विधवा व परित्यागता पेंशन के लिए अब उम्र की कोई सीमा नहीं : मुख्यमंत्री

आदिवासी समुदाय शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पीछे रहा है। लेकिन आज आदिवासी समाज का व्यक्ति ही राज्य के विकास को गति देने में जुटा है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 15 Nov 2021 09:16 PM (IST) Updated:Mon, 15 Nov 2021 09:16 PM (IST)
विधवा व परित्यागता पेंशन के लिए अब उम्र की कोई सीमा नहीं : मुख्यमंत्री
विधवा व परित्यागता पेंशन के लिए अब उम्र की कोई सीमा नहीं : मुख्यमंत्री

जागरण संवाददाता, खूंटी : आदिवासी समुदाय शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पीछे रहा है। लेकिन आज आदिवासी समाज का व्यक्ति ही राज्य के विकास को गति देने में जुटा है। यही वजह है कि जल, जंगल और जमीन विकास कार्यों की प्राथमिकताओं में रहता है। राशन कार्ड से वंचित 15 लाख जरूरतमंदों को हरा राशन कार्ड प्रदान किया जा रहा है। आदिवासी समाज के बच्चों को विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेज रही है। राज्य गठन के बाद पहली बार खिलाड़ियों को सीधी नियुक्ति दी जा रही है। ये बातें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू में आपके अधिकार, आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के शुभारंभ कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली को नमन करने आई है। विकास की गठरी साथ लाई है। सरकार जनता के अधिकार को जनता के द्वार तक पहुंचाने आएं हैं।

उन्होंने कहा कि अब राज्य में हर उम्र की विधवा और परित्यागता महिलाओं को पेंशन मिलेगा। वहीं बीपीएल व एपीएल सभी बुजुगरें को पेंशन की राशि मिलेगी। मुख्यमंत्री ने कहा सरकार के विकास कार्यों को मिलकर आगे बढ़ाना है। राज्य सरकार ने झारखंड के सभी वृद्धजनों को पेंशन योजना का लाभ देने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया को सरल बनाते हुए एपील और बीपीएल कार्ड की बाध्यता समाप्त की गई है। अब सरकार की योजना गांव-गांव तक जाएगी। अगर योजनाओं का लाभ देने में पदाधिकारी लापरवाही बरतेंगे तो उन्हें चिन्हित कर दंडित किया जाएगा।

जागरूकता ही आने वाली पीढ़ी का भविष्य संवारेगी

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य गठन से पूर्व बिरसा आबा की जयंती सिर्फ उनके गांव के अतिरिक्त कुछेक स्थानों में मनाई जाती थी। देश के लोग जब आजादी का सपना नहीं देखते थे उस समय यहां आजादी का बिगुल फूंका गया था। क्या कारण रहा देर से देश के पटल पर यहां के शहीदों का नाम पहुंचने में। क्यों पूर्व में बिरसा आबा की जयंती नहीं मनाई गई। जनजतीय गौरव दिवस मनाने में 150 वर्ष क्यों लग गए। इसके पीछे कहीं किसी की मजबूरी तो नहीं है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों ने अपना हक व हुकूक संघर्ष के बल पर लिया है। अलग राज्य भीख मांग कर नहीं लिया है, शहीदों ने बलिदान दिया तब जाकर हमें झारखंड मिला है। जनजातीय समाज को जागरूक होने की जरूरत है। जागरूकता ही आने वाली पीढ़ी के भविष्य को संवार सकती है।

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