जशपुर व गौरवा गांव में वोट मांगने भी नहीं जाते नेता

पलामू में चुआंड़ी से प्यास बुझाते है आदिम जनजाति बिरहोर। पांच साल में भी नहीं हुआ विकास

By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Nov 2019 06:54 PM (IST) Updated:Tue, 19 Nov 2019 06:22 AM (IST)
जशपुर व गौरवा गांव में वोट मांगने भी नहीं जाते नेता
जशपुर व गौरवा गांव में वोट मांगने भी नहीं जाते नेता

चंद्रदेव प्रजापति, सगालीम, पलामू : पलामू जिला के कई गांव में बिरहोर जाति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। भोजन, साफ पानी व स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होने के कारण उनकी संख्या लगातार घट रही है। आदिम जनजातियों को साफ पानी , भरपेट भोजन तक नसीब नहीं हो रहा है। पूछने पर अधिकारी जांच कर कार्रवाई की बात करते हैं।

मालूम हो कि मनातू प्रखंड के डुमरी पंचायत के जशपुर व गौरवा गांव जंगल में स्थित है। यहां आज तक कोई जनप्रतिनिधि व अधिकारी नहीं पहुंचे हैं। वोट के समय में भी कोई नेता इस गांव में नहीं आते हैं। गांव के ग्रामीणों ने बताया कि विधायक, सासंद का वोट कब होता है। यह किसी को पता नहीं चलता है। यह गांव जिला मुख्यालय मेदिनीगर से 85 किमी व प्रखंड मुख्यालय से 35 किमी दूर जंगल में स्थित है। यहां आदिम जनजातियों में बिरहोर लोगों की है। गांव तक जाने के लिए सड़क की व्यवस्था नहीं है। बिजली पानी की भी कमी है। आदिम जनजाति के लोगों को सरकारी सुविधा पहुंचाने की सरकार की घोषणा छलावा साबित हो रही है। लंबी मांग के बावजूद आदिम जनजातियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। जनवितरण दुकानदार आदिम जनजाति को राशन तो देते हैं मगर किरोसीन तेल नहीं मिलता हैं। गांव में बिजली नहीं है। 250 घरों के गांव में हैंडपंप नहीं है। सरकारी सुविधा नहीं मिलने के कारण उन्हें जंगली खाद्य पदार्थों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही कारण है कि अधिकतर लोग पहली नजर में कुपोषण लगते हैं। गांव के लोगों के लिए आवागमन के नाम पर जंगल से होकर गुजरती पगड़ी है। पेयजल के लिए उन्हें पहाड़ी ढोंढा - नाला में चुआड़ी खोदकर के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। जाहिर है कि ऐसे में स्वास्थ्य सुविधा , शिक्षा , बिजली आदि उनके लिए विलासिता की श्रेणी में आने वाली दुर्लभ चीज है। अधिकारी चैन की नींद में सो रहे है। अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए अपनी मूल प्रकृति के खिलाफ जाकर गांव के कुछ जागरूक लोग कभी - कभार जरूरी सुविधाओं के लिए प्रखंड मुख्यालय मनातू जाकर शिकायत दर्ज कराकर मदद की गुहार लगाते हैं । बावजूद पदाधिकारी उनकी दर्द सुनने को तैयार नहीं दिखते। गांव की कुंती देवी , चीमा परहिया , बुधन परहिया , सकेंद्र परहिया , संगीता देवी आदि कई लोगों ने जिला प्रशासन की व्यवस्था पर आक्रोश व्यक्त किया।

बाक्स: घने जंगल व उग्रवाद क्षेत्र में बसा है गांव

मनातू प्रखंड के ये गांव यूं तो प्रकृति के गोद में बसा है। चारों तरफ जंगल पहाड़ और नदी है। यह गांव कोई पर्यटक स्थल से कम नहीं है। इस जगह पर सड़क व सरकारी सुविधा उपलब्ध करा दी जाए तो सैलानियों का यहां जमावड़ा लग सकता है। इससे क्षेत्र का विकास होगा। बावजूद इस क्षेत्र में लोग जाने से परहेज करते हैं। यहां रात तो दूर दिन में जाने से लोग कतराते हैं। इस टोले में एक प्राथमिक विद्यालय है। मास्टर साहब अपनी मर्जी से स्कूल आते - जाते हैं।

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