सोनपुरगढ़ स्थित मां नकटी देवी मंदिर में नवरात्र में होगी विशेष पूजा
तोरपा प्रखंड अंतर्गत जरिया पंचायत के सोनपुरगढ़ स्थित मां नकटी देवी का मंदिर है। यह मंदिर इस क्षेत्र के श्रद्धालुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र है। चैत्र नवरात्र के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
तोरपा : तोरपा प्रखंड अंतर्गत जरिया पंचायत के सोनपुरगढ़ स्थित मां नकटी देवी का मंदिर है। यह मंदिर इस क्षेत्र के श्रद्धालुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र है। चैत्र नवरात्र के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र में सोनपुरगढ़ स्थित माता नकटी देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के मौके माता नकटी देवी मंदिर में मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं। नवरात्र के दौरान नकटी देवी मंदिर में कई अनुष्ठान होते हैं। प्रखंड के प्रसिद्ध सोनपुरगढ़ स्थित माता नकटी देवी मैया का जो भी भक्त सच्चे मन से मां की आराधना करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। कहते हैं कि मां की दर पर जिसने भी हाजिरी लगाई उसे माता ने निराश नहीं किया। यह मंदिर तोरपा-मुरहू पथ की जरिया पंचायत के सोनपुरगढ़ स्थित है। मंदिर के पुजारी पंडित सुधीर मिश्रा बताते हैं कि इस स्थान में विराजमान अष्टभुजी मां का नाक कटी हुई है। इस कारण से माता को नकटी देवी कहा जाता है। पहले सोनपुरगढ़ राजा का गढ़ हुआ करता था। यहां के राजा इस मंदिर के माता को अपना कुलदेवी मानते थे और सेवा कर पूजा-अर्चना करते थे। सब अच्छा चल रहा था। इसी बीच राजा के बेटे की हत्या इसी मंदिर के पास हो गई। तब राजा माता के दरबार में आकर काफी मन्नतें की वह पूजा कीे कि मेरे बेटे को जीवित कर दो, लेकिन राजा का बेटा जीवित नहीं हुआ। इससे क्रोधित होकर राजा अपने स्वजनों को लेकर किसी दूसरे स्थान पर चले गए। इसके बाद से उस मंदिर में पूजा-अर्चना भी बंद हो गई। मंदिर के आसपास झाड़ी उग गई। काफी समय बीतने के बाद गांव में महामारी व कई तरह की बीमारियां फैल गई। किसी ने सुझाव दिया कि मंदिर में पूजा नहीं होने के कारण गांव में इस तरह की महामारी फैल रही है। तब आखिर में किसी पुरोहित को बुलाकर मंदिर में पूजा-अर्चना कराई गई। इसके बाद ही सभी बीमारी खत्म हो गई। तब से मंदिर में मान्यता होने लगी कि सच्चे मन से पूजा करने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
--
1664 ईसा पूर्व में बना है मंदिर
देवी के इस मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। शिलालेख व कोई कागजात नहीं रहने के कारण मंदिर के निर्माण की सही तिथि और निर्माता के बारे में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है। विशिष्ट स्थापत्य और शैलीगत विशेषताओं के कारण मंदिर का निर्माण प्रतिहार शासकों द्वारा कराए जाने का अनुमान लगाया जाता रहा है। इस मंदिर का सीधा संबंध जरियागढ़ के राज परिवार से है। इस बारे में जरियागढ़ के राजपुरोहित सच्चिदानंद शर्मा ने बताते हैं कि मंदिर 1664 ईसा पूर्व की है। जहां पहले राजा का गढ़ हुआ करता था। जब यहां घटना घटी थी उस वक्त राजा ठाकुर गोविदनाथ सहदेव का शासन था। घटना के बाद से राजा अपने स्वजनों को लेकर एक जगह चले गए। राजा जहां अपना बसेरा बनाया उस स्थान का नाम गोविदपुर पड़ा। इसके बाद राजा वहीं रहने लगे थे। यह मंदिर खूंटी-चाईबासा रोड पर स्थित मुरहू से तपकरा जाने वाली सड़क पर करीब 15 किलोमीटर पर स्थित है। नवरात्रि के अवसर पर यहां खूंटी के अलावा कई अन्य जिलों से भी श्रद्धालु नकटी देवी की पूजा करने पहुंचते हैं।