माफिया-अफसर होते गए मालामाल, मजदूर रह गए फटेहाल

कोडरमा-गया जिले की सीमा पर स्थित गुरपा की पहाड़ियों से लेकर

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Mar 2021 07:23 PM (IST) Updated:Fri, 05 Mar 2021 07:23 PM (IST)
माफिया-अफसर होते गए मालामाल, मजदूर रह गए फटेहाल
माफिया-अफसर होते गए मालामाल, मजदूर रह गए फटेहाल

जागरण संवाददाता, कोडरमा : कोडरमा-गया जिले की सीमा पर स्थित गुरपा की पहाड़ियों से लेकर कोडरमा घाटी होते हुए बिहार के नवादा जिले के अंतर्गत रजौली प्रखंड के भानेखाप की पहाड़ी। एनएच 31 के दूसरी ओर कोडरमा के सपही, ढोढाकोला, ढाब, डोमचांच, पिहरा होते हुए गिरिडीह जिले के तिसरी व गांवा प्रखंड तक फैला है माइका फील्ड। सन 1980 के पहले तक इस जंगली इलाकों में करीब 300 माइका की छोटी-बड़ी खदानें हुआ करती थीं। वन संरक्षण अधिनियम 1980 लागू होने के बाद एक-एक कर सभी खदान बंद होते गई। इनमें बीएसएसडीसी की भी करीब एक दर्जन से अधिक खदानें थीं। जंगली क्षेत्र में स्थित खदानों के बंद होने के बाद से ही शुरू हुआ अवैध खनन का दौर। धीरे-धीरे माइका फील्ड पर माफियाओं का साम्राज्य कायम होता चला गया जो वन विभाग, प्रशासन एवं पुलिस से सांठगांठ कर अपना धंधा करते आ रहे हैं। बंद पड़े माइका खदानों में ओवरबर्डन के ढेर से माइका के छोटे-छोटे टुकड़े (ढिबरा) के नाम पर जंगली क्षेत्र में अवैध खनन का दौर शुरू होता गया। पूर्व से वैज्ञानिक तरीके से चली आ रही अंडरग्राउंड माइनिग छोड़ जंगल माफिया अवैज्ञानिक तरीके से डोजरिग कर माइनिग करने लगे। इससे वन एवं पर्यावरण को व्यापक नुकसान हो रहा है। अवैध खनन को लेकर जिले की सीमा से सटे शारदा माइंस में गुटों में टकराव, खूनी संघर्ष आम बात हो गई है। ढिबरा के कारोबार में भी बिचौलियों का दबदबा बढ़ता गया। पुलिस व वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से जंगल से प्रतिदिनि सैकड़ों शक्तिमान ट्रक से माइका निकल रही है। कार्रवाई के नाम पर बीच-बीच में दो चार गाड़ियां पकड़ी भी जाती हैं,लेकिन इससे धंधा करनेवालों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

शहर की फैक्ट्रियों में तैयार होता है फ्लैक्स और पाउडर

जंगल से निकला माइका झुमरीतिलैया शहर व गिरिडीह में स्थित फैक्ट्रियों में जाता है। यहां माइका फ्लैक्स और पाउडर तैयार होता है। तैयार माइका शहर के कुछ एक्सपोर्टरों के माध्यम से विदेशों में निर्यात होता है। प्रतिवर्ष ढाई से तीन सौ करोड़ का निर्यात चाइना व अन्य यूरोपीय देशों में होता है। पूरा कारोबार एक संगठित व्यवस्था के तहत चल रहा है। इसमें माफियाओं के अलावा सरकारी अधिकारियों की मोटी कमाई तो हो जाती है, लेकिन सरकार के खजाने में राजस्व का एक रुपया भी प्राप्त नहीं हो पाता। इस फिल्ड में काम करनेवाले मजदूरों की हालत भी फटेहाल वाली है। वर्ष 2016 में पहली बार रघुवर दास की सरकार ने माइका से राजस्व की प्राप्ति के लिए कुछ पुराने डंपों की नीलामी की थी। लेकिन यह नीलामी केवल चालान बिक्री का माध्यम बनकर रह गया। इसकी आड़ में अवैध खनन का कारोबार और भी बढ़ गया।

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