढ़ा दिया है ताकि अभिभावक शुल्क हर माह दें।

पहले वार्षिक शुल्क फिर होगा मासिक जमा

शहर के स्कूलाें ने मासिक शुल्क से पहले वार्षिक शुल्क लेने पर अड़ा है। अभिभावक चाहते हैं कि किसी तरह वह मासिक शुल्क जमा कर दे ताकि ऑनलाइन पढ़ाई बाधित नहीं हो। लेकिन अभिभावक जैसे ही शुल्क जमा करने के लिए स्कूल की वेबसाइट पर जाते हैं तो अप्रैल माह के शुल्क से पहले उन्हें वार्षिक शुल्क जमा करने के लिए कहा जाता है। वार्षिक शुल्क के अंतर्गत मेंटेनेंस, मेडिकल, लैब लाइब्रेरी, खेलकूद, मास मीडिया, अटेंडेंस, एसएमएस सहित अन्य शुल्क ले रहे हैं।

संत फ्रांसिस स्कूल वार्षिक शुल्क के नाम पर 40 हजार रुपये तो संत जेवियर्स स्कूल 6400 रुपये ले रहा है। अभिभावकों का कहना है कि जब बच्चे स्कूल जा ही नहीं रहे हैं तो खेलकूद, मेडिकल, लैब, लाइब्रेरी के नाम पर पैसे क्यों ले रहे हैं। यहां तक कि स्कूल के ऑनलाइन क्लास के लिए भी कई स्कूल 200 रुपये प्रति माह ले रहे हैं। स्कूल प्रबंधन का तर्क होता है कि एप के लिए कंपनी को पैसे देने होते हैं।

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