Lok Sabha Polls 2019: सियासत की भेंट चढ़ी तहले जलाशय योजना के पूरा होने का इंतजार
Lok Sabha Polls 2019. तहले नदी जलाशय योजना सियासत की भेंट चढ़ चुकी है। चैनपुर के निवासियों ने बड़ी उम्मीदें पाल रखी थी। लेकिन उनके खेतों को पानी नहीं मिल पा रहा है।
चैनपुर (पलामू), [अरविंद तिवारी]। तहले नदी जलाशय योजना सियासत की भेंट चढ़ चुकी है। पलामू जिले के सबसे बड़े प्रखंड चैनपुर के निवासियों ने इस जलाशय से बड़ी उम्मीदें पाल रखी थी। लेकिन उनके खेतों को पानी मिलने का सपना साकार होता नहीं दिख रहा है। चैनपुर के एक बड़े भू-भाग को सिंचित करने के साथ ही बिजली उत्पादन को लेकर तहले नदी पर बहुउद्देशीय तहले जलाशय परियोजना निर्माण की रूपरेखा तैयार की गई थी।
इसके तहत बूढ़ीवीर पंचायत अंतर्गत ईटको पहाड़ी व जयनगरा पहाड़ी के बीच तहले नदी को बांधकर नौ हजार फीट लंबा व 114 फीट ऊंचा डैम बनाने की योजना तैयार की गई। योजना की लागत पांच अरब 46 करोड़ 56 लाख 20 हजार रुपये थी। प्रस्तावित डैम का केचमेंट एरिया 217 वर्ग मील का था। डैम से 17 हजार हेक्टेयर खरीफ व आठ हजार हेक्टेयर रबी फसल की भूमि सिंचित करने का लक्ष्य था।
साथ ही विद्युत उत्पादन कर पलामू प्रमंडल को बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की भी योजना थी। डैम बनने से विस्थापित हो रहे ग्रामीणों के पुनर्वास के लिए सरकार की ओर से 111 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया था। चार जून 2006 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तहले जलाशय योजना का शिलान्यास करने मेदिनीनगर पधारे थे। शिलान्यास स्थल चैनपुर प्रखंड के तहले पर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई थी।
शिलापट्ट लगाया जा चुका था। हेलीपैड व संपर्क पथ का भी निर्माण हो गया था। अचानक शिलान्यास के कुछ घंटे पूर्व कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। मुख्यमंत्री वापस चले गए। इसका कारण राजनीतिक स्तर पर विरोध था। डूब क्षेत्र में पडऩे वाले स्थानीय ग्रामीणों ने भी डैम के निर्माण पर विरोध जताया था। इसके बाद तहले जलाशय योजना का निर्माण खटाई में पड़ गया।
बाद में प्रस्तावित स्थल से चार-पांच किलोमीटर ऊपर कोकिला नामक स्थान पर डैम बनाने पर विचार हुआ। बाद में यह भी छलावा साबित हुआ। फिलहाल जिले में सिंचाई की समस्याएं यथावत हैं। कोई बड़ी योजना आकार नहीं ले पाई है। सुखाड़ पलामू की नियति बन चुकी है। जिले के कई नेता मंत्री व विधायक बने। इसके बावजूद पलामू के खेतों की प्यास नहीं बुझ पाई है।
कई बार हो चुका है सर्वे
तहले जलाशय योजना को लेकर अविभाजित बिहार में 1970 के दशक के शुरू में सर्वे कराया गया था। इसके बाद 1986-87 में अविभाजित बिहार के तत्कालीन कृषि राच्यमंत्री ईश्वर चंद्र पांडेय ने भी डैम निर्माण को लेकर सर्वे कराया। 2010 में पुन: एक बार कोलकाता से आए इंजीनियरों की टीम ने उच्च तकनीक मशीन से सर्वे किया। लेकिन परिणीति शून्य रही।