शहीद अमरजीत बलिहार की याद में बना पार्क

लगातार नक्सलियों से मोर्चा ले रहे पाकुड़ के पूर्व एसपी अमरजीत बलिहार नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे। दो जुलाई 2013 को दुमका से पाकुड़ लौटने के दौरान नक्सलियों ने काठीकुंड के समीप घात लगाकर उनकी हत्या कर दी थी। शहीद हुए इस एसपी की याद में पाकुड़ जिला कलेक्ट्रेट के समीप पार्क बनाया गया है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 07:31 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 07:31 PM (IST)
शहीद अमरजीत बलिहार की याद में बना पार्क
शहीद अमरजीत बलिहार की याद में बना पार्क

रोहित कुमार,पाकुड़ : लगातार नक्सलियों से मोर्चा ले रहे पाकुड़ के पूर्व एसपी अमरजीत बलिहार नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे। दो जुलाई 2013 को दुमका से पाकुड़ लौटने के दौरान नक्सलियों ने काठीकुंड के समीप घात लगाकर उनकी हत्या कर दी थी। शहीद हुए इस एसपी की याद में पाकुड़ जिला कलेक्ट्रेट के समीप पार्क बनाया गया है। जिसका नाम शहीद हुए एसपी का नाम दिया गया है। उनकी याद में हर वर्ष यहां दो जुलाई को आयोजन होता है। इसमें शहीद एसपी व जवानों के परिजन को सम्मानित किया जाता है। लोग उनकी वीरता व कर्तव्य निष्ठा को याद करते हैं।

पाकुड़ के इतिहास का काला दिन था दो जुलाई 2013

तारीख दो जुलाई 2013। पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार दुमका में डीआइजी की बैठक से वापस पाकुड़ लौट रहे थे। इसी बीच काठीकुंड थाना के जमनी मोड़ के समीप एसपी की गाड़ी पहुंचते ही नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिग शुरू कर दी। इसमें एसपी सहित उनका अंगरक्षक चंदन थापा, वीरेंद्र श्रीवास्तव, मनोज हेम्ब्रम, राजीव कुमार शर्मा, संतोष मंडल शहीद हो गये थे। इस मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की। जिसमें हवलदार बबलू मुर्मू व सिपाही लुबेनियस मरांडी को सरकारी गवाह बनाया गया था। अनुसंधान के क्रम में अपनों द्वारा दगा देने की बात सामने आयी थी। हमले में मामूली चोट के शिकार हुए लुबेनियस ने नक्सलियों पर एक भी गोली नहीं चलाई थी। उलटे पुलिस पदाधिकारियों के समक्ष यह बयान दिया कि नक्सलियों ने अमरजीत बलिहार सहित सभी सुरक्षा कर्मियों के हथियार लूट लिये थे। वरीय पुलिस पदाधिकारी ने जब कड़ी पूछताछ की तो पता चला कि एसपी का एके-47 व अंगरक्षक चंदन थाना की नाइन एमएम पिस्तौल लुबेनियस ने अपने घर में एक बक्से में बंद कर रखी थी। लुबेनियस की पत्नी की उपस्थिति में पुलिस ने बक्से से असलहा जब्त कर न्यायालय को सुपुर्द कर दिया था। आज भी इस घटना को याद कर निजी वाहन चालक रहे धनराज मडै़या की आंखे भर जाती है। वे कहते हैं वे इस घटना में कैसे बच गए आज भी विश्वास नहीं होता। धनराज को भी इस हमले में कई गालियां लगी थी।

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