सिरका व अरगडा कोलियरी बंद होने से बढ़ी बेरोजगारी

ेकोल प्रबंधन भी इसका जमकर फायदा उठाते हैंऔर मजदूरों का शोषण करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 06 Dec 2019 10:09 PM (IST) Updated:Fri, 06 Dec 2019 10:09 PM (IST)
सिरका व अरगडा कोलियरी बंद होने से बढ़ी बेरोजगारी
सिरका व अरगडा कोलियरी बंद होने से बढ़ी बेरोजगारी

अरगड्डा (रामगढ़) :रामगढ़ विधान सभा क्षेत्र के करीब एक लाख की आबादी वाले कोयलांचल मशहूर कोयला उद्योग अरगडा-सिरका कोलियरी का अस्तित्व समाप्त हो गया है। झ्स क्षेत्र की अरगड्डा भूमिगत खदान 25 सितंबर 2017 एवं सिरका भूमिगत खदान 12 अगस्त 2017 से बंद है। वहीं उसमें काम करने वाले मजदूरों को अन्य जगहों के कोलियरियों में स्थानांतरित कर दिया गया। अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे यह कोलियरी भ्रष्टतंत्र के लापरवाह श्रमिक संगठनों एवं स्थानीय राजनीतिक दलों की लालफीता शाही की भेंट चढ़ गया। यहां का कोयला भारत के विभिन्न भागों के बड़े से बड़े कल कारखानों में उत्कृष्ट क्वालिटी के लिए जाना जाता था। वहीं उसकी गुणवत्ता के कारण ही रांची के एचईसी में भी प्रयोग किया जाता था। राजनीतिक दलों की बात करें तो यहां इंटक ,भामस, वामदलों का संगठन, आसीएमएस, आजसू के भी क्षेत्रीय मजदूर संगठन काम कर रहे हैं। लेकिन झ्न संगठनों का काम अब मजदूर हित नहीं बल्कि अपने हित के लिए हो गया है।कोल प्रबंधन भी इसका जमकर फायदा उठाते हैं,और मजदूरों का शोषण करते हैं।

वर्ष 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रातों-रात कोयला खनन में लगी कंपनियों व ठेकेदारों से कोयला खदान वापस लेकर उसका राष्ट्रीयकरण यानि सरकार अपने हाथों में ले लिया। इसका फायदा ये हुआ कि उस समय बदहाली की हालत में जीवन काट रहे मजदूरों का भाग्य भी रातों-रात बदल गया। उससे पूर्व यहां के ठेकेदारों द्वारा मजदूरों का शोषण आम बात थी। अधिकांश खदानों में कोई स्थानीय लोग काम करना नहीं चाहते थे। अचानक कोल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड यानि पीएसयू बनते ही उस समय के लगभग 3500 मजदूर व उनके परिवार का नया सबेरा हुआ। लोग बताते हैं कि कई ठेकेदार व नेताओं राष्ट्रीयकरण में भी अपने गांव व रिश्तेदारों का नाम मजदूरों की सूची में जोड़ दिए और उनका भी तकदीर बदल दिए। वर्ष 1973 में लगभग 35000 मेन पावर वाली कंपनी जो सिरका, कहुवाबेड़ा से अरगडा, चानक, भूलीक्वाट्रर सहित दर्जनों जगहों से आकर कोयला खनन करती थीं। आज मात्र 480 मैन पावर के साथ अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। यहां के कोयला की गुणवत्ता के कारण ही देश की नामी कंपनियों व कई प्लाटों में सप्लाई होता थी। स्थानीय श्रमिक नेता शुशील कुमार सिन्हा बताते है कि सिरका व अरगडा भूमिगत खदान को वर्तमान केन्द्र सरकार ने नई गाईड लाईन को लेकर बंद किया है, जिस में सिर पर उठाकर कोयला ढोना नहीं है। अब मैनुअल लोडिग पर रोक है। इससे क्षेत्र में बेरोजगारी काफी बढ़ी है। यहां के मजदूर आज भूखमरी के कगार पर हैं। एक समय था जब नेता श्याम नारायण सिंह, रामयश यादव ,चुनचुन प्रसाद सिंह हुआ करते थे। उनकी बातों को प्रबंधन व सरकार सुनती ही नही थी, बल्कि उस पर अमल भी करती थी। लेकिन आज माहौल बिलकुल बदला हुआ है। उस समय मात्र लगभग 30 हजार मैट्रिक टन कोयला उत्पादन होता था। राष्ट्रीयकरण हुआ था घाटा में कंपनी तब भी थी। और आज जब वर्तमान में लगभग 7 लाख 5ह्र हजार मैट्रिक टन उत्पादन तब भी कंपनी घाटे मे थी फर्क केवल यही है कि उस समय मजदूर हित में राष्ट्रीयकरण हुआ और आज बंदी हो गई। इक्के-दूक्के स्थानीय मजदूर नेताओं ने इसका विरोध दबे जुबान तो किया लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात साबित हुआ। इन दिनों कोयलांचल में विधान सभा चुनाव में जहां नेताओ की व उनके विधायक चुनने की बात हो रही है वहीं एक सफल कोयला उद्योग अपने उद्धार की बांट जोह रहा है। देखना है आने वाला समय इस क्षेत्र का कैसा रहता है।

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