त्याग से परखी जाती इंसान की शक्ति
संवाद सूत्र, मिहिजाम (जामताड़ा) : जैन धर्मावलंबियों का महत्वपूर्ण दशलक्षण पर्व पर्युषण के आठवें
संवाद सूत्र, मिहिजाम (जामताड़ा) : जैन धर्मावलंबियों का महत्वपूर्ण दशलक्षण पर्व पर्युषण के आठवें दिन शुक्रवार को जैनियों ने उत्तम त्याग धर्म का पालन किया। उत्तम धर्म का मतलब बताते हुए अकोला महाराष्ट्र से आए अजय भैया ने कहा कि त्याग शब्द का ही अर्थ होता है छोड़ना और जीवन को संतुष्ट बनाकर अपनी इच्छाओं को वश में करना है। यह न सिर्फ अपने गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है बल्कि बुरे कर्मों का नाश भी करता है। छोड़ने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है। जैन संत अपने घर बार ही नहीं अपने कपड़े को भी त्याग कर देता है और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतीत करता है। कहा कि इंसान की शक्ति इससे परखी नहीं जाती कि उसके पास कितनी धन दौलत है। उसने कितना छोड़ा कितना त्याग किया है। उत्तम धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाकर अपनी इच्छाओं और भावनाओं को वश में किया जा सकता है। त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही होती है। कहा कि आध्यामिक ²ष्टि से राग, द्वेष, क्रोध, मान आदि विकार भावों का आत्मा से छूट जाना ही त्याग है। इससे पहले जैन समाज के महिला-पुरुष बच्चे आदि सबों ने भगवान पारसनाथ को जलार्पण किया। इस दौरान दिगंबर मंदिर कमेटी के महामंत्री अनिल कुमार कासलीवाल, बबलू जैन, अशोक जैन के अलावा दर्जनों लोग शामिल थे।