लोभ को बढ़ाता है ज्यादा धन एकत्रित करने की भावना
रामगढ़ : श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में शनिवार को दशलक्षण पर्व के नौवें दिन अ¨कचन ध
रामगढ़ : श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में शनिवार को दशलक्षण पर्व के नौवें दिन अ¨कचन धर्म की पूजा हुई। इस दौरान सुबह को पूरे विधि-विधान के साथ भगवान का अभिषेक व पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान अ¨कचन धर्म के बारे में बताया गया कि अ¨कचन का अर्थ होता है अपरिग्रह। यानी अपने जीवन में कमसे कम संपत्ति रखते हुए कम से कम आवश्यकता की वस्तुएं रखना। जो वस्तुएं जीवन के लिए अनिवार्य है उन्हीं को रखना। भोग विलास की वस्तुओं का त्याग अपरिग्रह है। आवश्यकता से अधिक संपत्ति का उपार्जन करना, उनका संचय करना अनेक पापों को जन्म देता है। जीवन को दुखी बनाता है। ज्यादा धन एकत्रित करने की भावना लोभ को बढ़ाता है। अत्यधिक धन एकत्रित करने के लिए मनुष्य माया छल कपट भी करता है। ज्यादा धन हो जाना अहंकार मान को जन्म देता है। इसलिए जैन धर्म मे सादा जीवन व शुद्ध विचार पर जोर दिया गया है। बिना परिग्रह के त्याग किए मनुष्य अच्छे भाव या मोक्ष मार्ग को नहीं प्राप्त कर सकता। जैन साधु अपरिग्रह धर्म को पालन करने के बहुत महान उदाहरण हैं। उनकी संपत्ति बस एक पिच्छी व एक कमंडल ही है। चारों ओर यानी दिशाएं ही उनके वस्त्र है। इसीलिए उनको दिगंबर मुनि कहा जाता है। वे अपने घर परिवार धन धान्य प्रिय हितजन सभी को परिग्रह मान कर छोड़ देते हैं। आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो जाते हैं। शनिवार को प्रथम कलश करने का सौभाग्य पदम चंद सेठी एवं शांति धारा करने का सौभाग्य अरिहंत सेठी को प्राप्त हुआ। मौके पर सुभाष पाटनी, नागरमल गंगवाल, नरेंद्र छाबड़ा, देवेंद्र गंगवाल, रघु गंगवाल, बिनोद सेठी, रितेश सेठी, निशांत सेठी, विमल सेठी, प्रवीण पाटनी, सुभाष सेठी, राजेश सेठी, कविता पाटनी, जीवन माला गंगवाल, बबिता सेठी, बीणा सेठी, पाम देवी सेठी, मीना सेठी, संगीता, नीलम, पप्पल, इंद्रा पाटनी आदि अनेक लोग उपस्थित थे।