अपनी पहचान खो रहा राजघराने का बुढ़वा तालाब

नारायणपुर प्रखंड के मंडरों के बुढ़वा तालाब की कभी अपनी अहमियत थी। राज घराने से जुड़े इस तालाब में पानी लबालब भरा रहता था। आसपास की बड़ी आबादी के लिए यह तालाब जीवनदायक बना था। पर उपेक्षा की वजह से इसका अस्तित्व मिटता जा रहा है। आज तालाब की हालत यह है कि पानी के अभाव में अधिकांश भाग में दरारें पड़ चुकी है। पानी नाम मात्र का रह गया है। तालाब की बदहाली से पशुओं को अब पानी तक मिलना मुश्किल है। करीब 15 एकड़ में फैले इस तालाब की सुध लेने वाला कोई नहीं है। 200 वर्ष पूर्व मंडरो के राजा ने तालाब का निर्माण करवाया गया था। सबसे बड़ी बात है कि तालाब निर्माण में केवल मजदूरों से ही काम लिया गया था।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 14 Apr 2021 07:22 PM (IST) Updated:Wed, 14 Apr 2021 07:22 PM (IST)
अपनी पहचान खो रहा राजघराने का बुढ़वा तालाब
अपनी पहचान खो रहा राजघराने का बुढ़वा तालाब

संवाद सहयोगी नारायणपुर (जामताड़ा) : नारायणपुर प्रखंड के मंडरों के बुढ़वा तालाब की कभी अपनी अहमियत थी। राज घराने से जुड़े इस तालाब में पानी लबालब भरा रहता था। आसपास की बड़ी आबादी के लिए यह तालाब जीवनदायक बना था। पर, उपेक्षा की वजह से इसका अस्तित्व मिटता जा रहा है। आज तालाब की हालत यह है कि पानी के अभाव में अधिकांश भाग में दरारें पड़ चुकी है। पानी नाम मात्र का रह गया है। तालाब की बदहाली से पशुओं को अब पानी तक मिलना मुश्किल है।

करीब 15 एकड़ में फैले इस तालाब की सुध लेने वाला कोई नहीं है। 200 वर्ष पूर्व मंडरो के राजा ने तालाब का निर्माण करवाया गया था। सबसे बड़ी बात है कि तालाब निर्माण में केवल मजदूरों से ही काम लिया गया था। तब यह तालाब मंडरो और आसपास के गांव के लोगों के लिए जीवनदायिनी था। इस तालाब के जल से सिंचाई, पूजा पाठ और मछली पालन होता था। जीर्णोद्धार नहीं होने के कारण इसका आकार काफी छोटा हो चुका है। वर्तमान समय में यह सूखने के कगार पर पहुंच गया है। तालाब सूखने पर सर्वाधिक परेशानी मवेशियों को होगी। समय-समय पर स्थानीय लोगों ने इसके जीर्णोद्धार की मांग की है परंतु विभागीय उपेक्षा के कारण तालाब का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया है। अन्य स्थानों के तालाबों की साफ-सफाई पर ध्यान दिया गया, पर इसकी सुध नहीं ली गई। जबकि क्षेत्र के जलस्तर को कायम रखने समेत मछली पालन, पशुओं की प्यास बुझाने, घरेलू काम निपटाने के लिए तालाब का संरक्षण जरूरी था। बारिश के पानी को सहेजने के लिए भी तालाब में कोई अलग से व्यवस्था नहीं की गई है। ऐसे में क्षेत्र में जलसंरक्षण की उम्मीदें टूट रही है।

कई बार तालाब का सौंदर्यीकरण और खुदाई की बातें हुई पर इस दिशा में पहल नहीं हुई। इसको संरक्षित रखने के लिए विभाग को पहल करनी चाहिए। तालाब में पानी नहीं रहने से अब पशुओं को प्यास बुझाने तक आफत है। --गिरिधर सिंह, नारायणपुर। ---वर्षों पूर्व इस तालाब का निर्माण किया गया था। इसका जीर्णोद्धार करने व खुदाई करना काफी जरूरी है। खुदाई से तालाब में पानी संग्रह होगा तथा पानी के लिए लोगों को इधर-उधर भटकना नही पड़ेगा। सिचाई, पशुपालन समेत सारे काम आसान होंगे। ---निर्मल सिंह, नारायणपुर। ---क्षेत्र का यह काफी प्रसिद्ध तालाब है। इसके जल का उपयोग लोग कपड़ा साफ करने, स्नान करने समेत पूजा-पाठ के लिए लाते थे। अब संरक्षण के अभाव में इसमें पानी नाम मात्र का रह गया है। अनदेखी की वजह से ही दरारें पड़ रही है। पानी जमा रखने के उपाय किए जाते तो यह हाल नहीं होता। विभागीय उपेक्षा की वजह से अस्तित्व मिट रहा है। ---संतलाल पंडा, नारायणपुर। ----तालाब स्नान-ध्यान का कभी मुख्य माध्यम था। अब तो पानी नाममात्र का ही रह गया है। सरकार को इस तालाब को बचाना चाहिए। स्थानीय लोगों को भी सोचना चाहिए। क्षेत्र का सबसे बड़ा व ऐतिहासिक तालाब है। आज उपेक्षा की वजह से इसकी दुर्गति हो रही है। तालाब का सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार का कार्य समय पर किया जाता तो जलसंरक्षण के लिए बड़ा काम होता। पर, कभी ध्यान नहीं दिया गया। ---विकुवाला देवी, नारायणपुर।

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