ईख की खेती के रूप में है लोहरदगा की पहचान

राकेश सिन्हा/विक्रम चौहान लोहरदगा लोहरदगा की पहचान यहां की ईख की खेती से है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 08:58 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 08:58 PM (IST)
ईख की खेती के रूप में है लोहरदगा की पहचान
ईख की खेती के रूप में है लोहरदगा की पहचान

राकेश सिन्हा/विक्रम चौहान, लोहरदगा : लोहरदगा की पहचान यहां की खेती और खेती करने वाले किसानों से है। यहां के किसान अपनी मेहनत से लोहरदगा को एक पहचान ही नहीं, बल्कि रोजगार का रास्ता भी दिखाते आए हैं। ईख की खेती के रूप में लोहरदगा की पहचान है। ईख की खेती कर लोहरदगा जिले के विभिन्न प्रखंडों के किसान आत्मनिर्भर हो रहे हैं। लोहरदगा के भंडरा, सदर और सेन्हा प्रखंड में ईख की काफी खेती होती है। लोहरदगा में उत्पादित होने वाला ईख दूसरे प्रदेशों में बेचा जाता है। किसानों के लिए यह एक एक बेहतर कृषि उत्पाद है। लोहरदगा जिले के बरही, एकागुड़ी, मसमानों, दत्तरी, ईटा, चटकपुर, ओयना, जोरी, सढ़ाबे, भुजनियां आदि स्थानों में किसान हजारों एकड़ में ईख की खेती करते हैं। किसानों के लिए यह एक बेहतर मुनाफे वाला उत्पाद ही नहीं है, बल्कि आय का बेहतर माध्यम भी है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि ईख की खेती के सहारे लोहरदगा के किसानों के लिए आर्थिक मजबूती का द्वार भी सालों भर खुला रहता है। कम पानी, कम पूंजी, कम मेहनत के कारण किसान ईख की खेती को पसंद करते हैं। लोहरदगा जिले से ईख रांची, जमशेदपुर, धनबाद, चतरा, राउलकेला आदि स्थानों में भेजा जाता है। लोहरदगा में हर साल लगभग 7 से 8 हजार मिट्रिक टन सामान्य रूप से ईख का उत्पादन होता है। किसानों को ईख से काफी फायदा है। किसान इस खेती के सहारे आत्मनिर्भर हो रहे हैं। लोहरदगा में ईख की खेती किसानों को दूसरे खेती से नुकसान से बचाती है। लोहरदगा में अब लगभग पांच सौ किसान ईख की खेती करते हैं। इन किसानों द्वारा अपनी जमीन पर ही नहीं, बल्कि दूसरे किसानों की जमीन को भी लीज में लेकर ईख की खेती की जाती है। ईख बेचने को लेकर इन्हें परेशान भी नहीं होना पड़ता है। व्यापारी यहां से ईख खरीद कर ले जाते हैं। लोहरदगा में यदि ईख के कारोबार की बात करें तो हर साल 15 करोड़ के लगभग ईख का कारोबार आराम से होता है। सिर्फ सेन्हा के बरही, ईटा, अंबेरा, भंडरा, बेदाल, मसमानों आदि क्षेत्रों में लगभग 10 करोड़ के ईख का कारोबार किया जाता है। लोहरदगा में ईख की खेती रोजगार और आत्मनिर्भरता का बेहतर माध्यम है। ईख की खेती से यहां के किसानों को आर्थिक रूप से मजबूती मिली है। आने वाले समय में ईख की खेती आर्थिक रूप से और भी मजबूत होने में फायदा देगी। लोहरदगा जिले के कई किसान ऐसे हैं, जो छोटे पैमाने पर ईख की खेती करते हैं। इनके लिए भी परिवार चलाने में ईख की खेती सहायक साबित हो रही है। किसानों के लिए राहत की बात यह है कि इस खेती के न तो बहुत ज्यादा प्रशिक्षण की जरूरत होती है और न ही ईख बेचने को लेकर परेशान ही होना पड़ता है।

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