परिवार के लिए अब सारथी बनने का आ गया समय

परिवार के लिए अब सारथी बनने का आ गया समय । दिलीप कुमार सिंह रामगढ़ बदलाव प्रकृति का नियम है जो प्रकृति का नियम होता हैं वह बे

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 May 2020 07:50 PM (IST) Updated:Wed, 27 May 2020 07:50 PM (IST)
परिवार के लिए अब सारथी बनने का आ गया समय
परिवार के लिए अब सारथी बनने का आ गया समय

दिलीप कुमार सिंह, रामगढ़ : बदलाव प्रकृति का नियम है, जो प्रकृति का नियम होता हैं वह बेहतर होता है। तो बेहतरी को अपनाने में भला देर क्यों लगाना चाहिए। क्योंकि प्रकृति उसी का वरण करती हैं जो उसमें आए बदलाव के अनुसार खुद को बदल लेता है। ऐसा नहीं करने वालों को प्रकृति अपने अनुसार समझाती है। विश्व में आई कोविड-19 महामारी ने हर सेक्टर को त्राहिमाम कर रखा है। भविष्य की सोच मानों गर्भ में जा समाया हो। जो कल तक अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन देने की सोच के साथ सैकड़ों, हजारों मील दूर रहकर दो पैसे जुटाने को दिन-रात एक कर रखा था। वैश्विक महामारी ने सारी सोच को बदल कर रख दी। प्रदेश में कमाने गए मजदूर व प्रवासी महामारी के प्रकोप को देखते हुए अपने घरों को लौट गए है। उनके समक्ष अब रोजी-रोटी कमाने सहित परिवार को बेहतर जीवन देने की बड़ी चुनौती मुंह बाए खड़ी हो गई है। प्रदेश में अकुशल मजदूर होने के बाद भी ज्यादा पैसे कमाते थे। अपने हुनर को दूसरों को मोहताज बना रखा था। धूरी के समान घूमना पड़ता था। परिवार से दूर रहने की पीड़ा भी सताती थी। अब अपने हुनर को अपने गांव, राज्य व क्षेत्र में तरासने में समय लगाएंगे। साथ ही रोजगार के अवसर सृजन करेंगे। अपना देश, अपना माटी और अपनी जमीं की खुशबू से बहुत दिनों तक दूर रहा हूं। अपने घर पर रहकर ही रोजगार पैदा करेंगे। बाहर तो नहीं जाएंगे। क्योंकि जान बच गई यह भगवान का एहसान है। लॉकडाउन में कैसे बाहर में दिन बीते यह सोच कर भी दिल सिहर उठता है। वैसे प्रवासियों के अपने गांव व घर लौटने से रौनक बढ़ गई है। बहुत कुछ बदला हुआ नजर भी आ रहा है। ऐसे में सामांजस्य बनाकर आगे चलना एक चुनौती से कम नहीं होगा। दूर रहकर परिवार की गाड़ी चलाता था। अब परिवार के लिए सारथी बनने का समय आ गया है। क्योंकि सारथी के भरोसे ही आगे बढ़ा जा सकता है। अब हर सुख-दुख के साथ अपनों के साथ ही रहना है। बाकी उपर वाला जाने।

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फोटो : 17

कोरोना वायरस संक्रमण ने जहां जिदगी ही बदल दिया है। वहीं संघर्ष करने की राह भी खोल दिया है। परदेश में दो पैसे के लिए रात-दिन दूसरों का मोहताज होते हुए धूरी के समान घूमता रहता था। ऊपर से परिवार से दूर रहने का दर्द रात-दिन सताता रहता था। अपने हुनर को अब अपने गांव और राज्य में विकसित करते हुए रोजगार बढ़ाऊंगा। ताकि परिवार के साथ रहते हुए पैसे कमा सकूं। सरकार के भरोसे रहने से तो भूखा ही मर जाऊंगा। गांव में मनरेगा का काम कैसा होगा और कितना पैसा मिलेगा यह जग जाहिर है। इसलिए अपना हाथ,अपना हुनर पर विश्वास करते हुए काम शुरू करूंगा। लॉकडाउन में कैसे दिन गुजारा यह भगवान ही जानते है। घर पर रहकर अपने भाइयों व पिता के साथ खेती भी करूंगा ताकि दो पैसे ज्यादा कमाकर समृद्ध हो पाऊं। बाहर जाने का तो अब सवाल ही नहीं उठता है।

-सूरज बेदिया

कटेलियाबेड़ा, बरकाकाना।

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फोटो : 18

अब कहीं नहीं जाऊंगा। अपने घर पर ही रहकर रोजगार करूंगा। वायरिग का कार्य हैदराबाद संगारेड्डी जिला के आइआइटी में इलेक्ट्रिक स्टोर में कीपर का काम करता था। वहां पर कंपनी ने लॉकडाउन में धोखा तो दिया अपने हाल पर भी छोड़ दिया। वहां से भगवान भरोसे अपने घर पहुंचा हूं। परिवार के साथ रहकर ही रोजगार करुंगा। जो जमीन हैं उसी में भाइयों के साथ मिलकर खेती करुंगा। पहले से स्थिति को और मजबूत करुंगा। क्योंकि अब जवाबदेही और ज्यादा बढ़ गई है। स्थिति बदल गई है। इसलिए अब बाहर जाने का इरादा बिल्कुल ही नहीं है। अपने हुनर को और विकसित करते हुए रोजगार के अवसर बनाऊंगा। फिल्हाल वहां से लौटने के बाद तो क्वारंटाइन में हूं। परिस्थिति सामान्य होने के बाद फिर से काम पर लगुंगा।

-संदीप बेदिया

कटेलियाबेड़ा, बरकाकाना।

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छावनी परिषद के वार्ड सदस्य ने कहा

कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर हालात पूरी तरह से बदल गया है। हालात काफी तेजी से बदल रहा है। ऐसे में प्रवासियों के लिए परेशानी तो काफी बढ़ेगी। जमीन, खेत, मकान आदि को लेकर विवाद भी होगा। क्योंकि हल्की-हल्की बातें सुनने को मिल भी रही है। इससे इतर प्रयास रहेगा कि बिना विवाद के ही सबकुछ बेहतर तरीके से चलें। ताकि इस संकट काल में किसी को भी परेशानी ना हो। फिल्हाल ऐसी कोई समस्या हमारे पास नहीं है।

-प्रभु करमाली

छावनी परिषद के वार्ड सात के सदस्य।

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