चुनावी हरियाली से दूर है लाल मिट्टी का यह इलाका

लोहरदगा में चुनावी चौपाल का आयोजन

By JagranEdited By: Publish:Fri, 15 Nov 2019 09:02 PM (IST) Updated:Fri, 15 Nov 2019 09:02 PM (IST)
चुनावी हरियाली से दूर है लाल मिट्टी का यह इलाका
चुनावी हरियाली से दूर है लाल मिट्टी का यह इलाका

पाखर से लौट कर राकेश कुमार सिन्हा,

लोहरदगा : जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर यह इलाका लाल मिट्टी के गढ़ के रूप में जाना जाता है। बॉक्साइट की माइंस के लिए इस क्षेत्र की पहचान है। मूल रूप से यहां पर हिडाल्को सहित अन्य निजी कंपनियों की बॉक्साइट माइंस है। जिससे हर साल कई टन बॉक्साइट माइंस का उत्खनन और परिवहन होता है। इसके बाद भी यह क्षेत्र विकास के ²ष्टिकोण से पिछड़ा हुआ है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां 2134 लोग निवास करते हैं। जिसमें 1117 पुरुष और 1017 महिलाएं हैं। इस क्षेत्र में शेड्यूल्ड ट्राइब की आबादी 2118 है। जबकि शिक्षा का दर बेहद ही चिताजनक है। यहां के लोग महज 33.80 प्रतिशत ही साक्षर हैं। जिसमें 42.52 प्रतिशत पुरुष और 24.20 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। मजदूरों की आबादी की बात करें तो 1133 लोग यहां मजदूरी कर अपने परिवार का गुजारा करते हैं। रोजगार के नाम पर मजदूरी की मजबूरी है। शिक्षा का अभाव होने की वजह से यह अपने अधिकारों को लेकर जागरूक नहीं है। नेता सिर्फ इन्हें ठगने आते हैं। लोगों में निराश का भाव

चुनावी मौसम में लाल मिट्टी के इस इलाके में लोगों की अपेक्षाएं और चुनाव को लेकर उनकी सोच को जानना जरूरी था। ऐसे में पहुंच गया, यहां के लोगों से मिलने। पाखर माइंस से कुछ ही दूर ग्रामीण बैठकर चुनाव में अपने मताधिकार को लेकर चर्चा कर रहे थे। उनके बीच में भी बैठ गया। बात शुरू हुई तो समस्याएं और मुद्दे भी चर्चा में आने लगे। लोगों ने साफ तौर पर कहा कि यह क्षेत्र खनिज का भंडार है। बावजूद इसके विकास के ²ष्टिकोण से कंगाल है। लोगों के चेहरे पर निराशा का एक भाव दिखाई पड़ रहा था। लोगों ने बॉक्साइट माइंस के लिए अपनी जमीन दी थी, वह लोग ही आज बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। उनके पास ना तो काम है ना तो जमीन का सही मुआवजा ही उन्हें मिल पाया। जंगली उत्पादों को बेच कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं। क्षेत्र में हिडाल्को कंपनी की ओर से अस्पताल खोला गया है। इसके बाद भी बेहतर इलाज की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।

सड़क का हाल भी खस्ता

आंगनबाड़ी केंद्र, स्कूल सहित अन्य सुविधाओं की स्थिति भी बेहतर नहीं कही जा सकती है। सड़क की हालत तो जैसे मुंह चिढ़ाती है। हर रोज जान जोखिम में डालकर इसी खस्ताहाल सड़क से आना-जाना करते हैं। भले ही पूरे राज्य में इस वक्त चुनावी हरियाली फैली हुई है, यहां पर लोग अपनी ही समस्याओं से जूझ रहे हैं। इंतजार है तो एक ऐसे प्रतिनिधि की जो उनकी समस्याओं को समझें और उनके हक के लिए लड़े। हर बार जब चुनाव आता है तो नेता पूरे तामझाम के साथ वहां पहुंचते हैं, उन्हें सपने दिखाते हैं, वोट बटोरने को लेकर झांसे में लेते हैं और फिर वही 5 साल इन्हीं समस्याओं के साथ लड़ने के लिए छोड़ जाते हैं। घर में खाने के पड़ रहे लाले

सुरेश गंजू से जब पूछा कि चुनाव है, वोट देंगे कि नहीं। सुरेश ने कहा वोट क्यों नहीं देंगे बाबू। वोट देना तो हमारा अधिकार है। कम से कम यह अफसोस तो नहीं रहेगा कि हमने लोकतंत्र के लिए कुछ नहीं किया। वोट तो हर हाल में देंगे। जब पूछा कि नेताओं से क्या सवाल करेंगे। उनका कहना था कि नेताओं से सवाल करके भी कोई फायदा नहीं है। सुनना तो वही झूठ है। फुलमनिया भी गुमसुम बैठी हुई थी। पूछने पर कहती है उसका घरवाला रोजगार की तलाश में ईंट भट्ठा गया हुआ है। अभी खेतों में धान भी नहीं कटी थी कि घर में रोटी के लाले पड़ गए। बिना धान काटे ही ईट भट्ठा चला गया। अब जाने कब लौटेगा। ऊपर से धान काटने को लेकर मजदूरी देने के भी पैसे नहीं है।

कई और लोगों से बात हुई सबकी अपनी अपनी समस्याएं थी, पर मुद्दा वही था। रोजगार, पलायन और बुनियादी सुविधाएं जाने कब खत्म होंगी।

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भरोसे लायक चेहरे की तलाश

लोग अपने मताधिकार को लेकर जागरूक तो हैं, पर समझ नहीं पा रहे कि भरोसा किस नेता पर करें। हर नेता की तो वही चाल है, वही झूठ और वही फरेब वाला चेहरा है। किसी पर भरोसा करने को लेकर दिल तैयार नहीं होता। फिर भी लोकतंत्र की मजबूती और विकास के लिए एक बेहतर नेता को वोट तो देना ही है। इंतजार कर रहे हैं कि कोई सचमुच उनकी पीड़ा सुनने को यहां आए। खैर लोगों की समस्याओं को सुनने के बाद वापस चल दिए हम। इस उम्मीद के साथ कि शायद यहां के लोगों की समस्याएं इस बार खत्म हो जाए।

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