आएंगे मेहमान तो बढ़ेगी हमारी शान, खुलेंगे रोजगार के द्वार

प्रकृति ने खूंटी जिले को बड़ी शिद्दत से सजाया है। नदी नालों व जंगलों से आच्छादित जिले में अनेक मनोहारी पर्यटन स्थल हैं जहां एक बार जाने पर फिर बार-बार जाने का मन करता है। पर्यटन के क्षेत्र में विकास की यहां अपार संभावनाएं हैं लेकिन इस क्षेत्र में विकास के लिए अपेक्षित पहल नहीं की गई है। रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में यहां की युवा पीढ़ी दूसरे राज्यों में पलायन करती है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 06:38 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 06:38 PM (IST)
आएंगे मेहमान तो बढ़ेगी हमारी शान, खुलेंगे रोजगार के द्वार
आएंगे मेहमान तो बढ़ेगी हमारी शान, खुलेंगे रोजगार के द्वार

खूंटी : प्रकृति ने खूंटी जिले को बड़ी शिद्दत से सजाया है। नदी, नालों व जंगलों से आच्छादित जिले में अनेक मनोहारी पर्यटन स्थल हैं, जहां एक बार जाने पर, फिर बार-बार जाने का मन करता है। पर्यटन के क्षेत्र में विकास की यहां अपार संभावनाएं हैं लेकिन इस क्षेत्र में विकास के लिए अपेक्षित पहल नहीं की गई है। रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में यहां की युवा पीढ़ी दूसरे राज्यों में पलायन करती है।

जिले में पर्यटन स्थलों की भरमार है। यहां एक से बढ़कर एक फॉल, डैम एवं आम्रेश्वर धाम जैसे प्रख्यात धार्मिक स्थल हैं। पंचघाघ एवं पेरवाघाघ जलप्रपात, रानी फॉल व तजना नदी जैसे स्थलों की प्राकृतिक छटा सैलानियों को अपनी ओर खींच लाती है। फुदकते मृग के झुंड को देखने के लिए बड़ी संख्या में दूर-दूर से लोग बिरसा मृग विहार पहुंचते हैं, जबकि बाबा आम्रेश्वर धाम का आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इसे मिनी बाबाधाम कहा जाता है। यदि इन स्थलों का विकास कर दिया जाए तो क्षेत्र में खुशहाली आ जाएगी। लोगों को रोजगार मिलेगा। आने वाले मेहमानों (सैलानियों) की संख्या बढ़ने से क्षेत्र की ख्याति के साथ लोगों के शान-ओ- शौकत में भी वृद्धि होगी। पर्यटन विकास क्षेत्र का बहुत बड़ा मुद्दा है। इस दिशा में पहल कर क्षेत्र में समृद्धि लाई जा सकती है।

जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूरी पर मुरहू प्रखंड में स्थित है पंचघाघ जलप्रपात। ऊंचे पहाड़ एवं साल वृक्षों के से घिरा यह अत्यंत मनोरम स्थल है। प्राकृतिक सुंदरता के तराने छेड़ते झरने एवं दूर-दूर तक फैले साल के वृक्षों पर चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर सैलानियों के पांव यहां बरबस ठहर जाते हैं। स्थल का ढंग से विकास कर दिया जाए और रात में सैलानियों के ठहरने के लिए अच्छे होटल बन जाएं तो क्षेत्र की रौनक बढ़ जाएगी। साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा और उन्हें पलायन नहीं करना पड़ेगा।

तोरपा प्रखंड में स्थित पेरवाघाघ की प्राकृतिक छटा देखते बनती है। नीले पानी के कारण इस जलप्रपात की अलग ही पहचान है। दिसंबर, जनवरी व फरवरी माह में यहां कई राज्यों से पर्यटक पहुंचते हैं। इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में सुविधाओं से लैस कर दिया जाए तो यहां पहुंचने वाले सैलानियों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो जाएगी। आसपास होटल तथा बाजार का विकास होगा। साथ ही वाहनों का परिचालन भी काफी संख्या में बढ़ेगा। रोजगार के साधन बढ़ेंगे। इस दिशा में पहल करने की जरूरत है। बाबा आम्रेश्वर धाम में बाबा पर जलाभिषेक के लिए कई राज्यों के श्रद्धालु कांवर लेकर पहुंचते हैं लेकिन क्षेत्र का विकास रुका पड़ा है। इसे मिनी बाबाधाम कहा जाता है, फिर भी सुविधाएं नगण्य हैं। यहां विकास की बड़ी संभावनाएं हैं। वहीं खूंटी-रांची मार्ग पर कालामाटी में स्थित बिरसा मृग विहार की देखरेख कुछ हद तक ठीकठाक है लेकिन इसके पास भी सैलानियों के ठहरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। प्राकृतिक रूप से इतने समृद्ध होने के बाद भी पर्यटन स्थलों का अपेक्षित विकास नहीं होने के कारण जिले के लोगों को पलायन का दंश झेलना पड़ रहा है।

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जिले में काम नहीं मिलने के कारण हमें बाहर जाना पड़ता है। यदि सरकार हमें जिले में ही रोजगार उपलब्ध करा दे तो हम बाहर क्यों जाएं। जिले के पर्यटन स्थलों का विकास किया जाए तो भी रोजगार के साधन उपलब्ध हो जाएंगे।

-अजीत भेंगरा, फटका, तोरपा

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जिले में पंचघाघ, रानी फॉल व पेरवाघाघ आदि कई ऐसे स्थल हैं जो सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। यदि इन स्थानों का विकास किया जाए तो यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ जाएगी और लोगों को रोजगार भी मिलेगा। ऐसे में हमें रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा।

-नमन भेंगरा, दुमांगदिरी, तोरपा

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खूंटी जिले में एक से बढ़कर एक रमणीक स्थल हैं। यदि सरकार जिले को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करे तो स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे। ऐसे में हमें अपने जिले में ही रोजगार उपलब्ध हो जाएगा और फिर हमें काम की तलाश में परदेश जाने की जरूरत नहीं रह जाएगी।

-कुलदीप अल्फांस डोडराय, तोरपा

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हमें अपने परिवार का लालन-पालन करने के लिए पलायन करना पड़ता है। यदि हमें अपने जिले में ही रोजगार मिल जाए तो बेहतर होगा। पर्यटन स्थलों का विकास करके भी रोजगार मुहैया कराया जा सकता है।

-वीरेन्द्र पुरान, पुरनानगर, अड़की

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