पुत्र की लंबी उम्र की कामना का पर्व जिऊतिया नहाय-खाय के साथ शुरू

संवाद सहयोगी झुमरीतिलैया पुत्रवती माताओं द्वारा अपने पुत्र की सुरक्षा एवं लंबी आयु के लिए ि

By JagranEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 06:23 PM (IST) Updated:Tue, 28 Sep 2021 06:23 PM (IST)
पुत्र की लंबी उम्र की कामना का पर्व जिऊतिया नहाय-खाय के साथ शुरू
पुत्र की लंबी उम्र की कामना का पर्व जिऊतिया नहाय-खाय के साथ शुरू

संवाद सहयोगी, झुमरीतिलैया: पुत्रवती माताओं द्वारा अपने पुत्र की सुरक्षा एवं लंबी आयु के लिए किया जाने वाला कठिन व्रत जिऊतिया नहाय खाय के साथ मंगलवार को प्रारंभ हो गया। पंडित जीवकांत झा एवं गौतम पांडेय ने बताया कि बुधवार को दिनभर महिलाएं उपवास पर रहेंगी। वहीं गुरुवार को सुबह पारन के साथ 36 घंटे का उपवास संपन्न होगा। व्रती विमला देवी, अंजू देवी, रीता देवी, संतोषी देवी प्रभा देवी और अन्य महिलाओं ने जिऊतिया व्रत के संबंध में अपने विचार साझा किए। नहाय खाय को लेकर उन्होंने बताया कि आम के डंठल का दतवन बनाकर मुंह साफ किया। सिर के बालों में सरसों की खल्ली लगा कर स्नान किया गया। स्नान करने बाद झिगुनी के पत्ते पर तेल,खल्ली रखकर पितरों को जल से तर्पण किया गया। घर में आकर जीतवाहन व्रत एवं पूजन करने का संकल्प लिया। इसके लिए केले के पत्ते पर चूड़ा, दही, चीनी एवं तुलसी दल रखा। प्रज्वलित दीप रखा गया। धूप, अगरबत्ती जलाकर जल भरे कलश का पूजन करते हुए जिऊतिया व्रत रखने का संकल्प व्रतियों ने किया। नहाय खाय में व्रतियों ने भोजन में मरुआ के आटे की रोटी, नूनी का साग, झिगुनी की सब्जी समेत कई तरह की सब्जियों का सेवन किया। आज जितवाहन की प्रतिमा बनाकर करेंगी पूजा अर्चना

बुधवार को व्रत के दिन ही व्रती कुश से निर्मित जितवाहन की प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना करेंगी एवं जितवाहन व्रत की कथा का श्रवण करेंगी। 36 घंटे का निर्जला उपवास माताओं के लिए कठिन तपस्या ही है। माताएं अपने पुत्रों के लिए कितना कष्ट झेलते हुए व्रत रखती हैं, जिऊतिया व्रत इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। मरकच्चो: नहाय-खाय से जिऊतिया व्रत इसकी शुरुआत हो गई है। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत (जिऊतिया) रखे जाने का विधि है। आचार्य अधीन पांडे ने बताया कि हिदू पांचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया) रखे जाने का विधान है।

माताएं पूरे दिन निराहार और निर्जला रहती हैं। मालूम हो कि हिदू धर्म में सावन पूर्णिमा की शुरुआत के साथ विभिन्न पर्व और त्योहारों का मनाया जाना आरंभ हो जाता है। इस व्रत में माताएं सप्तमी को खाना और जल ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करती हैं और अष्टमी तिथि को पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। नवमी तिथि को व्रत का समापन पारण के साथ किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत संतान प्राप्ति और उसकी लंबी आयु की कामना के लिए की जाती है।

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