तोरपा की जलमीनार से दो नहीं अब एक समय मिल रहा पानी

कठिन से कठिन परिस्थिति में भी बिना बुनियादी सुविधाओं के भी जीवन गुजारना संभव हो सकता है लेकिन पानी के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। खूंटी जिले में पानी की कमी के कारण मानव और मवेशी अभी से हलकान होने लगे हैं। शहरों से लेकर गांवों तक पानी की कमी का असर भी दिखने लगा है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 10 Apr 2021 06:59 PM (IST) Updated:Sat, 10 Apr 2021 06:59 PM (IST)
तोरपा की जलमीनार से दो नहीं अब एक समय मिल रहा पानी
तोरपा की जलमीनार से दो नहीं अब एक समय मिल रहा पानी

तोरपा : कठिन से कठिन परिस्थिति में भी बिना बुनियादी सुविधाओं के भी जीवन गुजारना संभव हो सकता है, लेकिन पानी के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। खूंटी जिले में पानी की कमी के कारण मानव और मवेशी अभी से हलकान होने लगे हैं। शहरों से लेकर गांवों तक पानी की कमी का असर भी दिखने लगा है। कई इलाकों में जलसंकट शुरू हो गया है। खूंटी जिले का अधिकांश भाग पहाड़ी है। इस कारण समुचित बारिश होने के बाद भी वर्षा का जल बहकर बर्बाद हो जाता है। इसकी वजह से मार्च के अंतिम महीने से ही खूंटी जिले में जल संकट गहराने लगा है। जंगलों और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, नदियों से भारी मात्रा में बालू की तस्करी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के बेहिसाब दोहन के कारण ही जिले में दिनों दिन जल संकट गहराने लगा है। जिले के तोरपा इलाके में भी जल संकट की स्थिति गंभीर होती जा रही है। तोरपा में ब्लॉक चौक के पास बने जलमीनार से पहले सुबह-शाम दोनों समय लोगों को पानी की सप्लाई की जाती थी। वहीं, अब गर्मी के दस्तक देते ही एक समय ही जलापूर्ति की जा रही है। इसके कारण लोगों को पानी के लिए इधर उधर भटकना पड़ रहा है। कोटेनगसेरा में ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत पांच लाख लीटर क्षमता वाली जलमीनार बनाई गई है। जलस्तर नीचे जाने के साथ ही यहां जल संकट पैदा होता जा रहा है।

वहीं सालों भर पानी से भरे रहने वाली कारो और छाता नदी अप्रैल महीने में ही सूख रही है। गांव-देहात के तालाब और कुएं भी सूखने के कगार पर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बार अप्रैल के शुरू में ही गर्मी ने अपने तेवर दिखाना शुरू कर दिया है, इसलिए मई व जून में भीषण गर्मी का पड़ना तय है और तपिश के साथ ही जल संकट और गहराता जाएगा। बरसात के ठीक बाद गांवों में सभी तालाब-पोखर के साथ ही नदियों में भी पानी लबालब भरा रहता था, मगर इस बार बरसात कम होने के कारण नदी तालाबों में जो पानी था उसे पंप सेट से खींचकर किसानों ने धान की फसल सींच ली है। नदियों में तो पानी नही के बराबर रह गया है। प्रखंड में नदियों की बात करें तो कारो, छाता व चुरगी नदी का नाम प्रमुख है। नदियों के किनारे पड़ी हजारों एकड़ जमीन पर बरसात के बाद नदी के किनारे के गांवों के लोग खेती करते हैं। मगर, नदियों में पानी कम होने के कारण उसकी नमी का असर भी खत्म हो गया है। नदियों में पानी सूखने के मुख्य कारण है बालू का दोहन तोरपा थाना क्षेत्र से हो रही बालू की अवैध धुलाई से छाता और कारो नदी का अस्तित्व खतरे में पढ़ता जा रहा है। इन नदियों से बालू का अवैध उत्खनन बेरोकटोक जारी है। हर दिन सैकड़ों ट्रैक्टर बालू की अवैध ढुलाई होती है। बालू की अवैध ढुलाई पर प्रशासन व खनन विभाग का मौन रहना कई तरह के प्रश्न खड़े करते हैं। बालू के अंधाधुंध खनन से नदी का अस्तित्व संकट में पड़ते जा रही है।

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