मछली पालन का कारोबार, आर्थिक उन्नति का आधार

तिलैया डैम से उत्पादित मछलियों की ख्याति अब दूर तक पहुंच रही है

By JagranEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 07:39 PM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 07:39 PM (IST)
मछली पालन का कारोबार, आर्थिक उन्नति का आधार
मछली पालन का कारोबार, आर्थिक उन्नति का आधार

गजेंद्र बिहारी, कोडरमा : तिलैया डैम से उत्पादित मछलियों की ख्याति अब दूर तक पहुंच रही है। अत्यधिक स्वादिष्ट होने के कारण दिनोंदिन इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है। एक समय ऐसा था जब बंगाल और आंध्र प्रदेश की मछली का ही कोडरमा के लोगों को जायका मिल पाता था। लेकिन, अब कोडरमा के तिलैया डैम में उत्पादित मछलियां बिहार और बंगाल के बाद ओडिशा तक सप्लाई की जा रही है। मछली पालन का कारोबार अब चंदवारा प्रखंड के जामुखाड़ी के मछली व्यवसायियों के लिए आर्थिक उन्नति का आधार बन गया है। तिलैया डैम में विस्थापित परिवारों को सरकारी योजनाओं के तहत मछली केज और आरएफएफ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मछली उत्पादन किया जा रहा है। प्रतिदिन करीब 600 क्विटल मछली का उत्पादन किया जा रहा है जो स्थानीय बाजारों के अलावा खासकर बिहार के नवादा और बिहारशरीफ सप्लाई की जाती है। इसके अलावा यहां की मछलियों की बंगाल के व‌र्द्धमान में अच्छी डिमांड है। अब तिलैया डैम की उत्पादित मछलियां रांची और ओडिशा कुछ क्षेत्रों में सप्लाई की जा रही है।

कतला और झींगा की दूसरे प्रदेशों में ज्यादा डिमांड

तिलैया डैम में रोहू, कतला, पंगास, तेलपिया, ग्लसकप, झिगा समेत अन्य प्रजाति की मछली का उत्पादन किया जाता है। जामू खाड़ी में मछली के थोक व्यवसायी राजा कुमार शाहनी ने बताया कि बड़ी साइज की कतला और झिगा का बंगाल और बिहार में अच्छी डिमांड है। उन्होंने बताया कि एनएच 31 रांची-पटना मुख्य मार्ग पर चलने वाली बसों के जरिए मछली का कारोबार किया जाता है। प्रतिदिन 8-10 क्विटल मछली बिहार, बंगाल और ओडिशा भेजा जाता है, जबकि रांची में तिलैया डैम की मछली का विशेष डिमांड रहता है। उन्होंने बताया कि व‌र्द्धमान में मछली कारोबारी यहां आकर मछली की साइज और प्रजाति चिह्नित करते हैं, उसके बाद डिमांड के आधार पर मछली बसों के जरिए भेजी जाती है। राजा शाहनी ने बताया कि बंगाल के लोग बताते हैं कि तिलैया डैम की मछली का जायका वहां से पूरी तरह भिन्न है और यहां के मछली के टेस्ट में मिठास के कारण कुछ खास लोगों की पसंद है। हालांकि इस मौसम में मछली की सप्लाई में कुछ कमी आई है। इसके अलावे कोरोना काल में जब बसों का परिचालन बंद था तब कारोबार मे मंदी आई थी लेकिन, मछली के कारोबार के जरिए जामू खाड़ी के सैकड़ों परिवारों का अच्छे से गुजर-बसर होता है।

समिति की बैठक में तय होता है मछली का रेट

मछली उत्पादन से लेकर उसकी बिक्री तक की जिम्मेदारी का निर्वहन समिति के माध्यम से किया जाता है और मछली उत्पादन से होने वाले फायदे और नुकसान का जिम्मा समिति के सभी सदस्यों का होता है। समिति के सदस्य कुलदीप रविदास ने बताया कि जब मछलियां बड़ी हो जाती हैं और उसे बाहर निकालने का समय आता है तो समिति के सभी सदस्य जमा होते हैं और उस बैठक में मछली कारोबारी भी होते है। समिति के सभी सदस्यों की सहमति से मछली की अलग-अलग प्रजाति की अलग दर भी तय की जाती है। आमतौर पर इसका रेट बाजार से 100 रुपये ज्यादा होता है। बाजार में जहां मछली रोहू-कतला 200 रुपये प्रतिकिलो मिल जाती है, वहीं तिलैया डैम की मछली का रेट 300 रुपये प्रतिकिलो होता है। वहीं झींगा (प्रॉन) मछली 400-600 रुपये प्रतिकिलो होती है। मछली उत्पादन की आमदनी समिति के सभी सदस्यों में बराबर बंटता है और इस कारोबार से सभी को अच्छी आमदनी हो रही है। देवधारी रविदास ने बताया कि वे लोग तिलैया डैम के विस्थापित हैं और मछली उत्पादन के जरिए सरकार ने उन्हें रोजगार का बेहतर साधन मुहैया कराया है जिससे यहां आसपास रहने वाले सभी खुशहाल हैं।

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